रीवा के बदवार इंडस्ट्रियल एरिया तक 33 केवी और 11 केवी बिजली लाइन ले जाने का प्रस्ताव वन विभाग में अटक गया है। एमपीआईडीसी अधिकारियों पर नियमों को दरकिनार कर फाइल जबरन पास कराने और रिश्वतखोरी के आरोप तक लगाने के आरोप लगे हैं। वन विभाग ने स्पष्ट किया है कि 1 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर स्वीकृति केवल केंद्र सरकार ही दे सकती है।
By: Yogesh Patel
Aug 31, 20253 hours ago
हाइलाइट्स
रीवा, स्टार समाचार वेब
बदवार इंडस्ट्रियल एरिया तक एमपीआईडीसी नियमों को ताक पर रख कर बिजली की हाईटेंशन लाइन ले जाना चाहती है। अधिकारी वन मंत्रालय से स्वीकृति से बचने के लिए वन मंडल में हंगामा भी कर चुके हैं। सीधे डीएफओ से ही फाइल साइन कराने को लेकर अड़े हुए हैं।
रिश्वत मांगने तक का लगा चुके हैं आरोप
सूत्रों की मानें तो एमपीआईडीसी के अधिकारी जबरन फाइल स्वीकृत कराने के लिए हदें पार कर चुके हैं। डीएफओ कार्यालय में हंगामा तक कर चुके हैं। महिला कर्मचारी पर फाइल स्वीकृति के बदले 1 लाख रुपए की रिश्वत मांगने का आरोप लगाकर भी दबाव बनाने की कोशिश कर चुके हैं। डीएफओ से भी नोंक झोंक की गई। अब डीएफओ ट्रेनिंग में चले गए हैं। फाइल पेडिंग में है।
यह है नियम
डीएफओ सिर्फ 1 हेक्टेयर से कम भूमि फंसने पर ही लाइन खींचने की अनुमति दे सकते हैं। यदि इससे ज्यादा का फारेस्ट एरिया कवर होता है तो उसके लिए केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय के पास ही आवेदन करना पड़ता है। केन्द्र से ही स्वीकृति मिलती है। वन मंडल रीवा करीब 1400 मीटर लंबी लाइन और 7 मीटर चौड़ी लाइन की ही अनुमति दे सकती है। जबकि एमपीआईडीसी 2 किमी तक की अनुमति मांग रहा है।
पहले 33केवी फिर 11 केवी में आए
एमपीआईडीसी के अधिकारी पहले 33केवी लाइन की स्वीकृति के लिए आवेदन किए थे। टीकर से बदवार इंडस्ट्रियल एरिया तक की अनुमति मांगे थे। इसमें 2 किमी लंबाई और 15 मीटर चौड़ाई में तार खींचने की अनुमति मांग रहे थे। ऐसे में करीब 3 हेक्टेयर वन भूमि फंस रही थी। वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत अनुमति डीएफओ नहीं दे सकते थे। जब मामला फंसता दिखा तो अधिकारियों ने 11 केवी के लिए अनुमति मांगनी शुरू कर दी। वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत आवेदन कर दिया। इसमें भी 2 हेक्टेयर से अधिक भूमि फंस रही है। इसी में मामला फंस गया।
इसलिए बनाना चाह रहे हैं दबाव
एमपीआईडीसी के अधिकारी वन विभाग की जमीन से लाइन खींचने के लिए दबाव बना रहे हैं। वह चाहते हैं कि डीएफओ कार्यालय से ही उनके प्रस्ताव का हरी झंडी मिल जाए। उन्हें लंबा इंतजार न करना पड़े। यदि केन्द्र सरकार के पास फाइल गई तो अधिकारियों को काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। जगह जगह पापड़ बेलना पड़ेगा। यही वजह है कि डीएफओ पर ही दबाव देने में जुटे हुए हैं।