नोबेल पुरस्कार की घोषणा ने दुनिया को एक बार फिर चमत्कार से रूबरू करा दिया। 2025 का नोबेल पुरस्कार फिजियोलॉजी या मेडिसिन (चिकित्सा) में अमेरिका की मैरी ई. ब्रंकॉ, अमेरिका के फ्रेड राम्सडेल और जापान के शिमोन सकागुची को दिया गया है।
By: Arvind Mishra
Oct 06, 2025just now
नोबेल पुरस्कार की घोषणा ने दुनिया को एक बार फिर चमत्कार से रूबरू करा दिया। 2025 का नोबेल पुरस्कार फिजियोलॉजी या मेडिसिन (चिकित्सा) में अमेरिका की मैरी ई. ब्रंकॉ, अमेरिका के फ्रेड राम्सडेल और जापान के शिमोन सकागुची को दिया गया है। यह पुरस्कार उनकी पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस (शरीर के बाहरी हिस्सों में इम्यून सिस्टम की सहनशीलता) से जुड़ी खोजों के लिए है। यह खोज शरीर की रक्षा प्रणाली को समझने में क्रांति लाई है, जो आटोइम्यून बीमारियों जैसे रूमेटॉइड आर्थराइटिस, टाइप-1 डायबिटीज और ल्यूपस के इलाज का रास्ता खोलेगी। स्टॉकहोम के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट ने सोमवार को घोषणा की।
तीन वैज्ञानिकों की टीम वर्क... सकागुची (जापान)
शिमोन सकागुची को रेगुलेटरी टी सेल्स की खोज के लिए जाना जाता है। 1995 में उन्होंने दिखाया कि सीडी 4+ सीडी 25+ कोशिकाएं इम्यून सिस्टम को दबाती हैं। यह कोशिकाएं शरीर को अपने ही ऊतकों से लड़ने से रोकती हैं। सकागुची की खोज से पता चला कि ट्रेग्स इम्यून टॉलरेंस बनाए रखने में मुख्य भूमिका निभाती हैं। उनके काम ने आटोइम्यून रोगों की समझ बदल दी।
मैरी और राम्सडेल (अमेरिका)
मैरी ब्रंकॉ और फ्रेड राम्सडेल ने फॉक्सपी-3 जीन की खोज की, जो ट्रेग्स कोशिकाओं का मास्टर स्विच है। 2001 में उन्होंने पाया कि फॉक्सपी-3 में म्यूटेशन से ईपेक्स सिंड्रोम होता है, एक दुर्लभ बीमारी जहां बच्चे का इम्यून सिस्टम अपने ही शरीर पर हमला करता है। इससे बाल रोग, डायबिटीज और आंतों की समस्या होती है। उनके काम ने साबित किया कि कोशिकाओं को सक्रिय रखता है। यह खोज पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस को समझने में मील का पत्थर साबित हुई। तीनों ने मिलकर दिखाया कि सेंट्रल टॉलरेंस के अलावा पेरिफेरल टॉलरेंस भी जरूरी है। उनकी खोजें अब दवाओं में इस्तेमाल हो रही हैं, जैसे आटोइम्यून बीमारियों के लिए ट्रेग्स थेरेपी।