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सतना-रीवा के किसानों को क्या मिलेगा नर्मदा का आवंटित पानी? बरगी नहर परियोजना अधूरी, टनल निर्माण में देरी और ठेकेदार की मनमानी पर उठे सवाल

बरगी नहर परियोजना से सतना-रीवा को नर्मदा जल देने का दावा अब संदेह में है। टनल निर्माण अधूरा, नहरें क्षतिग्रस्त, ठेकेदार की मनमानी और आउट ऑफ कमांड एरिया में पानी देने से किसानों के हिस्से का आवंटित पानी अधर में लटका।

By: Star News

Aug 23, 20253:21 PM

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सतना-रीवा के किसानों को क्या मिलेगा नर्मदा का आवंटित पानी? बरगी नहर परियोजना अधूरी, टनल निर्माण में देरी और ठेकेदार की मनमानी पर उठे सवाल

हाइलाइट्स

  • बरगी टनल का काम अभी अधूरा, केवल एक मशीन से धीमी गति से निर्माण।
  • आउट ऑफ कमांड एरिया में पानी देने से सतना-रीवा के आवंटित जल पर संकट।
  • बिना एक बूंद पानी बहे नहरें क्षतिग्रस्त, किसानों को सिंचाई की सुविधा संदिग्ध।

सतना, स्टार समाचार वेब

जिस बरगी नहर परियोजना को सतना, रीवा व मैहर जिले के किसानों की लाइफ लाइन बताया जाता रहा है, क्या इस परियोजना से डीपीआर में आवंटित पानी विंध्य के जिलों को मिल सकेगा? क्या पूर्व में जिम्मेदारों द्वारा अगस्त 2025 तक नर्मदा जल से खेतों की सिंचाई होने का किय ागया दावा पूरा हो पाएगा? सवाल इसलिए क्योंकि बरगी नहर परियोजना में सतना , रीवा व मैहर के साथ जिस प्रकार का छल किया गया है उससे न तो डीपीआर में आवंटित पानी मिलने के आसार हैं और न ही जिम्मेदारों द्वारा किए गए वायदों के अनुसार अगस्त माह में पानी ही पहुंच सकेगा। जानकारों की मानें तो बरगी टनल परियोजना अभी भी एक बाधा बनी हुई है जिसका अभी तकरीबन एक किमी का काम बाकी रह गया है। यदि बरगी नहर परियोजना के प्रोजेक्ट मैनेजर की मानें तो अभी कम से कम टनल पूरा होने में एक साल का वक्त लगेगा। इधर बरगी नहर परियोजना के सूत्रधार पूर्व विधायक रामप्रतापसिंह की मानें तो आउट आफ कमांड एरिया में पानी देकर सरकार द्वारा अपनाई जा रही क्षेत्रीय तुष्टीकरण की नीति के कारण टनल बनने के बाद भी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि सतना को डीपीआर में आवंटित पानी की सतत आपूर्ति हो सकेगी। 

तुष्टीकरण ने परियोजना को किया बर्बाद 

शुरूआती चरण में जो डीपीआर तैयार किया गया था यदि उसके अनुसार ही काम होता तो संभवत: सतना व रीवा को पर्याप्त पानी मिल सकता था लेकिन जबलपुर व कटनी जिले के जनप्रतिनिधि सचेत थे जिन्होने अपने क्षेत्र को पानीदार बनाने के लिए दबाव बनाया जिससे परियोजना में कई आउट आफ क मांड एरिया भी शामिल कर लिए गए। इससे कटनी जिले का 21,823 हेक्टयर तथा  जबलपुर जिले का  60 हजार हेक्टयर सिंचित रकबा परियोजना से जोड़ दिया गया। इससे मैहर और सतना में एक लाख 59,655 हेक्टयर,और रीवा में तीन हजार 532 हेक्टयर क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा मिलने की गारंटी पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है। देखा जाय तो दूसरे जिलों के जनप्रतिनिधियों ने अपने क्षेत्र को लेकर संजीदगी दिखाई लेकिन सतना,मैहर व रीवा जिले के जनप्रतिनिधियों ने इस बात की न तो कोई फिक्र नहीं की और न ही आंकलन किया कि आउट आफ कमांड एरिया को पानी देने से उनके क्षेत्र में अपेक्षित मात्रा में पानी कैसे पहुंचेगा? 

और इधर बिना एक बूंद पानी बहे नहरें क्षतिग्रस्त 

एक ओर जहां टनल निर्माण पूरा नहीं हुआ है तो दूसरी ओर वे नहरें भी बिना एक बूंद पानी बहे क्षतिग्रस्त हो गई हैं जिन्हें नर्मदा जल को खेत तक पहुंचाने के लिए बनाया गया था। कई जगहों पर तो नहरें धंस गई हैं तो कई स्थलों पर बड़ी बड़ी दरारें आ गई हैं। खासकर मैहर, उचेहरा और नागौद के बीच की नहरें सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। गोबरांव कला, धनेह, पोड़ीघाट, अतरबेदिया व बिहटा के पास नहरों की बदहाली देखी जा सकती है, जिसे देखकर सवाल कौंधता है  कि क्या इन्हीं टूटी नहरों से नर्मदा जल को खेतों तक पहुंचाया जाएगा? किसान यूनियन के जिलाध्यक्ष ठाकुर प्रसाद सिंह सवाल उठाते हैं कि यदि नर्मदा जल आ भी गया तो क्या इन नहरों से नर्मदा जल खेतों तक पहुंच पाएगा? यूनियन अध्यक्ष की मानें तो जिस घटिया क्वालिटी से नहर बनाई जा रही है उससे नहरे टूट जाएंगी और खेत पानी से जलमग्न हो जाएंगे। 

सिंचाई योग्य पानी कितना? 

बरगी नहर परियोजना के तहत टनल निर्माण के साथ नहरों की मरम्मतीकरण का काम भी चल रहा है। हाल ही में मुआवजा भी बाटा जा रहा है ओर कई लिफ्ट परियोजनाओं को भी शामिल कर लिया गया है जिसके चलते सतना व रीवा जिले के चिन्हित गांवों तक पानी पहुंचने को लेकर संशय है। जानकारों की मानें तो सरकार गांवों में नहरें खुदाव तो रही है लेकिन आउट आफ कमांड एरिया की रानी दुर्गावती , ढीमरखेड़ा , बहुरी बांध  समेत चार लिफ्ट परियोजनाओं के अलावा चिट्टी बराज को परियोजना में शामिल कर सतना-रीवा के पानी में डकैती डाल दी गई है और स्थानीय जनप्रतिनिधियों के मुंह में दही जमी रही और वे चुप्पी साधे रहे।  जानकार बताते हैं कि बरगी राइट बैंक कैनाल की उचाई 409 मीटर है और इसी उचाई पर सुलूस गेट बना है जबकि लेफ्ट बैंक कैनाल का लेबल 400 मीटर है। डीपीआर में सतना-रीवा का जो रकबा सिंचित करने के लिए चयनित किया गया है उसके लिए राइट बैंक कैनाल में लगभग 1900 एमसीएम(मिलियन क्यूबिक मीटर) जबकि लेफ्ट बैक कैनाल के लिए तकरीबन 1500 एमसीएम जल की आवश्यकता है। इधर बरगी परियोजना के तहत केवल 2100-2200 एमसीएम पानी ही है। ऐसे में विशेषज्ञ सवाल उठाते हैं कि टनल बनने के बाद भी दायीं और बायीं तट परियोजना की नहरों में पानी की सतत आपूर्ति के लिए जल कहां से आएगा? जानकारों का मानना है कि राइट बैंक कैनाल को बंद करने पर लेफ्ट बैंक कैनाल के लिए केवल 9 मीटर पानी बचेगा जो अपर्याप्त है।

केवल एक मशीन से काम, करार का उल्लंघन सरकार ठेकेदार पर मेहरबान 

बरगी नहर परियोजना के काम को यदि शुरूआत से ही देखा जाय तो स्पष्ट होता है कि सरकार ठेकेदार पर मेहरबान रही है। बरगी परियोजना की ठेका कंपनी पर सरकार किस कदर मेहरबान है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिस टनल को अविलंब पूरा कराने के लिए सरकार ने ठेका कंपनी को दोनो छोर से दो मशीनों के साथ काम करने के निर्देश दिए थे, उनमें से एक मशीन को ठेकेदार द्वारा करीब-करीब निकाल लिया गया है। मौजूदा समय पर केवल एक मशीन कछुआ गति से काम कर रही है, जो यदि लगातार काम करती रही तो भी एक साल का वक्त टनल का काम पूरा होने में लगेगा , लेकिन यदि मशीन में खराबी आई तो टनल निर्माण का काम आगे वर्ष 2027 तक खिसक सकता है। बताया जाता है कि ठेक कंपनी का सरकार के साथ करार है कि जब तक टनल निर्माण पूरा नहीं हो जाता तब तक दोनो मशीनें काम करती रहेंगी और उनमें से किसी को हटाया नहीं जा सकेगा लेकिन ठेका कंपनी ने एक बार पुन: मनमानी करते हुए एक कमशीन निकालकर केवल एक मशीन से काम कर रही है मगर जिम्मेदारों द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई है। 

वर्ष 2013 में पूरा होना था, 12 साल बाद भी अपूर्ण 

बरगी व्यपवर्तन परियोजना साल 2008 से शुरू हुआ था, जिसे साल 2013 तक पूरा हो जाना था, लेकिन 12 साल निकल जाने के बाद भी काम अधूरा पड़ा हुआ है। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण केअधिकारी  बताते हैं, कि टनल का काम बेहद चुनौतीपूर्ण होने के कारण यह लेट लतीफी हुई है। हालंकि जानकारों का कहना है कि बरगी  व्यपवर्तन योजना शुरू से ही गैर नियोजित कामों व भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ने के कारण ही तय मियाद के एक दशक से भी अधिक समय बीतने के बाद भी पूरी नहीं हो सकी है।

देखिए 190 किमी से अधिक लंबी नहरें व शाखा नहरें तैयार की जा रही हैं जिसमें 0.5 फीसदी डिफेक्ट सामान्य बात है जिसे दुरूस्त भी किया जा रहा है। जहां तक टनल का सवाल है तो काम पूरा होने में अभी एक साल का वक्त लग सकता है। 

दीपक कापड़े, प्रोजेक्ट मैनेजर, बरगी नहर निर्माण 

इस बात का अंकलन जरूरी है कि आउट आफ कमांड एरिया व शर्तों के अनुसार एनजीटी , चिट्टी बराज व लिफ्ट परियोजनाओं को पानी देने के बाद सिंचाई योग्य कितना पानी बचता है? इसका आंकलन करने के बाद ही लिफ्ट परियोजनाओं को पानी देना चाहिए अन्यथा सतना-रीवा को मिलने वाले पानी की मात्रा प्रभावित होगी। सिर्फ एक मशीन का काम रना भी करार का उल्लंघन है। 

रामप्रताप सिंह, पूर्व विधायक व संरक्षक, बरगी नहर संघर्ष समिति

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