सावन मास में शिवाभिषेक (रुद्राभिषेक) का अत्यधिक महत्व है। जानें क्यों यह भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है और कैसे इससे आपकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
By: Ajay Tiwari
Jul 20, 20259:27 PM
सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित मास है। इस माह में शिवाभिषेक (विशेषकर रुद्राभिषेक) का अत्यधिक महत्व है। इसे सबसे पवित्र और फलदायी अनुष्ठानों में से एक माना जाता है। सावन मास भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। ऐसी मान्यता है कि इस माह में भगवान शिव पृथ्वी पर आकर अपने भक्तों को दर्शन देते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए सावन माह में ही कठोर तपस्या की थी। इसलिए यह महीना शिव-पार्वती के प्रेम और समर्पण का प्रतीक भी है। सावन में भगवान शिव को जल अर्पित करने और अभिषेक करने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं। उन्हें "आशुतोष" कहा जाता है, जिसका अर्थ है जो शीघ्र प्रसन्न होते हैं। शिवाभिषेक से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह घर से नकारात्मक शक्तियों को दूर करता है और मन को शांति प्रदान करता है।
कुंडली में मौजूद विभिन्न ग्रह दोषों, जैसे कालसर्प दोष, पितृ दोष, शनि की साढ़ेसाती या अन्य ग्रहों के अशुभ प्रभावों को शांत करने के लिए रुद्राभिषेक को अत्यंत प्रभावी उपाय माना जाता है। रुद्राभिषेक करने से व्यक्ति के पिछले जन्मों और इस जन्म के पापों का नाश होता है, आत्मा शुद्ध होती है, और आध्यात्मिक विकास होता है। यह मानसिक तनाव, भय और चिंता को दूर करता है। रुद्राभिषेक से मन को गहन शांति मिलती है।
शिवाभिषेक के मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
ॐ नमः शिवाय॥
ॐ नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च ॥
शिव आरती
ॐ जय शिव ओंकारा, प्रभु जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा...
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
हंसानन षडानन, गरुड़ासन साजे॥ ॐ जय शिव ओंकारा...
दो भुज चार चतुर्भुज, दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते, त्रिभुवन जन मोहे॥ ॐ जय शिव ओंकारा...
श्वेताम्बर पीताम्बर, बाघाम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक, भूतादिक संगे॥ ॐ जय शिव ओंकारा...
कर के मध्य कमंडल, चक्र त्रिशूल धर्ता।
जगकर्ता जगहर्ता, जगपालन कर्ता॥ ॐ जय शिव ओंकारा...
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये, ये तीनों एका॥ ॐ जय शिव ओंकारा...
त्रिगुण शिवजी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय शिव ओंकारा...