अब पुत्री मोह में टूटी एनसीपी 

आजादी के बाद से भारत में कई कद्दावर नेताओं ने अपनी संतान की खातिर कुर्सी गंवाई है। इसके बाद भी पुत्र और पुत्री मोह में नेतागण धृतराष्ट्र बने हुए हैं। देश में विपक्ष की दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण परिवारवाद ही नजर आ रहा है, जिस पर अक्सर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कटाक्ष करते रहते हैं।

अब पुत्री मोह में टूटी एनसीपी 
  • गणेश साकल्ले

आजादी के बाद से भारत में कई कद्दावर नेताओं ने अपनी संतान की खातिर कुर्सी गंवाई है। इसके बाद भी पुत्र और पुत्री मोह में नेतागण धृतराष्ट्र बने हुए हैं। देश में विपक्ष की दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण परिवारवाद ही नजर आ रहा है, जिस पर अक्सर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कटाक्ष करते रहते हैं।

ताजा मामला महाराष्ट्र का है। जहां एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने अपने भतीजे को दरकिनार कर बेटी सुप्रिया और खास सिपहसालार प्रफुल्ल पटेल को पार्टी का उत्तराधिकारी बना दिया। यह आशंका उसी दिन बढ़ गई थी कि भतीजे अजीत पवार अपने काका शरद की इस चाल से खुश नहीं हैं। पिछली गलतियों से उन्होंने सबक लेकर इस बार ऐसा दांव चला कि पूरी पार्टी ही बिखर गई। अधिकांश विधायक अपने आका को छोड़कर अजीत के साथ हो लिए।

एनसीपी को खड़ा करने में जितनी ताकत काका ने लगाई थी, उतना ही जोर भतीजे ने लगाया था। एक तरह से जब शरद पवार राष्ट्रीय राजनीति में व्यस्त थे, तब प्रदेश के मामलों में अजीत का ही बोलबाला था। इसके चलते राज्य के अधिकांश नेता उनके ज्यादा करीब आ गए थे। उसी का उन्होंने पूरा फायदा उठाया। लिहाजा शिवसेना से अलग हुए राजठाकरे की तर्ज पर अजीत पवार ने भी अपने तेवर दिखा दिए हैं। अब देखना है कि एनसीपी किसकी रहती है काका शरद की या भतीजे अजीत की।  


गौरतलब है कि हमारे देश का इतिहास और प्रसिद्ध ग्रंथों से भी नेतागण सबक नहीं ले रहे हैं। इन प्राचीन कथाओं में जीवन जीने की कला, मानव जीवन के आचरण और व्यवहार, रिश्ते-नाते कुटुम्बियों, सगे-संबंधियों के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए उनके साथ छल, बल और धोखा नहीं करना चाहिए। ऐसे तमाम उदाहरणों से इतिहास भरा पड़ा है। फिर भी राजनेता परिवार वाद और पुत्र-पुत्रियों का मोह छोड़ नहीं पा रहे हैं। इसके चलते इन क्षेत्रीय दलों की दुर्दशा सर्वविदित है।  इसके पहले हम महाराष्ट्र, बिहार, उत्तरप्रदेश और तमिलनाडु में परिवार वाद की राजनीति का हश्र देख चुके हैं।