भोपाल में महर्षि वाल्मीकि प्रकटोत्सव के समरसता सम्मेलन में CM डॉ. मोहन यादव ने 2016 कुंभ का किस्सा सुनाया। उन्होंने बताया कि कैसे तय हुआ उमेशनाथ महाराज को राज्यसभा भेजने का फैसला।
By: Ajay Tiwari
Oct 12, 202513 hours ago
भोपाल: स्टार समाचार वेब
महर्षि वाल्मीकि प्रकटोत्सव के उपलक्ष्य में रविवार को भोपाल के मानस भवन में 'समरसता सम्मेलन' का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने समाज को जोड़ने और सामाजिक समरसता पर ज़ोर दिया।
अपने संबोधन के दौरान, मुख्यमंत्री ने बालयोगी उमेशनाथ महाराज को राज्यसभा भेजे जाने के पीछे की कहानी का खुलासा किया। उन्होंने 2016 के उज्जैन सिंहस्थ कुंभ को याद करते हुए कहा, "मैं 2016 के कुंभ और उसके पहले-बाद के कुंभ को याद करता हूँ। 2016 में उज्जैन के वाल्मीकि घाट पर सभी महामंडलेश्वर, संत, महंतों के साथ मैं भी मौजूद था। हमारे गृह मंत्री जी (तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह) भी वहाँ थे।"
सीएम ने बताया कि जब क्षिप्रा नदी का आंचल उस वाल्मीकि धाम पर पहली बार धूमधाम से जगमगाया, तभी उन्होंने यह तय कर लिया था। उन्होंने कहा, "सच मानो तो उसी दिन मैंने दिमाग लगा लिया था कि उमेशनाथ महाराज इस सभा के साथ राज्यसभा के लायक हैं। इन्हें उस सभा में जाना चाहिए।"
डॉ. यादव ने ज़ोर देकर कहा कि यह सामाजिक समरसता का सच्चा उदाहरण है, जहाँ कोई ऊँचा-नीचा नहीं है। उन्होंने कहा कि महाकाल की नगरी अवंतिका (उज्जैन) का आशीर्वाद जिसे मिल जाए, वह विक्रमादित्य, कालिदास या भर्तृहरि बनता है, और महाराज जी को भी नियति ने राज्यसभा पहुँचाया है।
कुंभ में स्वच्छता मित्रों की भूमिका सबसे बड़ी
सीएम ने कुंभ मेले के सफल आयोजन में स्वच्छता मित्रों की अहम भूमिका की सराहना की। उन्होंने कहा कि हमारी और भगवान की भूमिका सच में बराबर है। जहाँ भगवान मनुष्य मात्र की गलतियों को क्षमा करने और समाज को जोड़ने का आशीर्वाद देते हैं, वहीं कुंभ मेले में सबसे बड़ी स्वच्छता की भूमिका स्वच्छता मित्रों की होती है।
वाल्मीकि जी ने दिया मानवता को अनुपम उपहार
मुख्यमंत्री ने महर्षि वाल्मीकि के योगदान को याद करते हुए कहा कि उन्होंने भगवान श्रीराम के चरित्र को 'रामायण' के रूप में पिरोकर मानवता को एक अनुपम उपहार दिया है। उन्होंने कहा, "महर्षि वाल्मीकि की वाणी से जो रामायण निकली, वह केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है।"
डॉ. यादव ने बताया कि महर्षि वाल्मीकि की रामायण में समरसता केवल विचार नहीं, बल्कि एक जीता-जागता संदेश है। भगवान श्रीराम ने निषादराज को मित्र बनाया, शबरी माता के झूठे बेर प्रेम से खाए और धर्म युद्ध में श्री हनुमान तथा वानर सेना को साथ लेकर चले। मुख्यमंत्री ने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चरित्र को शब्दों में पिरोने वाले आदि कवि महर्षि वाल्मीकि अजर-अमर रहेंगे।