बांग्लादेश में शेख़ हसीना की पार्टी अवामी लीग पर प्रतिबंध लगने के बाद जश्न मनाते लोग
By: demonews
May 17, 20256 hours ago
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने पूर्व पीएम शेख़ हसीना की पार्टी अवामी लीग पर पिछले सप्ताह प्रतिबंध लगा दिया. अंतरिम सरकार की एडवाइज़री काउंसिल की एक बैठक में अवामी लीग पर बैन लगाने का फै़सला लिया गया था.
अवामी लीग की छात्र इकाई यानी 'छात्र अवामी लीग' पर पिछले साल ही प्रतिबंध लग चुका है.
ऐसे में बांग्लादेश की राजनीति पर लंबे समय से नज़र रखने वाले कई जानकार इसे 'राजनीतिक संकट' की तरह देखते हैं.
ये कहा जा रहा है कि देशभर में और ख़ासतौर पर ढाका में लगातार हो रहे प्रदर्शनों के बाद अंतरिम सरकार की 'कैबिनेट' ने यह फ़ैसला लिया.
तरिम सरकार के क़ानूनी सलाहकार आसिफ़ नज़रूल ने कैबिनेट की बैठक के बाद जो बयान जारी किया था, उसमें कहा गया, "ये प्रतिबंध तब तक रहेगा जब तक अवामी लीग का मुक़दमा 'इंटरनेशनल क्राइम्स (ट्रिब्यूनल) एक्ट' के तहत ख़त्म नहीं हो जाता."
इमेज कैप्शन,बांग्लादेश में कई सियासी दल अवामी लीग पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे थे
अवामी लीग पर प्रतिबंध लगाने की मांग का समर्थन जमात-ए-इस्लामी, हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम और 'नेशनल सिटीज़न पार्टी' जैसे दल लंबे समय से कर रहे थे.
बांग्लादेश के पत्रकार एसएम अमनुर रहमान 'रफ़त' ने बीबीसी से कहा, "वैसे ख़ुद बेग़म ख़ालिदा ज़िया की पार्टी यानी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) इस प्रतिबंध के पक्ष में नहीं थी क्योंकि अवामी लीग बांग्लादेश के चुनाव आयोग में एक पंजीकृत दल है. लेकिन विरोध प्रदर्शनों की वजह से उसने इस संबंध में टिप्पणी नहीं की."
हालांकि, जानकारों का मानना है कि इसके पीछे की वजह ये हो सकती है कि ख़ुद बीएनपी भी चाहती है कि देश में जल्द से जल्द लोकतंत्र की बहाली हो जाए और चुनाव घोषित कर दिए जाएं.
बांग्लादेश के कई सामाजिक संगठन और पत्रकारों ने बीबीसी को नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया कि जिस तरह प्रतिबंध लगाया गया और जो घोषणा अंतरिम सरकार ने की है, उससे सभी डरे हुए हैं. उनका कहना है कि इस तरह से ये अभिव्यक्ति की आज़ादी पर भी प्रतिबंध की बात है.
भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने 13 मई को दिल्ली में पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि ये एक "चिंता का विषय है" क्योंकि बांग्लादेश में आने वाले चुनाव में सभी दलों की भागीदारी होनी चाहिए. किसी भी दल को इसमें भाग लेने से रोकना लोकतंत्र के लिए सही नहीं होगा.
इस मुद्दे पर भारत के बयान पर बांग्लादेश की भी प्रतिक्रिया सामने आई.
अंतरिम सरकार के सलाहकार मोहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफ़ीक़ उल इस्लाम ने कहा, "अवामी लीग के कार्यकाल में स्वतंत्र राजनीतिक सोच को निचोड़ कर उसे बिल्कुल सीमित कर दिया गया था. अवामी लीग ने देश की संप्रभुता के साथ भी समझौता कर लिया था."
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बांग्लादेश के वरिष्ठ पत्रकार रफ़त ने बीबीसी से कहा, "अपने कार्यकाल में राजनीतिक विरोधियों के ख़िलाफ़ अवामी लीग भी सरकारी शक्तियों और क़ानूनों का दुरुपयोग करती रही और उन्हें प्रताड़ित करने का भी काम किया."
उनके मुताबिक़, अभी बांग्लादेश में घरेलू हालात तो ख़राब हैं ही, म्यांमार से लगी सीमा पर अराकान आर्मी के हमले लगातार बढ़ रहे हैं जिसकी वजह से बांग्लादेश की फ़ौज को वहां तैनात किया जा रहा है.
वो कहते हैं, "ऐसे हालात में मुझे नहीं लगता कि जल्द आम चुनाव कराना संभव हो पाएगा."
अवामी लीग पर अपने शासन के दौरान चुनावों में धांधली के आरोप लगते रहे हैं.
कोलकाता में वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक निर्माल्य मुखर्जी कहते हैं कि ये भी याद रखना ज़रूरी है कि अवामी लीग जब सत्ता में आई थी तो उसको कुल मतों का 98 प्रतिशत मिला था जो कि लोकतंत्र में बिल्कुल असंभव है.
बीबीसी से बातचीत में वो कहते हैं, "जो कुछ अंतरिम सरकार के सलाहकार कर रहे हैं वो भारत विरोधी ही है. वो पाकिस्तान और चीन से नज़दीकियां बढ़ाने की बात करते रहे हैं. वहाँ की फ़ौज भी तीन हिस्सों में अपनी वफ़ादारी अंजाम दे रही है. फ़ौज का एक धड़ा ऐसा है जो शेख़ हसीना के साथ है और जिसने शेख़ हसीना को भारत भागने में मदद की थी. एक धड़ा यूनुस के प्रति वफ़ादारी दिखा रहा है तो तीसरा बांग्लादेश के लिए."
मुखर्जी का कहना है, "चूंकि रज़ाकारों ने शेख़ हसीना के पिता की हत्या की थी, इसलिए वो लगातार बदला लेती रहीं. ये उर्दू या हिंदी बोलने वाले लोग थे."
'रज़ाकार' शब्द का इस्तेमाल कथित तौर पर उन लोगों के लिए क्या जाता है, जिन्होंने 1971 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना का साथ दिया था.
मुखर्जी कहते हैं कि शेख़ हसीना पर भारत के इशारे पर सरकार चलाने के आरोप लगते रहे हैं.
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बांग्लादेश में एक विशेष क़ानून मौजूद है. वो है – 'स्पेशल पॉवर्स एक्ट 1974'. इस क़ानून के तहत किसी भी राजनीतिक दल या संगठन पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है.
इसके अलावा एक अन्य क़ानून भी है – 'पॉलिटिकल पार्टीज़ ऑर्डिनेंस 1978'. इस क़ानून का इस्तेमाल मूलतः राजनीतिक दलों की गतिविधियों को देखते हुए किया जाता रहा है.
जब साल 1971 में बांग्लादेश पाकिस्तान से आज़ाद हुआ तो उस समय 'बंग बंधू' यानी शेख़ मुजीबुर रहमान ने धार्मिक रुझानों वाले राजनीतिक दलों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था. इसमें जमात-ए-इस्लामी भी शामिल थी.
फिर साल 1979 में राष्ट्रपति ज़िया उर रहमान ने इस पर से प्रतिबंध हटा दिया था.
इसके बाद साल 2013 में बांग्लादेश के एक उच्च न्यायालय ने जमात-ए-इस्लामी का पंजीकरण ही रद्द कर दिया था. अदालत ने ये टिप्पणी करते हुए फ़ैसला दिया कि इसका अस्तित्व 'धर्म निरपेक्ष बांग्लादेश के मूल सिद्धांतों के ख़िलाफ़ है.'
अवामी लीग ने पिछले साल अगस्त में इस संगठन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था और जमात के कई नेताओं को जेल में बंद कर दिया था.
लेकिन शेख़ हसीना के सत्ता से बेदख़ल होने और नई अंतरिम सरकार के हाथों में देश की बागडोर आने के बाद ये प्रतिबंध हटा लिया गया और जमात के 'कट्टरपंथी नेताओं' को रिहा कर दिया गया.
बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी पर भी साल 1983 में प्रतिबंध लगा दिया गया था.
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उन्होंने कहा, "अवामी लीग के कार्यकाल में आम लोगों और राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं पर ढाए गए ज़ुल्म की यादें लोगों के दिमाग़ में अब भी बनी हुई हैं. देश की अखंडता और संप्रभुता को बचाए रखने लिए अवामी लीग पर प्रतिबंध लगाना ज़रूरी था. चुनाव हमारे देश का आंतरिक मामला है."