अमेरिका में यह केस सिर्फ कन्वर्जन थेरेपी का नहीं, बल्कि राज्य के अधिकार बनाम व्यक्तिगत स्वतंत्रता का भी सवाल बन गया है। अगर सुप्रीम कोर्ट यह तय करता है कि ऐसी थेरेपी पर रोक नहीं लगाई जा सकती, तो कई राज्यों के कानून खतरे में पड़ सकते हैं।
By: Sandeep malviya
Oct 07, 20256:49 PM
वॉशिंगटन। अमेरिका में यह केस सिर्फ कन्वर्जन थेरेपी का नहीं, बल्कि राज्य के अधिकार बनाम व्यक्तिगत स्वतंत्रता का भी सवाल बन गया है। अगर सुप्रीम कोर्ट यह तय करता है कि ऐसी थेरेपी पर रोक नहीं लगाई जा सकती, तो कई राज्यों के कानून खतरे में पड़ सकते हैं। लेकिन अगर कोर्ट कोलोराडो के पक्ष में फैसला देता है, तो यह एलजीबीटीक्यू+ बच्चों की सुरक्षा के लिए एक बड़ी कानूनी जीत मानी जाएगी।
अमेरिका का सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को एक अहम मामला सुन रहा है, क्या राज्य सरकारें एलजीबीटीक्यू+ बच्चों के लिए 'कन्वर्जन थेरेपी' यानी 'लैंगिक रुझान या पहचान बदलने की कोशिश करने वाली थेरेपी' पर प्रतिबंध लगा सकती हैं या नहीं। अमेरिका के लगभग आधे राज्यों ने ऐसी थेरेपी पर रोक लगा रखी है। अब कोर्ट यह तय करेगा कि ये रोक संविधान के मुताबिक है या नहीं।
क्या है मामला ?
यह मुकदमा कोलोराडो राज्य के एक कानून को लेकर है। इस कानून के तहत किसी लाइसेंस प्राप्त थेरेपिस्ट को यह अनुमति नहीं है कि वह किसी नाबालिग बच्चे का यौन रुझान या लैंगिक पहचान बदलने की कोशिश करे। लेकिन क्रिश्चियन काउंसलर केली चाइल्स ने इस कानून को चुनौती दी है। उनका कहना है कि यह कानून उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है। चाइल्स का दावा है कि वे बच्चों को 'ईश्वर की योजना के अनुरूप जीवन जीने' की सलाह देती हैं, और यह 'स्वैच्छिक, आस्था-आधारित काउंसलिंग' है, न कि कोई जबरन उपचार।
कोलोराडो राज्य का तर्क?
राज्य सरकार का कहना है कि यह सिर्फ बातचीत की आजादी का मामला नहीं, बल्कि 'स्वास्थ्य सेवा' का मुद्दा है। यह कानून 2019 में लागू हुआ था। इसका उद्देश्य केवल यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी थेरेपिस्ट ऐसा इलाज न करे जो पहले से तय नतीजे- यानी किसी बच्चे की लैंगिक पहचान बदलने- पर केंद्रित हो। ऐसा करना वैज्ञानिक रूप से गलत माना गया है और यह बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को गहरा नुकसान पहुंचा सकता है। राज्य ने यह भी स्पष्ट किया कि कानून धार्मिक संस्थाओं या मंत्रालयों पर लागू नहीं होता। यानी कोई व्यक्ति अगर धार्मिक परामर्श दे रहा है, तो उस पर यह रोक नहीं है। अगर कोई थेरेपिस्ट कानून का उल्लंघन करता है तो उसे 5,000 डॉलर तक का जुमार्ना, और लाइसेंस निलंबन या रद्द होने की सजा मिल सकती है।
पीड़ित की कहानी और मां का दर्द
वॉशिंगटन राज्य की लिंडा रॉबर्टसन नाम की एक मां ने अपने बेटे रयान का दर्द साझा किया। रयान को 12 साल की उम्र में कन्वर्जन थेरेपी के लिए भेजा गया था। थेरेपी के बाद उसने खुद को असफल और दोषी समझना शुरू किया। वह गहरे अवसाद में चला गया और 20 साल की उम्र में उसने आत्महत्या कर ली। लिंडा ने कहा, 'उस थेरेपी ने हमारे बेटे का आत्मविश्वास तोड़ दिया, और उसे यह महसूस कराया कि वो प्रेम के लायक नहीं है।'
ट्रंप प्रशासन का समर्थन
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व वाला प्रशासन चाइल्स के पक्ष में है। उनका कहना है कि यह कानून पहले संशोधन के तहत मिलने वाली 'बोलने की आजादी का उल्लंघन करता है। यह कोई अकेला मामला नहीं है। फ्लोरिडा में अदालत ने ऐसा ही प्रतिबंध रद्द कर दिया था। विस्कॉन्सिन में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य को प्रतिबंध लागू करने की अनुमति दी है। वर्जीनिया में सरकार ने आस्था-आधारित समूहों से समझौते के तहत कानून का कुछ हिस्सा नरम किया है।