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सावधान... खतरे में ‘अविश्वास’ वाले नगरपालिका-परिषद अध्यक्षों की कुर्सी 

मध्यप्रदेश में दर्जन भर नगर पालिका-परिषद में एक बार फिर राजनीतिक हलचल बढ़ गई है। विवादित नगर पालिका-परिषद अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी तेज हो गई है।

By: Arvind Mishra

Aug 05, 202512:09 PM

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सावधान... खतरे में ‘अविश्वास’ वाले नगरपालिका-परिषद अध्यक्षों की कुर्सी 

मध्यपदेश के मऊगंज जिले की नगर परिषद।

  • मध्यप्रदेश में अविश्वास प्रस्ताव पर रोक का एक साल पूरा

  • संघ का सीएम को लिखा, एक बार फिर बदला जाए नियम 

  • प्रदेश सरकार ने एक साल पहले बदल दिया पूरा कानून

भोपाल। स्टार समाचार वेब

मध्यप्रदेश में दर्जन भर नगर पालिका-परिषद में एक बार फिर राजनीतिक हलचल बढ़ गई है। विवादित नगर पालिका-परिषद अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी तेज हो गई है। दरअसल, पिछले वर्ष मध्यप्रदेश सरकार द्वारा नियमों में बदलाव कर अविश्वास प्रस्ताव लाने की न्यूनतम अवधि को दो साल से बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया था। अब अध्यक्ष का तीन वर्ष का कार्यकाल पूर्ण होने को है, जिससे फिर से अविश्वास प्रस्ताव का रास्ता साफ हो गया है। वहीं दूसरी ओर मप्र नगर पालिका अध्यक्ष संघ ने सीएम को पत्र लिखकर मांग की है कि अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के नियम को एक बार फिर बदला जाए। दरअसल, पिछले ही साल अगस्त में राज्य सरकार ने कानून में संशोधन कर अविश्वास प्रस्ताव लाने की अवधि को दो से बढ़ाकर तीन साल कर दिया था। साथ ही ये भी बदलाव किया था कि पार्षद तीन चौथाई बहुमत होने पर ही प्रस्ताव ला सकते हैं। इससे पहले ये दो चौथाई बहुमत के साथ स्वीकार होता था। नियम में संशोधन के बाद भी अब अध्यक्षों के खिलाफ प्रस्ताव लाने की तैयारी हो रही है। इसमें खास बात यह है कि भाजपा के ही पार्षद अपने पार्टी अध्यक्ष के खिलाफ बगावत करने पर आमादा है।

नपा एसोसिएशन ने की यह मांग

मप्र नपा अध्यक्ष संघ ने नगर पालिका और परिषद अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की मियाद 5 साल करने की मांग मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से की है। इसके लिए एक पत्र भी लिखा है। संघ के अध्यक्ष जमनादास का कहना है कि इससे पहले जब अविश्वास प्रस्ताव लाने की मियाद 2 साल थी तब भी संघ ने सीएम को पत्र लिखकर इसे 5 साल करने की मांग की थी।  

कल से पूरा होगा तीन साल का कार्यकाल

निकायों में अध्यक्षों का तीन साल का कार्यकाल 6 अगस्त से लेकर 11 अगस्त के बीच पूरा होगा।  इसके बाद ही अविश्वास प्रस्ताव कलेक्टर को दिया जा सकता है। ऐसे में अध्यक्षों के खिलाफ बगावती तेवर अपनाने वाले पार्षद रणनीति बनाने में जुट गए हैं। पिछले साल जिन अध्यक्षों को कुर्सी से हटाने की कवायद हुई थी, इस बार वहीं अविश्वास प्रस्ताव की उम्मीद है।

मऊगंज: अध्यक्ष के खिलाफ 12 पार्षद

मध्यपदेश के मऊगंज जिले की नगर परिषद के अध्यक्ष बृजवासी पटेल भाजपा के होने के बाद भी सिर्फ तीन साल बाद वाले नियम से बच गए थे। यहां 15 में से 12 पार्षद अध्यक्ष बृजवासी पटेल के खिलाफ थे। अनिमितताओं और भ्रष्टाचार को लेकर भाजपा पार्षदों ने ही पटेल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। लेकिन सरकार द्वारा बनाया गया नियम पटेल के लिए संजीवनी का काम कर गया। अब एक बार फिर भाजपा के साथ कांग्रेस के पार्षद तैयारी में जुट गए हैं। हालांकि इससे पहले बृजवासी कांग्रेस में ही रहे हैं।

देवरी: पार्षदों ने कलेक्टर को सौंपा अविश्वास

इधर, देवरी नगर पालिका के 12 पार्षदों ने अध्यक्ष नेहा जैन के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव कलेक्टर को सौंपा था। इस दौरान अध्यक्ष पर वार्डों में विकास कार्य नहीं करवाने के आरोप लगाए थे। यहां 15 पार्षदों में से 13 भाजपा और दो कांग्रेस के पार्षद हैं। अध्यक्ष पद पर बने रहने के लिए अब उन्हें 12 पार्षदों का समर्थन चाहिए। 2022 में निकाय चुनाव के बाद से ही पार्षद दो धड़े में बंट गए थे। अध्यक्ष पद के लिए नेहा के खिलाफ भाजपा की ही आरती जैन मैदान में उतर गई थीं।

नर्मदापुरम: 21 पार्षदों ने प्रस्ताव पर किए थे हस्ताक्षर

नर्मदापुरम में नीतू यादव 29 वोट लेकर नगर पालिका अध्यक्ष बनी थीं, लेकिन दो साल का कार्यकाल (11 अगस्त 2024) पूरा होने से पहले ही उन्हें पद से हटाने के लिए 21 पार्षदों ने न सिर्फ मोर्चा खोल दिया था, बल्कि अविश्वास प्रस्ताव पर दस्तखत भी कर दिए थे। तब पार्षदों का आरोप था कि उनकी अनदेखी हो रही है। अध्यक्ष विकास कार्यों में रुकावट बन रही हैं।

टीकमगढ़: सम्मेलन की तारीख थी तय 

टीकमगढ़ नगर पालिका अध्यक्ष अब्दुल गफ्फार को हटाने के लिए विशेष सम्मेलन की तारीख भी तय हो गई थी। यहां 19 पार्षदों ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। जिनमें से भाजपा के 11, कांग्रेस के 6 और 2 निर्दलीय पार्षद हैं। अधिकांश पार्षद, चाहे वह पक्ष हो या विपक्ष, अध्यक्ष की कार्यप्रणाली से नाराज चल रहे थे। यह नाराजगी 20 अगस्त 2024 को अविश्वास प्रस्ताव के रूप में सामने आई थी।

दमोह: वोटिंग तक पहुंची थी बात

दमोह नगर पालिका में अध्यक्ष मंजू वीरेंद्र राय को पद से हटाने की तैयारी थी। मामला कलेक्टर के पास पहुंच गया था, लेकिन वोटिंग से पहले ही नए अध्यादेश से दोनों को राहत मिल गई थी। यहां भाजपा के 20 पार्षदों ने कलेक्टर को शपथ पत्र देकर अध्यक्ष को हटाने की मांग की थी। दरअसल, नगर पालिका के 39 वार्डों में से भाजपा ने 14, कांग्रेस ने 17, सिद्धार्थ मलैया द्वारा बनाई पार्टी टीएसएम ने 5, बसपा ने एक और दो वार्डों में निर्दलीय जीते थे। बाद में टीएसएम के 5 और दोनों निर्दलीय भाजपा में शामिल हो गए। ऐसे में भाजपा पार्षदों की संख्या बढ़कर 21 हो गई।

बानमोर: भाजपा में शामिल होकर टाल दिया था खतरा

नपा अध्यक्ष के चुनाव में गीता जाटव को 9 वोट, जबकि कांग्रेस के कमल सिंह राजे को 6 वोट मिले थे। जाटव भले ही अध्यक्ष बन गईं, लेकिन भाजपा को डर था कि निर्दलीय पार्षदों ने पाला बदल लिया तो अध्यक्ष पद चला जाएगा। इस बीच उपाध्यक्ष राजवीर यादव और अध्यक्ष गीता जाटव के बीच पटारी नहीं बैठ रही थी। दोनों के बीच परिषद कार्यालय में अध्यक्ष से विवाद हो गया था। इसके बाद यादव ने भाजपा के 9 ,कांग्रेस के एक पार्षद को अपने पाले में लाकर 10 पार्षदों के समर्थन होने का पत्र कलेक्टर को सौंप दिया था। भाजपा के न्यू जॉइनिंग अभियान के दौरान कांग्रेस नेता राकेश मावई के साथ चार पार्षदों ने भी भाजपा की सदस्या ले ली।

चाचौड़ा-कुंभराज: अध्यक्षों के खिलाफ नाराजगी

चाचौड़ा नगर परिषद अध्यक्ष भाजपा की सुनीता प्रदीप नाटानी के विरोध में 15 में से 13 व कुंभराज में शारदा साहू पर 15 में से 13 पार्षदों ने असंतोष था। लेकिन अविश्वास प्रस्ताव पर आगे कार्रवाई रोक दी गई थी। विरोध करने वाले पार्षदों की इस संख्या को देखें तो दोनों अध्यक्षों की कुर्सी खतरे में आ सकती है।

शाढोरा: आठ पार्षदों ने खोला था मोर्चा

अशोकनगर के नगर परिषद शाढोरा में 15 में से 8 पार्षदों ने नगर परिषद अध्यक्ष अशोक माहोर को हटाने का आवेदन दिया था, लेकिन माहोर को एक साल राहत मिल गई थी। अब अध्यक्ष को पद से हटाना है तो अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए 12 पार्षदों की जरूरत होगी। 

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