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मध्यप्रदेश कांग्रेस में कलह... पार्टी नेताओं में मची भगदड़

मध्यप्रदेश कांग्रेस की बहुप्रतीक्षित जिला अध्यक्षों की सूची जारी होते ही पार्टी के भीतर घमासान और गुटबाजी तेज हो गई है। कई जिलों में नवनियुक्त अध्यक्षों को लेकर विरोध और नाराजगी खुलकर सामने आ रही है। दरअसल, शनिवार को कांग्रेस जिला अध्यक्षों की सूची जारी हुई है।

By: Arvind Mishra

Aug 17, 202511:42 AM

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मध्यप्रदेश कांग्रेस में कलह... पार्टी नेताओं में मची भगदड़

प्रदेश कांग्रेस कार्यालय।

  • राहुल गांधी ने मांगा संगठन सृजन,  भोपाल में हुआ ‘विसर्जन’

  • पूर्व अध्यक्ष मोनू सक्सेना नाराज, सोशल मीडिया पर लिखा

  • जिला अध्यक्षों की सूची पर मचा बवाल, इस्तीफों का दौर

  • नई नियुक्तियों में एक बार फिर कमलनाथ का वर्चस्व दिखा

भोपाल। स्टार समाचार वेब

मध्यप्रदेश कांग्रेस की बहुप्रतीक्षित जिला अध्यक्षों की सूची जारी होते ही पार्टी के भीतर घमासान और गुटबाजी तेज हो गई है। कई जिलों में नवनियुक्त अध्यक्षों को लेकर विरोध और नाराजगी खुलकर सामने आ रही है। दरअसल, शनिवार को कांग्रेस जिला अध्यक्षों की सूची जारी हुई है। इसके बाद से ही प्रदेश के कई जिलों में विरोध के सुर सुनाई देने लगे हैं। हालात ये हैं कि, भोपाल से लेकर उज्जैन, बुरहानपुर के साथ साथ बाकी जिलों में कांग्रेसी नाराज नजर आने लगे हैं। कुछ जगह तो इस्तीफा देने तक का दौर शुरू हो गया है। नाराज कांग्रेसी खुलकर सोशल मीडिया पर नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं। सबसे पहले भोपाल जिला अध्यक्ष की नियुक्त की बात करें तो यहां जिला अध्यक्ष को रिपीट करने पर नाराजगी देखी जा रही है। यहां प्रवीण सक्सेना को दूसरी बार जिला अध्यक्ष घोषित किया गया है, जिससे पूर्व अध्यक्ष मोनू सक्सेना नाराज हो गए। उन्होंने अपनी नाराजगी सोशल मीडिया पर खुलकर विरोध जताकर व्यक्त की है। सोशल मीडिया पर लिखा-राहुल गांधी ने मांगा था संगठन सृजन, भोपाल में हुआ विसर्जन। दरअसल, मोनू सक्सेना, पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के करीबी माने जाते हैं और इस बार जिला अध्यक्ष पद पर उनकी दावेदारी भी थी।

पाटिल और गुर्जर ने दिया इस्तीफा

इस सूची के जारी होने के बाद इस्तीफा देने का भी दौर शुरू हो गया है। जिला प्रवक्ता और राजीव गांधी पंचायत प्रकोष्ठ जिला अध्यक्ष हेमंत पाटिल ने इस्तीफा दे दिया है। वहीं सूची जारी होते ही विरोध के स्वर तेज हो गए। सबसे बड़ा झटका देवास जिले से लगा। यहां खातेगांव विधानसभा के वरिष्ठ कांग्रेस नेता गौतम बंटू गुर्जर ने नाराज होकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया। खास बात ये है कि बंटू गुर्जर खुद पीसीसी चीफ जीतू पटवारी के करीबी माने जाते हैं, लेकिन पहला इस्तीफा इन्होंने ही दिया।

उजजैन-सतना में भी घमासान 

उज्जैन ग्रामीण जिला अध्यक्ष महेश परमार को बनाए जाने का विरोध है। सतना जिला अध्यक्ष सिद्धार्थ कुशवाहा बनाए जाने का विरोध है। बुरहानपुर में जिला अध्यक्षों के ऐलान के बाद अरुण यादव समर्थकों की गुप्त बैठक की खबर सामने आई है। अल्पसंख्यक बाहुल्य जिलों में मुस्लिम शहर अध्यक्ष नहीं बनाने जाने का भी विरोध देखा जा रहा है। सोशल मीडिया पर कार्यकतार्ओं और पदाधिकारी ने विरोध के पोस्ट किए हैं।

जिम्मेदारों को जिम्मा पर नाराजगी

कांग्रेस की जिला अध्यक्षों की सूची में 21 जिला अध्यक्ष रिपीट किए गए हैं। 6 विधायक, 8 पूर्व विधायक, 4 महिलाएं, 10 अनुसूचित जनजाति, 8 अनुसूचित जाति, 12 अन्य पिछड़ा वर्ग, 3 अल्पसंख्यक वर्ग से लोगों को जिम्मेदारी दी गई है। वहीं, सीईसी मेम्बर ओंमकार सिंह मरकाम, जयवर्धन सिंह, निलय डागा, महेश परमार जैसे नामों को भी जिम्मेदारी सौंपी गई है। इनमें विधायक और पूर्व विधायकों को जिम्मेदारी दिये जाने का विरोध ज्यादा देखा जा रहा है।

कमलनाथ का रुतबा कायम

नई नियुक्तियों में एक बार फिर कमलनाथ का वर्चस्व साफ दिखा। 71 में से 10 जिलाध्यक्ष उनके समर्थक माने जा रहे हैं। जबकि 5-5 जिलाध्यक्ष दिग्विजय सिंह और जीतू पटवारी के करीबी बताए जा रहे हैं। इसके अलावा उमंग सिंघार, कांतिलाल भूरिया और अरुण यादव के समर्थकों को भी जगह मिली है।

भाजपा बोली, पटवारी ने लगाया ठिकाने

इधर, भाजपा ने कांग्रेस की सूची पर तीखा हमला बोला है। भाजपा प्रदेश मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल ने कहा कि यह सूची कांग्रेस संगठन नहीं, बल्कि प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी की गुटबाजी और व्यक्तिगत स्वार्थ की पटकथा है। इस सूची के जरिए समकक्ष नेताओं को ठिकाने लगाने और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करने की साजिश रची गई है। आशीष ने तंज कसा कि कांग्रेस ने आठ पूर्व विधायकों और कई पूर्व मंत्रियों को जिला अध्यक्ष बनाकर न केवल कार्यकर्ताओं का अपमान किया है बल्कि हार चुके नेताओं को आगे बढ़ाने का काम किया है। सतना में महिला अपराधों में घिरे विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा को जिला अध्यक्ष बनाए जाने पर भी उन्होंने कांग्रेस की सोच पर सवाल उठाए।अग्रवाल ने कहा कि कांग्रेस की सूची में परिवारवाद और पट्ठाबाजी हावी है, जबकि निष्ठावान को दरकिनार कर दिया गया। यही कारण है कि सूची आते ही कई जिलों में असंतोष और बगावत का माहौल बन गया है।  

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