अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ट्रंप प्रशासन के लिए एक बड़ी कानूनी जीत मानी जा रही है। कोर्ट ने कहा कि सरकार जब पासपोर्ट पर व्यक्ति के 'जन्म के समय दर्ज लिंग' का उल्लेख करती है, तो यह भेदभाव नहीं है, यह केवल एक ऐतिहासिक तथ्य को दशार्ता है।
By: Sandeep malviya
Nov 07, 20256:04 PM
वॉशिंगटन। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राष्ट्रपति ट्रंप प्रशासन को ऐसी नीति लागू करने की मंजूरी दे दी है, जिसके तहत ट्रांसजेंडर और नॉनबाइनरी लोग (ऐसे लोग जो खुद को केवल पुरुष या महिला के रूप में नहीं पहचानते हैं) अब अपने पासपोर्ट पर अपनी लैंगिक पहचान खुद नहीं चुन पाएंगे। इस फैसले से पहले एक निचली अदालत ने आदेश दिया था कि सरकार लोगों को पासपोर्ट पर पुरुष, महिला या अन्य लिंग में से अपनी पहचान चुनने की अनुमति देती रहे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश रोक दिया है।
शीर्ष अमेरिकी अदालत का तर्क
सुप्रीम कोर्ट के छह जजों की बहुमत वाली बेंच ने कहा, 'पासपोर्ट पर जन्म के समय का लिंग दिखाना, समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है। यह देश के जन्मस्थान दिखाने जैसा ही है, सिर्फ एक तथ्यात्मक विवरण।'
लिबरल जजों ने किया फैसले का विरोध
तीन लिबरल जजों ने इस फैसले का विरोध किया। जस्टिस केतानजी ब्राउन जैक्सन ने कहा कि यह नीति ट्रांसजेंडर लोगों को 'हिंसा, उत्पीड़न और भेदभाव' के खतरे में डालती है। उन्होंने लिखा, 'यह अदालत एक बार फिर ऐसे कदम को मंजूरी दे रही है जिससे लोगों को तुरंत नुकसान पहुंचेगा, बिना किसी ठोस कारण के।' जैक्सन ने यह भी कहा कि यह नीति ट्रंप के उस कार्यकारी आदेश से निकली है, जिसमें ट्रांसजेंडर पहचान को झूठा और विनाशकारी बताया गया था।
फैसले पर ट्रांसजेंडर समुदाय की प्रतिक्रिया
अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन (एसीएलयू) के वकील जॉन डेविडसन ने कहा, 'यह फैसला बेहद दुखद है। यह लोगों को अपनी असली पहचान से दूर करने की कोशिश है और ट्रांसजेंडर समुदाय के खिलाफ सरकार के अभियान को और बढ़ावा देगा।' कई ट्रांसजेंडर और नॉनबाइनरी लोगों ने अदालत में बताया था कि जब उनके पासपोर्ट पर उनकी पहचान गलत होती है, तो उन्हें हवाई अड्डों और अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर अपमान, तलाशी और हिंसा का सामना करना पड़ता है।
फैसले पर ट्रंप प्रशासन का पक्ष
ट्रंप प्रशासन ने दलील दी कि पासपोर्ट विदेशी मामलों का हिस्सा हैं और यह पूरी तरह से कार्यपालिका (राष्ट्रपति) के अधिकार में आता है। व्हाइट हाउस की प्रवक्ता अन्ना केली ने इस फैसले को 'कॉमन सेंस और राष्ट्रपति ट्रंप की विचारधारा की जीत' बताया। अटॉर्नी जनरल पैम बॉन्डी ने कहा, 'सिर्फ दो ही लिंग हैं, पुरुष और महिला। न्याय विभाग इस सच्चाई की रक्षा करता रहेगा।'
पासपोर्ट पर जेंडर मार्कर की शुरूआत
अमेरिका में पासपोर्ट पर जेंडर मार्कर (लिंग पहचान) दिखाने की शुरूआत 1970 के दशक के मध्य में हुई थी। 1990 के दशक में सरकार ने डॉक्टर के प्रमाण पत्र के साथ लिंग बदलने की अनुमति दी। 2021 में राष्ट्रपति जो बाइडन के शासन में नियम बदले गए और बिना किसी मेडिकल दस्तावेज के लोग '' लिंग मार्कर चुन सकते थे। ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरूआत में आदेश दिया कि अमेरिका अब केवल दो लिंग, पुरुष और महिला, को ही मान्यता देगा। अब सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से बाइडन-काल की नीति अस्थायी रूप से रद्द हो गई है और ट्रंप प्रशासन अपनी सख्त नीति लागू कर सकता है, जब तक मुकदमे पर अंतिम फैसला नहीं आता।