छोटी दीपावली के नाम से जानी जाने वाली नरक चतुर्दशी का पर्व केवल दीपों का त्योहार नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच आत्मा की शांति का संदेशवाहक है।
By: Ajay Tiwari
Oct 19, 20255 hours ago
स्टार समाचार वेब. धर्म डेस्क
छोटी दीपावली के नाम से जानी जाने वाली नरक चतुर्दशी का पर्व केवल दीपों का त्योहार नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच आत्मा की शांति का संदेशवाहक है। इस दिन दीपदान कर यमराज की आराधना करने से मनुष्य अकाल मृत्यु के भय से मुक्त होता है। स्वर्ण पदक प्राप्त ज्योतिषाचार्य पं. अभिषेक मिश्रा के अनुसार, यह वह विशेष अवसर है जब धर्मराज स्वयं भक्तों को दीर्घायु का आशीर्वाद देते हैं।
मृत्यु पर विजय का मंत्र:
यमाष्टक स्तोत्र पं. मिश्रा बताते हैं कि यमाष्टक स्तोत्र में धर्मराज के आठ पवित्र नामों का वर्णन है। इस स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है। पौराणिक मान्यता है कि देवी सावित्री ने भी इसी स्तोत्र के प्रभाव से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। श्रीमद्देवीभागवत के नवम स्कंध में इसका उल्लेख है। पं. मिश्रा के अनुसार, यह स्तोत्र मृत्यु पर आध्यात्मिक विजय का उद्घोष है, जिसे कर्म और साधना से प्राप्त किया जा सकता है।
अभ्यंग स्नान और यम दीपक की विधि
19 अक्टूबर 2025 की सुबह अभ्यंग स्नान का विशेष महत्व रहेगा। इस दिन तेल और अपामार्ग के पत्तों से स्नान करने के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। स्नान के बाद घर में गंगाजल का छिड़काव कर वातावरण को पवित्र बनाना चाहिए। सूर्यास्त के बाद दक्षिण दिशा में चार मुख वाला 'यम दीपक' जलाया जाता है। यह दीपक यमराज को समर्पित होता है और माना जाता है कि यह पूरे परिवार को अकाल मृत्यु के भय से सुरक्षा प्रदान करता है। इस दीपक को समर्पित करते हुए "यमराज नमस्तुभ्यं दीपं गृह्य प्रदक्षिणम्" मंत्र से प्रार्थना की जाती है।
दीपदान से नकारात्मकता का नाश
शास्त्रों में कहा गया है कि नरक चतुर्दशी की संध्या पर जब दीपक प्रज्ज्वलित होते हैं, तो नकारात्मक ऊर्जा का हर अंश मिट जाता है। घर के हर कोने को रोशनी से भरने से मन में करुणा, सौहार्द और जीवन के प्रति कृतज्ञता जागृत होती है। पं. मिश्रा के अनुसार, इस दिन तुलसी, रसोई और आंगन में दीपक जलाना आवश्यक है। यह अनुष्ठान केवल पूजा नहीं, बल्कि आत्मा के शुद्धिकरण का मार्ग है, जिससे मनुष्य अपने भीतरी भय को परास्त करता है।
ज्योतिषाचार्य पं. मिश्रा का मत है कि यद्यपि मृत्यु अपरिहार्य है, अकाल मृत्यु को कर्म और साधना से टाला जा सकता है। जो व्यक्ति नरक चतुर्दशी की प्रातःकाल एक बार भी यमाष्टक स्तोत्र का पाठ करता है, उसे धर्मराज के यमपाश का भय नहीं रहता, जिससे जीवन में शांति, आयु और स्थिरता आती है।