जब इतिहास की धूल झटककर कोई प्रदेश अपने गौरव को पुन: जीवित करता है तो वह केवल अतीत नहीं संवारता। वह आने वाले युगों को दिशा देता है। आज मध्यप्रदेश ठीक उसी दौर से गुजर रहा है, जहां शासन, प्रशासन की दीवारों से परे जाकर जनमानस के हृदय में अपनी पहचान और परंपरा को पुन: प्रतिष्ठित कर रहा है। इस सांस्कृतिक पुनर्जागरण के अग्रदूत हैं।
By: Star News
May 23, 20255:03 PM
जब इतिहास की धूल झटककर कोई प्रदेश अपने गौरव को पुन: जीवित करता है तो वह केवल अतीत नहीं संवारता। वह आने वाले युगों को दिशा देता है। आज मध्यप्रदेश ठीक उसी दौर से गुजर रहा है, जहां शासन, प्रशासन की दीवारों से परे जाकर जनमानस के हृदय में अपनी पहचान और परंपरा को पुन: प्रतिष्ठित कर रहा है। इस सांस्कृतिक पुनर्जागरण के अग्रदूत हैं। उज्जैन की पुण्यभूमि से उठे, महाकाल के उपासक, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव।
यह नेतृत्व योजनाओं की कठोरता से नहीं, बल्कि श्रद्धा और स्मृति की सौम्यता से संचालित हो रहा है। डॉ. यादव ने शासन की धारा को एक नई दिशा दी है, जहां कैबिनेट की बैठकें फाइलों के ढेर के बीच नहीं, बल्कि उन स्थलों पर हो रही हैं, जो हमारे स्वाभिमान के स्तम्भ हैं। यह एक क्रांतिकारी सोच है, जिसमें निर्णय कक्षों को स्मारकों से जोड़ा जा रहा है और आधुनिकता को विरासत की गोद में बिठाया जा रहा है।
अपने कार्यकाल में मुख्यमंत्री ने कैबिनेट की बैठक पवित्र नगरी ओंकारेश्वर, जो शंकराचार्य की दीक्षा स्थलीय है और वही देवी अहिल्या की कर्मस्थली भी रही है, में आयोजित कर न केवल आध्यात्मिक सत्ता को नमन किया, बल्कि शासन को धर्म, संस्कृति और लोकगौरव के आलोक में प्रतिष्ठित करने का संकल्प भी लिया। यह निर्णय केवल प्रतीक नहीं था, बल्कि शासन के उस आत्मसंपर्क का उद्घोष था, जो अपने अतीत से संवाद करता है। प्रदेश की 17 पवित्र नगरियों में शराबबंदी का ऐतिहासिक फैसला इसी बैठक की परिणीति थी।
फिर आया वह क्षण जब रानी दुर्गावती, आदिवासी गौरव की अमर ज्योति, वीरता की प्रतीक को स्मरण करते हुए जबलपुर सिंग्रापुर में कैबिनेट की बैठक की गई। इतिहास में वे क्षण दुर्लभ होते हैं जब शासन श्रद्धांजलि को नीतिगत रूप दे देता है। यह वही क्षण था, जब एक भूली हुई नायिका, जिनकी तलवार ने मुगलों की सेनाओं को चुनौती दी थी, पुन: राज्य की चेतना में लौटीं। और अब, जब संपूर्ण मालवा अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती के उत्सव में विभोर है, तब इंदौर के ऐतिहासिक राजवाड़ा में कैबिनेट की बैठक का आयोजन एक स्वर्णाक्षरी घटना बनने जा रही है। यह वही राजवाड़ा है जहां से अहिल्याबाई ने न्याय, सेवा और सुशासन की अद्भुत परंपरा रची थी। उनका शासन एक ऐसी मिसाल था, जिसमें नर्मदा से गंगा तक, अयोध्या से काशी तक राष्ट्र की आत्मा का पुनर्निर्माण हुआ।
डॉ. मोहन यादव की यह पहल केवल स्मृति का उत्सव नहीं, बल्कि मूल्य आधारित प्रशासन की स्थापना है। यह उस मानसिकता को चुनौती है, जिसने दशकों तक विदेशी आक्रांताओं के शासन को गौरवगाथा के रूप में प्रस्तुत किया और अपने ही देश की वीर माताओं को उपेक्षित किया। अब इतिहास का पुनर्लेखन नहीं, पुनर्पाठ हो रहा है, जननायकों के सत्कार का, और जनसेवा को शासन का मूल मानने की परंपरा का।
डेढ़ वर्षों के कार्यकाल में यह दृष्टिगोचर हुआ है कि डॉ. मोहन यादव का नेतृत्व केवल निर्णय नहीं करता, दिशा भी देता है। यह दिशा उस आत्मा की ओर है, जहां ओंकारेश्वर का आलोक है, दुर्गावती की शौर्यगाथा है, और अहिल्याबाई की करुणा है। यह नेतृत्व मानता है कि यदि विकास को स्थायी बनाना है तो उसे अपनी जड़ों से जोड़ा जाना आवश्यक है।
डॉ. मोहन यादव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजन को मध्यप्रदेश में विरासत से विकास के रूप में साकार कर रहे हैं। ओंकारेश्वर नगरी से शुरू हुई यह यात्रा अब राजवाड़ा के प्राचीर तक आ पहुंची है। और यह यात्रा थमने वाली नहीं है। यह यात्रा है संस्कृति से समरसता की, परंपरा से प्रगति की और श्रद्धा से शक्ति की। मध्यप्रदेश अब केवल राज्य नहीं, एक पुनर्जाग्रत चेतना बन चुका है- जहां शासन मंदिरों से प्रेरणा लेता है, स्मारकों से ऊर्जा और अपने पूर्वजों से दिशा। यह है नया मध्यप्रदेश, जहां अतीत, वर्तमान का दर्पण है, और भविष्य संकल्पों की नींव पर खड़ा होता है।