संसद के शीतकालीन सत्र के छठे दिन सोमवार को लोकसभा में वंदे मातरम के 150 साल पूरे पर चर्चा हो रही है। पीएम नरेंद्र मोदी ने चर्चा की शुरुआत की। उन्होंने कहा- वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने पर बहस गर्व की बात है। जिसने हमें त्याग और तपस्या का मार्ग दिखाया था।
By: Arvind Mishra
Dec 08, 202512:45 PM
नई दिल्ली। स्टार समाचार वेब
संसद के शीतकालीन सत्र के छठे दिन सोमवार को लोकसभा में वंदे मातरम के 150 साल पूरे पर चर्चा हो रही है। पीएम नरेंद्र मोदी ने चर्चा की शुरुआत की। उन्होंने कहा- वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने पर बहस गर्व की बात है। जिसने हमें त्याग और तपस्या का मार्ग दिखाया था। उस वंदे मातरम का स्मरण करना हम सभी का सौभाग्य है। हमारे लिए गर्व की बात है कि वंदे मातरम के 150 पूरे होने पर हम इस एतिहासिक पल के साक्षी बन रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा- जब वंदे मातरम के 100 साल पूरे हुए तब देश आपातकाल की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। तब भारत के संविधान का गला घोंट दिया गया था। जब वंदे मातरम 100 साल का हुआ तब देश भक्ति के लिए जीने मरने वाले लोगों को सलाखों में बंद कर दिया गया था। तब एक काला कालखंड उजागर हुआ।वंदे मातरम की यात्रा की शुरुआत बंकिम चंद्र ने 1875 में की थी। यह गीत ऐसे समय लिखा गया था, जब 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेज सल्तनत बौखलाई हुई थी। भारत के लोगों पर भांति-भांति के दबाव डाले गए। भारत के लोगों को मजबूर किया जा रहा था। उस समय उनका राष्ट्रगीत था- गॉड सेव द क्वीन। इसे भारत में घर-घर पहुंचाने का षड्यंत्र चल रहा था। ऐसे में समय बंकिम दा ने चुनौती ली। ईंट का जवाब पत्थर से दिया और वंदे मातरम का जन्म हुआ। 1882 में जब उन्होंने आनंदमठ लिखा तो इस गीत का उसमें समावेश किया। नेताजी सुभाष चंद्रबोस को लिखे पत्र का जिक्र करते हुए पीएम मोदी ने नेहरू ने सुभाष चंद्र बोस को लिखा-गीत के बैकग्राउंड से मुस्लिम समुदाय के लोगों के भड़कने की आशंका है। उन्होंने कांग्रेस के फैसले का जिक्र करते हुए कोलकाता अधिवेशन का भी जिक्र किया। पीएम ने कहा-कांग्रेस ने अक्टूबर में वंदे मातरम के टुकड़े किए गए। तुष्टीकरण की राजनीति के दबाव में कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के सामने घुटने टेक दिए।

आज भी विवाद कर रही कांग्रेस
प्रधानमंत्री ने कहा कि, अक्टूबर में कोलकाता में हुए फैसले के बाद कांग्रेस पहले वंदे मातरम पर समझौता करने के लिए झुकी इसके बाद देश को बंटवारे का दंश भी झेलना पड़ा। वही कांग्रेस आज भी वंदे मातरम को लेकर विवाद कर रही है। उन्होंने कहा कि समाजिक सद्भाव की आड़ में किए गए फैसले के आधार पर कांग्रेस ने तुष्टीकरण की राजनीति को बढ़ावा दिया। जिन्ना के विचारों का समर्थन किया गया।

वंदेमातरम में हजारों वर्ष की सांस्कृतिक ऊर्जा
वंदेमातरम् में हजारों वर्ष की सांस्कृतिक ऊर्जा भी थी, इसमें आजादी का जज्बा भी था और आजाद भारत का विजन भी था। अंग्रेज समझ चुके थे कि 1857 के बाद भारत में लंबे समय तक टिक पाना उनके लिए मुश्किल होता जा रहा है। जिस प्रकार के सपने लेकर वे आए थे, उन्हें यह साफ दिखने लगा कि जब तक भारत को बांटा नहीं जाएगा, लोगों को आपस में लड़ाया नहीं जाएगा, तब तक यहां राज करना कठिन है। तब अंग्रेजों ने बांटो और राज करो का रास्ता चुना, और उन्होंने बंगाल को इसकी प्रयोगशाला बनाया।
वंदे मातरम् गाने पर लगा था जुर्माना
पीएम मोदी ने वंदे मातरम् से जुड़ा किस्सा सुनाते हुए कहा- 20 मई 1906 को बारीसाल ( अब बांग्लादेश में है) में वंद मातरम जुलूस निकाला, जिसमें 10 हजार से ज्यादा सड़कों पर उतरे थे। इसमें हिंदू और मुस्लिम समेत सभी धर्म और जातियों के लोगों ने वंदे मातरम के झंडे हाथ में लेकर सड़कों पर मार्च किया था। रंगपुर के एक स्कूल में जब बच्चों ने यह गीत गाया तो अंग्रेजी सरकार ने 200 छात्रों पर 5-5 रुपये का जुर्माना सिर्फ इसलिए लगा दिया कि उन्होंने वंदे मातरम कहा था। इसके बाद ब्रिटिश हुक्मरानों ने कई स्कूलों में वंदे मातरम गाने पर पाबंदी लगा दी थी।

भगवान श्रीराम के आदर्श
पीएम मोदी ने कहा-वेदों में भी कहा गया है-माता भूमि पुत्रोऽहं पृथिव्या:। यानी पृथ्वी मेरी माता है और मैं इस माता का पुत्र हूं। भगवान श्रीराम ने भी लंका के वैभव को छोड़ते हुए कहा था- जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।
आने वाली पीढ़ी पढ़ेगी
पीएम मोदी ने कहा- गर्व की बात है कि वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने पर इस ऐतिहासिक अवसर के साक्षी बन रहे हैं। एक ऐसा काल खंड, जो हमारे सामने इतिहास की अनगिनित घटनाओं को सामने लेकर आता है। ये चर्चा सदन की प्रतिबद्धता को तो प्रकट करेगा ही, आने वाली पीढ़ी के लिए भी शिक्षा का कारण बन सकती है।

बंकिम दा ने लोगों को सामर्थ्य से परिचित कराया
प्रधानमंत्री ने ब्रिटिश हुकूमत के शासनकाल में गुलामी के दौर का जिक्र करते हुए कहा-अंग्रेजों के उस दौर में भारत को कमजोर, निकम्मा, आलसी बताना एक फैशन बन गया था। हमारे यहां भी कुछ लोग वही भाषा बोलने लगे थे। तब बंकिम दा ने झकझोरने के लिए और सामर्थ्य का परिचय कराने के लिए वंदे मातरम के जरिए लिखा था-
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदल विहारिणी
वाणी विद्यादायिनी
नमामि त्वाम्
नमामि कमलां, अमलां अतुलाम्
सुजलां सुफलां मातरम्॥ वंदे मातरम्!