12 नवंबर 2025 को कालभैरव जयंती मनाई जाएगी। इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप कालभैरव की पूजा करने से भय, संकट और नकारात्मकता दूर होती है। जानें उनकी उत्पत्ति, महत्व और पूजा करने का सही तरीका।
By: Ajay Tiwari
Nov 10, 20257:00 PM
धर्म डेस्क. स्टार समाचार वेब
हिंदू धर्म में, कालभैरव जयंती का विशेष महत्व है। यह तिथि भगवान शिव के अत्यंत उग्र और शक्तिशाली स्वरूप, भगवान कालभैरव के जन्म के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। यह पर्व हर साल मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जिसे भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस वर्ष, कालभैरव जयंती 12 नवंबर 2025 को पड़ रही है।
तिथि: 12 नवंबर 2025, मंगलवार
मार्गशीर्ष, कृष्ण अष्टमी तिथि प्रारंभ: 11 नवंबर 2025 की रात 10:29 बजे से
मार्गशीर्ष, कृष्ण अष्टमी तिथि समाप्त: 13 नवंबर 2025 की सुबह 12:44 बजे तक
भगवान कालभैरव को भगवान शिव का रौद्र (भयंकर) रूप माना जाता है। इनकी उत्पत्ति एक पौराणिक कथा से जुड़ी है, जिसमें ब्रह्मा जी के पांचवें सिर को काटने के बाद, शिव ने उन्हें कालभैरव के रूप में उत्पन्न किया था। इन्हें काशी का क्षेत्रपाल (संरक्षक) भी कहा जाता है। मान्यता है कि काशी विश्वनाथ के दर्शन करने से पहले इनके दर्शन और पूजा करना अनिवार्य है।
इन्हें क्यों कहा जाता है 'दंडपानी'?
कालभैरव को 'दंडपानी' भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'हाथ में डंडा धारण करने वाले'। इन्हें यह नाम इसलिए मिला क्योंकि ये पापियों और दुष्टों को दंड देने वाले देवता हैं। ऐसी मान्यता है कि कालभैरव अपने भक्तों के सभी प्रकार के पापों, भय और कष्टों को हर लेते हैं, लेकिन अधर्मी लोगों को उचित दंड देते हैं। यह न्याय के देवता माने जाते हैं, जो काल (समय) पर भी नियंत्रण रखते हैं।
भय और संकट से मुक्ति: इनकी आराधना करने से सभी प्रकार के अनजाने भय, आकस्मिक संकट और ऊपरी बाधाएं दूर हो जाती हैं।
नकारात्मक शक्तियों का नाश: कालभैरव नकारात्मक शक्तियों और जादू-टोने को नष्ट करने वाले माने जाते हैं।
रोगों से छुटकारा: गंभीर और पुराने रोगों से मुक्ति पाने के लिए भी इनकी पूजा की जाती है।
काल पर विजय: इनकी पूजा से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है और व्यक्ति की आयु में वृद्धि होती है।
कर्ज से मुक्ति: आर्थिक संकट और कर्ज से मुक्ति के लिए भैरवनाथ की पूजा अत्यंत फलदायी मानी जाती है।
कालभैरव जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर पवित्र स्नान करें और व्रत का संकल्प लें। भैरव जी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। उन्हें सिन्दूर, तेल, नीले या काले रंग के वस्त्र, काले तिल, उड़द की दाल से बने पकवान (जैसे वड़ा) और शराब (या शुद्ध जल/दूध) का भोग लगाया जाता है। भैरव चालीसा का पाठ करें और "ॐ कालभैरवाय नमः" मंत्र का जाप करें। रात में जागरण कर उनकी कथा और भजन का श्रवण करना शुभ होता है। इस दिन भगवान भैरव को जलेबी, पूरी, और उड़द की दाल के वड़े का भोग लगाने की परंपरा है। कुत्ते को भगवान भैरव का वाहन गरीबों और जरूरतमंदों को अपनी क्षमतानुसार दान अवश्य करें