मध्यप्रदेश के सरकारी कर्मचारियों के प्रमोशन का रास्ता साफ हो गया। साथ ही प्रमोशन के बाद खाली पदों पर नई भर्ती भी की जाएगी। दरअसल, मंगलवार को सीएम डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में कैबिनेट बैठक में अहम निर्णय लिए गए।
By: Arvind Mishra
Jun 17, 2025just now
कैबिनेट खास...
भोपाल। स्टार समाचार बेव
मध्यप्रदेश के सरकारी कर्मचारियों के प्रमोशन का रास्ता साफ हो गया। साथ ही प्रमोशन के बाद खाली पदों पर नई भर्ती भी की जाएगी। दरअसल, मंगलवार को सीएम डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में कैबिनेट बैठक में अहम निर्णय लिए गए। कैबिनेट बैठक के बाद मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने फैसलों की जानकारी देते हुए बताया कि इस फैसले से नई भर्ती के दरवाजे भी खुल जाएंगे। प्रमोशन में आरक्षित वर्ग की हिस्सेदारी को भी इसमें ध्यान में रखा गया है। प्रमोशन में किसी प्रकार की विधिक तकलीफ नहीं आएगी, इसका भी पूरा ध्यान रखा गया है। अग्रिम डीपीसी के प्रावधान किए गए हैं। वरिष्ठता का ध्यान रखा गया है। किन परिस्थितियों में लोकसेवक अपात्र होगा, इसे भी स्पष्ट किया गया है। निर्णय के पुनर्विलोकन के लिए रिव्यू डीपीसी की व्यवस्था भी की गई है। पदोन्नति समिति को शासकीय सेवक की उपयोगिता निर्धारण करने का अधिकार दिया गया है। गौरतलब है कि नौ साल पहले 2016 से सरकारी कर्मचारियों की पदोन्नति रुकी हुई थी। इसकी वजह यह थी कि आरक्षण में प्रमोशन को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट में था। सरकार ने वहां एसएलपी दाखिल की थी, जिससे प्रमोशन नहीं हो पा रहा था।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव कर्मचारियों को पदोन्नति दिए जाने के पक्ष में हैं। इसी कारण तीन महीने पहले उन्होंने सभी पक्षों की सहमति से पदोन्नति प्रक्रिया शुरू करने की बात कही थी। इसके बाद सामान्य प्रशासन विभाग ने प्रमोशन का फॉमूर्ला तैयार करना शुरू किया और दो से ज्यादा बार मुख्यमंत्री के सामने इसका प्रेजेंटेशन पेश किया गया।
पिछले हफ्ते, 10 जून को हुई कैबिनेट बैठक में मंत्रियों के सामने भी इसका प्रजेंटेशन पेश किया गया था। इसके बाद अब इसे मंजूरी के लिए कैबिनेट बैठक में लाया गया। आखिरकार इसे कैबिनेट के एजेंडे में शामिल करने का फैसला लिया गया। पदोन्नति में रोक के चलते अब तक एक लाख से अधिक कर्मचारी रिटायर हो चुके हैं।
शिवराज, कमल नाथ और फिर शिवराज सरकार ने नए नियम बनाने के प्रयास भी किए पर एक राय ही नहीं बनी, जिसके कारण मामला अटका रहा। लेकिन मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने दृढ़ इच्छा शक्ति दिखाई। प्रमोशन को लेकर कई बार कर्मचारी संगठन भी सरकार से गुहार लगा चुके हैं।
वर्ष 2002 में तत्कालीन सरकार ने प्रमोशन के नियम बनाते हुए प्रमोशन में आरक्षण का प्रावधान कर दिया था। ऐसे में आरक्षित वर्ग के कर्मचारी प्रमोशन पाते गए, लेकिन अनारक्षित वर्ग के कर्मचारी पिछड़ गए। जब इस मामले में विवाद बढ़ा तो कर्मचारी कोर्ट पहुंचे। उन्होंने कोर्ट से प्रमोशन में आरक्षण खत्म करने का आग्रह किया। कोर्ट को तर्क दिया कि प्रमोशन का फायदा सिर्फ एक बार मिलना चाहिए। इन तर्कों के आधार पर मप्र हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002 खारिज कर दिया। सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। शीर्ष कोर्ट ने यथास्थिति रखने का आदेश दिया। तभी से प्रमोशन पर रोक लगी है।
रिक्त पदों को वर्गों में बांटा: जितने पद खाली होंगे, उन्हें एससी-एसटी (16 फीसदी-20 फीसदी) और अनारक्षित हिस्सों में बांटा जाएगा। पहले एससी-एसटी वर्ग के पद भरे जाएंगे, फिर बाकी पदों के लिए सभी दावेदारों को मौका मिलेगा।
क्लास-1 अधिकारी (जैसे डिप्टी कलेक्टर) के लिए लिस्ट मेरिट और सीनियरिटी दोनों के आधार पर बनेगी।
क्लास-2 और नीचे के पदों के लिए लिस्ट सीनियरिटी के आधार पर बनाई जाएगी।
प्रमोशन के लिए कर्मचारी की गोपनीय रिपोर्ट का अच्छा होना जरूरी है। पिछले 2 साल में कम से कम 1 रिपोर्ट आउटस्टैंडिंग होनी चाहिए या पिछले सात साल में कम से कम 4 रिपोर्ट अ+ होनी चाहिए। अगर किसी कर्मचारी की गलती से उसकी गोपनीय रिपोर्ट नहीं बनी है, तो उसका प्रमोशन नहीं होगा।
आज कैबिनेट की बैठक में प्रदेश के कर्मचारियों-अधिकारियों के 9 वर्ष से लंबित पदोन्नति के मामले का निराकरण किया। इसमें एससी-एसटी सहित सभी वर्ग के कर्मचारियों-अधिकारियों के हितों का ध्यान रखा गया है। इसके माध्यम से पदोन्नति के बाद शासकीय सेवाओं में दो लाख पद रिक्त होंगे और इन पर नए सिरे से भर्ती की संभावना बनेगी।