चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा है कि वोटर लिस्ट में बदलाव करना उसका संवैधानिक अधिकार है और कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सकती. बिहार में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) पर उपजे विवाद और सुप्रीम कोर्ट के आधार कार्ड को लेकर दिए गए निर्देशों को विस्तार से जानें.
By: Ajay Tiwari
Sep 13, 20256:00 PM
नई दिल्ली. स्टार समाचार वेब
भारतीय चुनाव आयोग (EC) ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर स्पष्ट किया है कि पूरे देश में समय-समय पर स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) कराना उसका विशेष अधिकार है. आयोग ने कहा कि अगर कोर्ट इस प्रक्रिया को लेकर कोई निर्देश देती है, तो यह उसके संवैधानिक अधिकार क्षेत्र में सीधा दखल होगा.
संविधान के अनुच्छेद 324 का हवाला
आयोग ने अपने हलफनामे में जोर देते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत, मतदाता सूची तैयार करना और उसमें संशोधन करना केवल चुनाव आयोग का ही अधिकार है. यह जिम्मेदारी किसी अन्य संस्था, यहां तक कि अदालत को भी नहीं सौंपी जा सकती. आयोग ने यह भी बताया कि वह अपनी जिम्मेदारी को बखूबी समझता है और वोटर लिस्ट को पारदर्शी बनाए रखने के लिए लगातार काम करता है.
यह हलफनामा वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका के जवाब में दायर किया गया था. याचिका में मांग की गई थी कि चुनाव आयोग को चुनावों से पहले SIR कराने का निर्देश दिया जाए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि देश की राजनीति और नीतियां केवल भारतीय नागरिक ही तय करें.
वोटर लिस्ट में बदलाव: चुनाव आयोग का कानूनी आधार
चुनाव आयोग ने अपने दावे के समर्थन में कई कानूनी प्रावधानों का हवाला दिया:
धारा 21: मतदाता सूची में बदलाव की कोई निश्चित समय सीमा नहीं है, लेकिन यह आम चुनाव, विधानसभा चुनाव या उपचुनाव से पहले जरूरी है.
नियम 25: मतदाता सूची में छोटे या बड़े स्तर पर बदलाव करना पूरी तरह से चुनाव आयोग के विवेक पर निर्भर करता है.
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950: यह अधिनियम और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 चुनाव आयोग को यह तय करने की छूट देते हैं कि कब समरी रिवीजन और कब इंटेंसिव रिवीजन किया जाए.
बिहार में SIR पर विवाद और सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
यह पूरा विवाद बिहार में चल रही SIR प्रक्रिया के बाद उठा है. 2003 के बाद पहली बार हो रही इस प्रक्रिया में लगभग 65 लाख नाम हटाए गए, जिससे कुल मतदाताओं की संख्या 7.9 करोड़ से घटकर 7.24 करोड़ हो गई है. आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया मृत, डुप्लीकेट या अवैध प्रवासियों के नामों को हटाने के लिए की जा रही है.
हालांकि, विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि यह मतदाताओं को उनके वोटिंग अधिकार से वंचित करने की साजिश है.
इसी बीच, सुप्रीम कोर्ट ने 8 सितंबर को निर्देश दिया था कि बिहार में SIR प्रक्रिया में आधार कार्ड को पहचान प्रमाण के तौर पर अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए. हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, लेकिन इसका उपयोग वोटर लिस्ट में दिए गए आधार नंबर की प्रामाणिकता की जांच के लिए किया जा सकता है.