बिहार विधानसभा चुनाव में 202 सीटों के साथ एनडीएम की प्रचंड जीत हुई है। भाजपा ने अकेले 89 सीटें जीती है। पीएम नरेंद्र मोदी ने 16 रैलियों से एनडीएम को 97 सीटें दिलाई हैं। इसमें 44 नई सीटें हैं। पीएम का स्ट्राइक रेट 80 फीसदी रहा।
By: Arvind Mishra
Nov 15, 202511:56 AM
पटना। स्टार समाचार वेब
बिहार विधानसभा चुनाव में 202 सीटों के साथ एनडीएम की प्रचंड जीत हुई है। भाजपा ने अकेले 89 सीटें जीती है। पीएम नरेंद्र मोदी ने 16 रैलियों से एनडीएम को 97 सीटें दिलाई हैं। इसमें 44 नई सीटें हैं। पीएम का स्ट्राइक रेट 80 फीसदी रहा। स्ट्राइक रेट यानी पीएम ने अपनी रैलियों से कितनी सीटें कवर कीं और उनमें से कितनी सीटें एनडीएम को मिलीं। वहीं एनडीएम के नेताओं में गृहमंत्री अमित शाह का स्ट्राइक रेट सबसे ज्यादा 88 प्रतिशत रहा। महागठबंधन के बड़े नेता राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की लगभग सभी रैलियां फ्लॉप-शो ही सबित हुई हैं। भाजपा पहली बिहार में अपने बूते सरकार बनाने के करीब पहुंच गई है। यानी नीतीश की जदयू के बिना भी वह सरकार बना सकती है। ऐसा करने के लिए उसे सिर्फ 5 सीटें चाहिए। जिसे भाजपा आसानी से जुटा सकती है। नतीजों में एनडीएम में भाजपा को 89, जदयू को 85, चिराग की पार्टी को 19, मांझी की पार्टी को 5 और कुशवाहा की पार्टी को 4 सीट मिली हैं। बहुमत के लिए 122 सीटें चाहिए।
हार के बाद कांग्रेस कर रही मंथन
बिहार विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस ने पहली महत्वपूर्ण बैठक बुलाई है। यह बैठक कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के आवास पर हो रही है, जिसमें नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल और वरिष्ठ नेता अजय माकन मौजूद हैं। इस बैठक में चुनाव परिणामों की समीक्षा, संगठनात्मक कमजोरियों पर चर्चा और आगे की रणनीति तय करने पर विचार किया जा रहा है। कांग्रेस नेतृत्व चुनावी प्रदर्शन को लेकर गंभीर है और बिहार में मिली हार के कारणों को समझने की कोशिश कर रहा है।
ऐसे फ्लॉप हुआ महागठबंधन का शो
बिहार चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। 202 सीटों के साथ एनडीए ने प्रचंड जीत दर्ज की है। वहीं महागठबंधन 35 सीटों पर सिमट गया है। बिहार में महागठबंधन को इस बार जोरदार झटका लगा और आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन ने 2010 के बाद अपना सबसे खराब प्रदर्शन दर्ज किया।
आपसी लड़ाई पड़ गई भारी
महागठबंधन शुरू से ही भरोसे की कमी और पार्टनरों के बीच खींचतान से घिरा रहा। तेजस्वी यादव नेतृत्व करना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस बैकफुट पर रहने को तैयार नहीं थी। वोटर अधिकार यात्रा के बाद राहुल गांधी बिहार की राजनीति से गायब दिखे और अंदरूनी झगड़ों पर बात करने से भी बचते रहे। उधर छोटे साथी जैसे मुकेश सहनी और सीपीएमएल भी खुलकर अपनी हिस्सेदारी मांगने लगे।
वोटों का ट्रांसफर पूरी तरह फेल
तेजस्वी जब दिल्ली में लैंड-फॉर-जॉब्स केस की सुनवाई के लिए गए, तो सबको लगा कि राहुल-तेजस्वी मुलाकात होगी, लेकिन कुछ नहीं हुआ और खबरें आईं कि तेजस्वी नाराज होकर लौट आए। सीट बंटवारे से शुरू हुआ विवाद इतना बढ़ा कि हर पार्टी अपनी-अपनी कैंपेन चलाने लगी। इसका असर कार्यकर्ताओं पर पड़ा और वोटों का ट्रांसफर पूरी तरह फेल हो गया।
तेजस्वी को सीएम फेस बड़ी गलती
तेजस्वी को महागठबंधन का सीएम चेहरा घोषित करना उल्टा पड़ गया। कांग्रेस भी इस फैसले को लेकर आधी-अधूरी दिखी। कांग्रेस में कई नेताओं को लगा कि तेजस्वी पर भ्रष्टाचार और जंगलराज की पुरानी छवि का बोझ था। ऊपर से प्रशांत किशोर लगातार योग्यता और विश्वसनीयता की बात उठा रहे थे, जिससे यह फैसला और विवादित हो गया। कांग्रेस ने अशोक गहलोत को भी भेजा, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
बिहार में फेल हो गया गांधी मैजिक
विपक्ष का कैंपेन कमजोर रहा और सहयोगियों में केमिस्ट्री भी नहीं दिखी। राहुल गांधी जब लैटिन अमेरिका की यात्रा के बाद लौटे, कांग्रेस तब तक मौका खो चुकी थी। वोटर अधिकार यात्रा के दौरान भी राहुल-तेजस्वी की ट्यूनिंग नहीं दिखी। राहुल गांधी पूरी तरह इन्वॉल्व नहीं दिखे और संयुक्त रैलियां भी बहुत कम हुईं। राहुल के कुछ बयान चुनावी माहौल से मेल नहीं खाए। युवा भी राहुल को बिहार का बाहरी नेता मान रहे थे।
मुद्दा जनता में पकड़ नहीं बना पाया
राहुल गांधी ने वोट चोरी के मुद्दे पर बड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंस की और फिर वोटर अधिकार यात्रा निकाली, लेकिन शुरुआती शोर के बाद एसआईआर का मुद्दा जनता में पकड़ नहीं बना पाया। राहुल गांधी वोट चोरी पर अड़े रहे, जो संभवत: एक राष्ट्रीय मुद्दा था, कांग्रेस यह समझने में विफल रही कि इसका असर बिहार की राजनीतिक दरारों तक नहीं पहुंचा।
दिल्ली से पटना तक सीटों पर जंग
सीट शेयरिंग को लेकर विवाद इतना बढ़ा कि दिल्ली तक तलवारें खिंच गईं। पहले लालू-सोनिया संबंध ऐसे तनाव को शांत कर देते थे, लेकिन इस बार वरिष्ठ नेताओं ने दूरी बना ली। अनुभवी मध्यस्थों की कमी से हालात बिगड़ते गए। हालात इतने बिगड़ गए कि आरजेडी और कांग्रेस के बीच बातचीत ही ठप हो गई।