1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस पर जानिए HIV/AIDS की वैश्विक स्थिति और भारत में किए गए प्रयासों का लेखा-जोखा। संयुक्त राष्ट्र के '95-95-95' लक्ष्य की प्रगति क्या है, और 2030 तक इस महामारी को खत्म करने की राह में क्या चुनौतियाँ हैं? नवीनतम आँकड़ों के साथ विस्तृत आलेख पढ़ें।
By: Ajay Tiwari
Nov 28, 20253:35 PM
फीचर डेस्क. स्टार समाचार वेब
हर साल 1 दिसंबर को मनाया जाने वाला विश्व एड्स दिवस (World AIDS Day), एचआईवी (HIV) संक्रमण के कारण होने वाले एड्स (AIDS) के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इस महामारी से पीड़ित लोगों के प्रति एकजुटता प्रदर्शित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। यह दिन उन लाखों लोगों को श्रद्धांजलि देने का भी है जिन्होंने इस बीमारी के कारण अपनी जान गंवाई है। हालाँकि चिकित्सा विज्ञान ने पिछले कुछ दशकों में अभूतपूर्व प्रगति की है—एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART) ने HIV को एक जानलेवा बीमारी से एक प्रबंधनीय पुरानी स्थिति में बदल दिया है—फिर भी इसे पूरी तरह समाप्त करने की लड़ाई अभी भी जारी है।
संयुक्त राष्ट्र (UNAIDS) के अनुसार, वर्ष 2023 के अंत तक, दुनिया भर में अनुमानित 3.9 करोड़ (39 मिलियन) लोग एचआईवी के साथ जीवन जी रहे थे। इन आँकड़ों में बड़ी सफलता भी छिपी है: एक अनुमान के अनुसार, 1990 के दशक के मध्य से अब तक उपचार और रोकथाम के प्रयासों के कारण 2.5 करोड़ (25.3 मिलियन) से अधिक लोगों की जान बचाई जा चुकी है।
HIV महामारी को 2030 तक समाप्त करने के लिए, UNAIDS ने '95-95-95' लक्ष्य निर्धारित किया है।
HIV के साथ जी रहे 95% लोगों को अपनी स्थिति का पता हो।
उनमें से 95% लोगों को एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART) मिल रही हो।
ART ले रहे लोगों में से 95% में वायरल लोड सप्रेस हो (यानी वे संक्रमण आगे न फैला सकें)। वैश्विक स्तर पर, 2022 के अंत तक, ये आँकड़े क्रमशः 86%, 89% और 93% थे। हालाँकि प्रगति सराहनीय है, लेकिन अंतिम लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अभी भी बड़े प्रयास की आवश्यकता है, खासकर बच्चों और प्रमुख जोखिम समूहों में।
भारत में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम (NACP) ने HIV के प्रसार को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, भारत में HIV का प्रसार धीरे-धीरे घट रहा है। हालाँकि, भारत अभी भी HIV के साथ जी रहे लोगों की संख्या के मामले में विश्व में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। भारत में HIV के साथ जी रहे लोगों में से अधिकांश को अब मुफ्त ART उपलब्ध है, और देश 'टेस्ट एंड ट्रीट' नीति पर सख्ती से काम कर रहा है। चुनौती अब सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों, प्रवासी कामगारों और हाई-रिस्क समूहों तक पहुंच बनाने और कलंक (Stigma) को खत्म करने में है। भारत ने मातृत्व से शिशु में HIV संक्रमण (Parent-to-Child Transmission) को समाप्त करने के लिए भी उल्लेखनीय काम किया है।
HIV/AIDS के खिलाफ लड़ाई में सबसे बड़ी बाधा चिकित्सा या तकनीकी नहीं, बल्कि सामाजिक कलंक (Stigma) और भेदभाव है। HIV से पीड़ित लोगों को अक्सर उनके कार्यस्थलों, परिवारों और समुदायों में अलगाव और अनुचित व्यवहार का सामना करना पड़ता है। यह डर लोगों को जाँच कराने, अपनी स्थिति का खुलासा करने और नियमित उपचार लेने से रोकता है।
UNAIDS ने जोर दिया है कि HIV महामारी का अंत तब तक संभव नहीं है जब तक असमानताओं को समाप्त नहीं किया जाता। शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और कानूनी सुरक्षा तक समान पहुँच सुनिश्चित करना, खासकर कमजोर और हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए, एड्स मुक्त विश्व की कुंजी है।
विश्व एड्स दिवस हमें याद दिलाता है कि भले ही हमने बहुत कुछ हासिल किया हो, लेकिन आत्मसंतुष्ट होने का समय नहीं आया है। जब तक हर नया संक्रमण, एड्स से जुड़ी हर मौत, और HIV से पीड़ित हर व्यक्ति के खिलाफ होने वाला हर भेदभाव शून्य नहीं हो जाता, तब तक वैश्विक प्रतिबद्धता बनाए रखनी होगी। 2030 का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति, सामुदायिक भागीदारी, निरंतर धन और वैज्ञानिक नवाचारों को समान रूप से वितरित करने की आवश्यकता है।