देर आयद दुरुस्त आयद

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद घोषणा की थी कि प्रदेश में चल रहे कर्मी कल्चर को जल्द खत्म करेंगे। सत्ता की बागडोर संभालने के पश्चात उनका मानना था कि शिक्षक और कर्मचारियों की कर्मी कल्चर से गरिमा घटती है। इसके साथ ही कामकाज के स्तर में भी गिरावट आती है। 

देर आयद दुरुस्त आयद
  • गणेश साकल्ले

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद घोषणा की थी कि प्रदेश में चल रहे कर्मी कल्चर को जल्द खत्म करेंगे। सत्ता की बागडोर संभालने के पश्चात उनका मानना था कि शिक्षक और कर्मचारियों की कर्मी कल्चर से गरिमा घटती है। इसके साथ ही कामकाज के स्तर में भी गिरावट आती है। 


देखा जाए तो शिवराज जी वर्ष 2005 में ही सभी कर्मियों को समान काम के बदले समान वेतन देने के पक्षधर थे, लेकिन अफसरशाही उन्हें बजट और खर्चों का ज्ञान-गणित समझाकर मामले को लगातार टालती आई। इसके विपरीत घटने के बजाय संविदाकर्मी कल्चर और बढ़ गया। 


यह तो अच्छा हुआ जो इस बार चुनाव पूर्व संविदाकर्मियों ने पूरी ताकत से मुख्यमंत्री तक अपनी बात पहुंचाई। साथ ही कुछ नेताओं और अफसरों ने भी संविदाकर्मियों को सरकारी कर्मचारियों के समान वेतन-भत्ते और अन्य सुविधाएं देने की वकालत की, जिसके चलते उन्हें देर से ही सही, लेकिन कुछ लाभ मिलने का रास्ता साफ हो गया, जिसकी वे वर्षों से मांग कर रहे थे। अभी भी वरिष्ठता, समयमान वेतनमान और अन्य मांगों पर मुख्यमंत्री मौन रहे। कुछ जायज मांगों के निराकरण होने में भी लगभग 18 साल लग गए। यह हमारी लचर राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था का द्योतक है। 


इतने लंबे अंतराल में बेचारे कई कर्मचारी महामारी और बीमारी के शिकार हो गए तो कुछ सड़क हादसों में मारे गए। उनके आश्रितों को न तो अनुकंपा नियुक्ति मिली और न ही पेंशन-ग्रेच्युटी का लाभ मिला। अगर ऐसे फैसले जल्द हो जाए तो लोगों को शीघ्र न्याय मिल पाए। देर से मिलने वाला न्याय कई बार किसी काम का नहीं होता। 


आशा है कि हमारे प्रदेश के कर्णधार इस तरह की लेटलतीफी से सबक लेंगे और आगे जनहित के मुद्दे पर तत्काल विचार करेंगे। चुनावी वर्ष में शिव ने अपने तरकश से एक ओर तीर छोड़ दिया है। इसके लाभ-हानि का आंकलन परिणाम के पश्चात ही पता चलेगा।