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बिहार मतदाता सूची पर सुप्रीम सवाल-आयोग कैसे गलत है, साबित करिए...

बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसे लेकर राजनीतिक पार्टियां अपनी तैयारियों में जुट गई हैं। इस बीच चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण के खिलाफ विपक्षी पार्टियों ने मोर्चा खोल दिया है। 9 जुलाई विपक्षी पार्टियों के बड़े-बड़े नेता भी सड़क पर उतरे और चक्का जाम किया।  विपक्ष के शक्ति प्रदर्शन के बाद अब लीगल बैटल की बारी है।

By: Arvind Mishra

Jul 10, 202512:43 PM

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बिहार मतदाता सूची पर सुप्रीम सवाल-आयोग कैसे गलत है, साबित करिए...

  • वोटर लिस्ट सत्यापन: याचिकाकर्ता से कोर्ट ने पूछे सख्त सवाल

  • विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी चुनौती

नई दिल्ली। स्टार समाचार वेब

बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसे लेकर राजनीतिक पार्टियां अपनी तैयारियों में जुट गई हैं। इस बीच चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण के खिलाफ विपक्षी पार्टियों ने मोर्चा खोल दिया है। 9 जुलाई विपक्षी पार्टियों के बड़े-बड़े नेता भी सड़क पर उतरे और चक्का जाम किया।  विपक्ष के शक्ति प्रदर्शन के बाद अब लीगल बैटल की बारी है। वोटर लिस्ट के गहन पुनरीक्षण की लड़ाई अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुकी है। सर्वोच्च न्यायालय में इस पुनरीक्षण देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हो गई है। दरअसल, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉय माल्य बागची की पीठ इस पर सुनवाई कर रही है। याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण ने कहा कि हम वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनौती दे रहे हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि वो मनोज झा की पैरवी कर रहे हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि हम सभी यचिकाओं पर नहीं जाएंगे। हम साझा और कानूनी सवालों पर बात करेंगे। वहीं, चुनाव आयोग की पैरवी पूर्व अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल कर रहे हैं।

भेदभाव कर रहा आयोग...

चुनाव आयोग ने याचिकाओं पर आपत्ति जताई तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ठीक है पहले याचिकाकर्ता को सुनेंगे, फिर आपको भी सुनेंगे। गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि नियमों को दरकिनार कर ये विशेष पुनरीक्षण अभियान चलाया जा रहा है। ये भेदभावपूर्ण है। कानून से अलग हटकर इसे चलाया है रहा है। आयोग कहता है कि एक जनवरी 2003 के बाद मतदाता सूची में नाम लिखवाने वालों को अब दस्तावेज देने होंगे। यह भेदभावपूर्ण है।

नियम के खिलाफ कैसे...सबित करिए..

कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा-पहले ये साबित कीजिए कि चुनाव आयोग जो कर रहा है, वह सही नहीं है। नारायण ने कहा कि अपने दावे के प्रमाण में 11 दस्तावेजों को अनिवार्य किया गया है। ये पूरी तरफ से पक्षपातपूर्ण है। पहली जुलाई 2025 को 18 साल की आयु वाले नागरिक वोटर लिस्ट में शामिल हो सकते हैं। वोटर लिस्ट की समरी यानी समीक्षा हर साल नियमित रूप से होती है। इस बार की हो चुकी है। चार कसौटियों पर ये कवायद गलत है।  ये नियमों के खिलाफ है।

आयोग का अपना लॉजिक...

जस्टिस धूलिया ने कहा कि आपका ये कहना कि ये काल्पनिक है उचित नहीं है। उनका अपना लॉजिक है। आप ये नहीं कह सकते कि चुनाव आयोग जो कर रहा है वो कर नहीं सकता। उनके अपने तर्क हैं। चुनाव आयोग ने तारीख तय कर दी है। इसमें आपको क्या आपत्ति है। आप तर्कों से ये साबित करें कि आयोग सही नहीं कर रहा है।

संविधान से चल रहा आयोग

अधिवक्ता गोपाल शंकर ने कहा कि चुनाव आयोग एसआईआर को पूरे देश में लागू करना चाहता है। इसकी शुरुआत बिहार से की जा रही है। इस पर जस्टिस धूलिया ने कहा कि चुनाव आयोग वही कर रहा है, जो संविधान में दिया गया है, तो आप यह नहीं कह सकते कि वे ऐसा कुछ कर रहे हैं जो उन्हें नहीं करना चाहिए।

कई स्तरों पर उल्लंघन हो रहा

नारायणन ने कहा कि आयोग वह कर रहा जो उसे नहीं करना चाहिए। यहां कई स्तरों पर उल्लंघन हो रहा है। यह पूरी तरह से मनमाना और भेदभावपूर्ण है। मैं आपको दिखाऊंगा कि उन्होंने किस तरह के सुरक्षा उपाय दिए हैं।  दिशा निर्देशों में कुछ ऐसे वर्गों का उल्लेख है जिन्हें इस रिवीजन प्रक्रिया के दायरे में नहीं लाया गया है। सबसे अहम बात यह है कि इस पूरी प्रक्रिया की कानून में कोई आधार नहीं है।

आयोग का अधिकार है या नहीं...हां

कोर्ट ने कहा कि क्या चुनाव आयोग जो सघन परीक्षण कर रहा है वो नियमों में है या नहीं... और ये सघन परीक्षण कब किया जा सकता है। आप ये बताइए कि ये अधिकार क्षेत्र में आयोग के हैं या नहीं। इस पर गोपाल ने कहा कि चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में है। इस पर कोर्ट ने कहा कि इसका मतलब है कि आप अधिकार क्षेत्र नहीं, बल्कि सघन परीक्षण करने के तरीके को चुनौती दे रहे हैं। गोपाल ने जवाब देते हुए कहा कि हां, बिल्कुल। वे जो भी संशोधन करते हैं, उन्हें उसे निर्धारित तरीके से ही करना होता है।

कानून नहीं देता अनुमति  

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग जो कर रहे हैं कानून के हिसाब से ही कर रहे हैं। अधिवक्ता गोपाल ने इस बात पर सवाल उठाते हुए कहा कि 2003 से पहले वालों को केवल फॉर्म भरना है। उसके बाद वालों को डॉक्यूमेंट लगाने हैं। यह बिना किसी आधार के भेद किया गया है। कानून इसकी अनुमति नहीं देता।

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