जानें गोवर्धन पूजा का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व, भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की कथा, और इस पावन पर्व पर अन्नकूट व गौ पूजा की सरल व संपूर्ण विधि।
By: Ajay Tiwari
Oct 21, 20255 hours ago
स्टार समाचार वेब. फीचर डेस्क
दीपावली के अगले दिन मनाया जाने वाला गोवर्धन पूजा का पर्व भारतीय संस्कृति और धार्मिक आस्था का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। इसे अन्नकूट उत्सव के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है और प्रकृति, विशेषकर गायों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का भी दिन है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, गोवर्धन पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है। यह तिथि आमतौर पर दीपावली के ठीक अगले दिन पड़ती है।
( वर्ष 2024 में यह पर्व 2 नवंबर को मनाया गया था, और वर्ष 2025 में 22 अक्टूबर को मनाया जाएगा।)
गोवर्धन पूजा का पर्व मुख्य रूप से तीन बातों पर जोर देता है:
भगवान श्री कृष्ण के प्रति श्रद्धा: यह पर्व भगवान कृष्ण की उस लीला का स्मरण कराता है, जब उन्होंने ब्रजवासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया था।
प्रकृति और गोवर्धन पर्वत का सम्मान: इस दिन गोवर्धन पर्वत को पूजने का विधान है, जो हमें प्रकृति की रक्षा और उसके प्रति आभार व्यक्त करने की प्रेरणा देता है।
गौ-सेवा और गौ-पूजन: गायों को भारतीय संस्कृति में पूजनीय माना जाता है और इस दिन गौ-माता की विशेष पूजा का विधान है। गायों को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी माना गया है।
गोवर्धन पूजा को अन्नकूट भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन विविध प्रकार के व्यंजन (छप्पन भोग) बनाकर भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित किए जाते हैं।
गोवर्धन पूजा के पीछे भगवान श्रीकृष्ण की एक अद्भुत लीला है, जो इस प्रकार है:
पौराणिक कथा के अनुसार, द्वापर युग में ब्रजवासी प्रतिवर्ष देवराज इंद्र की पूजा करते थे, ताकि वे वर्षा करें और उनकी खेती-बाड़ी अच्छी हो। एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने यह प्रथा देखी और अपनी माता यशोदा से पूछा कि यह पूजा क्यों की जा रही है। माता यशोदा ने उन्हें इंद्र देव की महत्ता बताई।
तब श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को समझाया कि वे इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करें, क्योंकि वही उनके पशुओं और जीवनयापन का आधार है। गोवर्धन उन्हें घास, जड़ी-बूटियाँ और जल प्रदान करते हैं। श्रीकृष्ण की बात मानकर ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू कर दी।
इससे क्रोधित होकर इंद्र देव ने गोकुल में भयंकर वर्षा शुरू कर दी, जिससे पूरे ब्रज में हाहाकार मच गया। ब्रजवासियों को डूबते देख, भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठा (छोटी) उंगली पर पूरे गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और सभी ब्रजवासियों तथा पशुओं को उसके नीचे आश्रय दिया।
सात दिन तक इंद्र ने वर्षा की, लेकिन श्रीकृष्ण की शक्ति के सामने वह विफल रहे। अंत में, इंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने हार मानकर वर्षा रोक दी। तब से यह पर्व गोवर्धन पर्वत और भगवान श्रीकृष्ण के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है।
गोवर्धन पूजा के दिन सरल विधि से पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है:
सुबह स्नान: प्रातःकाल उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
गोवर्धन पर्वत का निर्माण: घर के आंगन या मुख्य द्वार के सामने गाय के गोबर से प्रतीकात्मक गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाएँ। इस पर्वत को फूलों, पत्तों और अन्य प्राकृतिक सामग्री से सजाएँ। पर्वत के मध्य में भगवान श्रीकृष्ण की छोटी आकृति बनाना भी शुभ माना जाता है।
पूजा सामग्री: पूजा में धूप, दीप, रोली, चावल, फल, फूल, जल, मिठाई और विशेष रूप से अन्नकूट (विभिन्न प्रकार के व्यंजन) का भोग तैयार करें।
गौ पूजा: गायों को स्नान कराकर उनका श्रृंगार करें, उन्हें तिलक लगाएँ और गुड़, घास या अन्य भोजन खिलाकर उनकी पूजा करें।
गोवर्धन जी की पूजा: शुभ मुहूर्त में दीपक जलाकर गोवर्धन पर्वत और भगवान कृष्ण की आराधना करें। उनकी नाभि के स्थान पर एक दीपक या कोई पात्र रखकर उसमें दूध, दही, गंगाजल और शहद डालें।
परिक्रमा: गोवर्धन जी की सात बार परिक्रमा करें। इस दौरान कुछ भक्त हाथ में जल का लोटा लेकर जल की धारा गिराते हुए परिक्रमा करते हैं।
अन्नकूट भोग: तैयार किए गए सभी 56 व्यंजनों को (यदि संभव न हो तो अपनी क्षमतानुसार) भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित करें।
आरती और प्रसाद: अंत में, गोवर्धन भगवान और श्रीकृष्ण की आरती करें और सभी को प्रसाद वितरित करें।
गोवर्धन पूजा का पर्व हमें यह सिखाता है कि हमें अपनी संस्कृति, प्रकृति और गौ-वंश का सम्मान करना चाहिए। यह पर्व सुख-समृद्धि, आध्यात्मिक बल और आत्मविश्वास प्रदान करता है।