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विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी 2025: जानें तिथि, महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

By: Ajay Tiwari

Sep 09, 20254:22 PM

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विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी 2025: जानें तिथि, महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी: गणेशजी और पितरों का एक साथ मिलेगा आशीर्वाद

स्टार  समाचार वेब. धर्म डेस्क

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि, जिसे विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है, इस बार 10 सितंबर, मंगलवार को पड़ रही है। यह तिथि इसलिए भी खास है क्योंकि यह पितृपक्ष की पहली संकष्टी चतुर्थी है। इस दिन प्रथम पूज्य भगवान गणेश के साथ-साथ पितरों का भी आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से भगवान गणेश की पूजा, व्रत और पितरों का श्राद्ध व तर्पण करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है और सभी संकट दूर होते हैं।

शुभ मुहूर्त और विशेष योग

पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का आरंभ 10 सितंबर को दोपहर 3 बजकर 37 मिनट पर होगा और इसका समापन 11 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार, यह व्रत 10 सितंबर को ही रखा जाएगा। इस दिन वृद्धि योग और ध्रुव योग का निर्माण हो रहा है, जिससे इस चतुर्थी का महत्व और भी बढ़ जाता है।

विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी का महत्व

'संकष्टी' का अर्थ होता है 'संकटों को हरने वाला'। इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से जीवन की सभी बाधाएं, रोग, और परेशानियां दूर हो जाती हैं। माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र और उत्तम स्वास्थ्य के लिए यह व्रत रखती हैं। पितृपक्ष में आने के कारण इस दिन पितरों को तर्पण और श्राद्ध करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है और घर-परिवार में खुशहाली आती है।

पूजा विधि

  • प्रातः काल: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और पीले वस्त्र पहनें।

  • गणेश पूजा: पूजा स्थल को साफ कर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें। उन्हें दूर्वा, सिंदूर और लाल फूल अर्पित करें।

  • भोग: बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं। इनमें से पांच लड्डू ब्राह्मणों को दान करें और बाकी प्रसाद के रूप में परिवार में बांटें।

  • पाठ और जाप: पूजा के दौरान श्री गणेश स्तोत्र, अथर्वशीर्ष और संकटनाशक गणेश स्तोत्र का पाठ करें। 'ऊं गं गणपतये नमः' मंत्र का 108 बार जाप करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

  • रात्रि पूजन: शाम के समय गाय को हरी दूर्वा या गुड़ खिलाएं। रात में चंद्रमा को अर्घ्य देते समय 'सिंहिका गर्भसंभूते चन्द्रमांडल सम्भवे। अर्घ्यं गृहाण शंखेन मम दोषं विनाशय॥' मंत्र का जाप करें।

संकष्टी का व्रत रखने से ग्रहबाधा और ऋण से संबंधित दोष भी शांत होते हैं।

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