लाख दावों और सख्ती के बाद भी राज्यों की विधानसभा हो या देश की लोकसभा, वंशवाद की बेल हर जगह लहलहा रही है। सत्ता में बैठा हर पांचवा नेता वंशवादी राजनीतिक की देन है। इसी तथ्य के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि के एक लाख युवाओं को राजनीति में लाने की बात कही थी।
By: Arvind Mishra
Sep 13, 20251:29 PM
नई दिल्ली। स्टार समाचार वेब
लाख दावों और सख्ती के बाद भी राज्यों की विधानसभा हो या देश की लोकसभा, वंशवाद की बेल हर जगह लहलहा रही है। सत्ता में बैठा हर पांचवा नेता वंशवादी राजनीतिक की देन है। इसी तथ्य के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि के एक लाख युवाओं को राजनीति में लाने की बात कही थी। लोकसभा में करीब एक तिहाई सांसद वंशवाद की उपज हैं या परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। वहीं राज्यों की विधानसभाओं में ऐसे सदस्य 20 प्रतिशत हैं। एडीआर की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश पर स्थापित राजनीतिक परिवारों का कड़ा नियंत्रण है।
लोकसभा में वंशवादी पृष्ठभूमि से आने वाले सदस्य 31 प्रतिशत हैं। वहीं राज्य विधानसभाओं में ये प्रतिशत 20 है। यह दिखाता है कि राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में प्रवेश पर स्थापित राजनीतिक परिवारों का कड़ा नियंत्रण है। वहीं राज्यों की राजनीति में बाहरी लोगों का प्रवेश अपेक्षाकृत आसान है।
छोटे राज्यों की तुलना में बड़े राज्यों में, जहां राजनीतिक दलों का संगठन मजबूत हैं, वहां वंशवाद ज्यादा जगह नहीं बना पाया है, जैसे तमिलनाडु और बंगाल में ऐसी पृष्ठभूमि से आने वाले जनप्रतिनिधियों का प्रतिशत क्रमश: 15 और 9 है। वहीं झारखंड और हिमाचल में ऐसे सदस्यों का प्रतिशत 28 और 27 है।
वंशवादी राजनीति में महिलाओं का दबदबा दिख रहा है। ऐसी पृष्ठभूमि से आने वाली महिला सदस्यों का प्रतिशत 47 है जबकि पुरुष सदस्यों का प्रतिशत 18 है। झारंखड में 73 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 69 प्रतिशत महिला जनप्रतिनिधि राजनीति में पारिवारिक विरासत को आगे बढ़ा रही हैं।
इसका मतलब है कि यहां लगगभ सभी महिला जनप्रतिनिधि परिवार के नेटवर्क पर निर्भर हैं। इससे पता चलता है कि वंशवाद ने राजनीति महिलाओं के लिए दरवाजे खोले, लेकिन इसके साथ ही इससे गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि से आने वाली पहली पीढ़ी की महिला नेताओं के लिए जगह सीमित कर दी।