हिंदू धर्म में तेरहवीं (मृत्युभोज) एक पवित्र कर्म है, पर ज्योतिषियों के अनुसार कुछ लोगों को इससे बचना चाहिए। जानें क्यों गर्भवती महिलाएं, तपस्वी और बीमार व्यक्ति मृत्युभोज में शामिल न हों। इसका पालन पितरों की शांति और अपनी पवित्रता के लिए क्यों जरूरी है, जानें।
By: Star News
Jun 22, 20253 hours ago
स्टार समाचार वेब.
हिंदू धर्म में तेरहवीं या मृत्युभोज का आयोजन सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि मृत आत्मा की शांति और पितरों के तर्पण का एक धार्मिक कर्म है। यह अंतिम संस्कार के बाद 13 दिनों की शुद्धि और पवित्रता के बाद किया जाता है। हालांकि, ज्योतिषियों और पंडितों का कहना है, कुछ विशेष व्यक्तियों को इस भोज में शामिल होने से बचना चाहिए ताकि कर्मों की पवित्रता बनी रहे और पितरों को सच्ची श्रद्धांजलि मिल सके।
गर्भवती महिलाओं को:
यह माना जाता है कि शोक से जुड़े आयोजनों की ऊर्जा गर्भवती स्त्री और उसके गर्भ में पल रहे शिशु के लिए संवेदनशील हो सकती है। ऐसे वातावरण का नकारात्मक प्रभाव गर्भस्थ शिशु के विकास पर पड़ सकता है। इसलिए, गर्भवती महिलाओं को न केवल मृत्युभोज से, बल्कि अंतिम संस्कार और श्राद्ध कर्मों से भी दूर रहने की सलाह दी जाती है।
तपस्वी जीवन जीने वालों को:
जो व्यक्ति संयम और साधना के मार्ग पर हैं, जैसे कि ब्राह्मण, संत, योगी या तपस्वी, उन्हें ऐसे शोक के आयोजनों में भाग नहीं लेना चाहिए। ये लोग सांसारिक मोह-माया और मृत्यु के प्रभाव से दूर रहते हैं, और ऐसे वातावरण से बचना उनके आध्यात्मिक मार्ग के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
बीमार व्यक्तियों को:
शारीरिक रूप से कमजोर या पहले से बीमार लोगों के लिए मृत्युभोज में शामिल होना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। ऐसे आयोजनों में भीड़, विशेष वातावरण या भोजन उनके स्वास्थ्य को और बिगाड़ सकता है। साथ ही, ऊर्जा के स्तर पर भी यह स्थान उनके लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है।