एमएसएस, खुफिया, शिक्षा जगत
By: Sandeep malviya
May 25, 20257:42 PM
वॉशिंगटन। चीन को लेकर यह बेहद ही चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। अमेरिकी न्यूज चैनल कोलंबिया ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम (सीबीएस) ने चीन के राज्य सुरक्षा मंत्रालय (एमएसएस) के नाम से मशहूर प्राथमिक खुफिया संगठन को दुनिया का सबसे बड़ा जासूस बताया है। यूरेशियन टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया है। सीबीएस ने इसे वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी और सबसे सक्रिय जासूसी एजेंसी के तौर पर वगीर्कृत किया है। सीबीएस के खबरों वाले हिस्से में चीन की विश्वव्यापी खुफिया महत्वाकांक्षाओं की एक गंभीर तस्वीर पेश की गई। यह बताती है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) अपनी सीमाओं से परे की घटनाओं की निगरानी और उन पर प्रभाव डालने के लिए खुफिया गुर्गों (एजेंटों) के वैश्विक नेटवर्क को तैनात करने पर खासी तवज्जो दे रही है। साथ ही अमेरिका के भीतर चीनी असंतुष्टों पर निगरानी रखने और उन्हें डराने-धमकाने पर भी उसका खासा जोर हैं। सीबीएस की रिपोर्ट बताती हैं कि एमएसएस ने अपने दायरे को मानक खुफिया जानकारी इकट्ठा करने से कहीं आगे तक बढ़ा लिया है। इसके तहत उसने पश्चिमी देशों में शिक्षा जगत, व्यवसायों और यहां तक कि स्थानीय प्राधिकारियों में भी अपने एजेंटों की पैठ बना ली है।
महाशक्ति बनने के साथ ही परिष्कृत और बढ़ी जासूसी क्षमताएं
चीन जैसे-जैसे चीन एक वैश्विक महाशक्ति के तौर पर उभर रहा है, उसकी जासूसी तकनीकें और भी आधुनिक हो गई हैं। अब उसका मकसद महज अपने देश के सरकारी राज चुराना ही नहीं, बल्कि जनमत को प्रभावित करना, तकनीक चुराना और विदेशी धरती पर असहमति की आवाजों को दबाना है। यूरेशियन टाइम्स ने चीनी खुफिया जानकारी का मुकाबला करने में तीन दशकों से अधिक का अनुभव रखने वाले पूर्व अमेरिकी राजनयिक जिम लुईस के हवाले से लिखता है, एमएसएस का पहला निशाना कोई विदेशी सरकार नहीं है, बल्कि अमेरिका दूसरे स्थान पर है। इसका पहला और अहम लक्ष्य विदेशों में बसे चीनी नागरिक हैं, खासतौर से अमेरिका में रहने वाले चीनी लोग।
अतंरराष्ट्रीय नियमों और लोकतांत्रिक संप्रभुता के लिए चीन बन रहा खतरा
एमएसएस का बुनियादी मिशन पारंपरिक जासूसी से कहीं आगे जाता है। इसका मकसद विचारों को नियंत्रित करना, वफादारी थोपना और उन समुदायों के भीतर असहमति की आवाज को दबाना है जिनकी सुरक्षा का यह दावा करता है। सीसीपी की इस्तेमाल की जाने वाली रणनीतियां केवल असंतुष्टों या दलबदलुओं को ही निशाना नहीं बनाती हैं, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय नियमों और लोकतांत्रिक संप्रभुता के लिए भी एक बड़ा खतरा हैं।