सतना से बड़ी सेमरिया होते हुए प्रयागराज तक बनने वाली सड़क का हाल बेहाल है। गड्ढों में तब्दील यह मार्ग दुर्घटनाओं का कारण बन रहा है। वर्षों से शिकायतों के बावजूद सीएम हेल्पलाइन भी औपचारिकता बनकर रह गई है। क्या जनता का भरोसा टूट रहा है?
By: Yogesh Patel
Jul 22, 20252 hours ago
हाइलाइट्स
सतना, स्टार समाचार वेब
सतना से वाया सेमरिया प्रयागराज तक सर्वसुविधायुक्त सड़क निर्माण की घोषणा को काफी समय हो चुका है, लेकिन हकीकत यह है कि सतना से कोटर और अबेर तक की महज 35 किलोमीटर की सड़क ही पूरी नहीं हो सकी। यह सड़क अब गड्ढों में तब्दील होकर हादसों का कारण बन रही है, और शासन-प्रशासन से लेकर लोक निर्माण विभाग तक आंख मूंदे बैठे हैं। सीएम हेल्पलाइन पर इस मार्ग को लेकर बीते वर्षों में कई शिकायतें की जा चुकी हैं। बाबूपुर, कोटर, अबेर, बिहरा, टिकुरी समेत दर्जनों गांवों के लोग आए दिन इसकी बदहाली का मुद्दा उठाते रहे हैं। लेकिन नतीजा सिफर रहा। अधिकारी सिर्फ औपचारिकता निभाकर शिकायतें 'सॉल्व' करते रहे हैं, जबकि जमीनी सच्चाई जस की तस है।
शिकायतों की बौछार के बावजूद न विभाग चेता, न प्रशासन और न ही जनप्रतिनिधि। जिस सीएम हेल्पलाइन को सरकार जनता की आवाज कहती है, वही अब सिस्टम की चुप्पी और लापरवाही का पर्दा बन चुकी है। सड़कों की हालत देख ऐसा लगता है जैसे अधिकारी ठेकेदारों के ताबेदार बन बैठे हैं और जनता का दर्द सिर्फ फाइलों में दफन किया जा रहा है।
परफार्मेंस गारंटी के दौरान चेतते तो चौपट नहीं होती रोड
सतना-कोटर-अबेर सड़क मार्ग की दूरी तकरीबन 25 किमी है जहां सड़कें सर्वाधिक क्षतिग्रस्त हैं। सड़क के निर्माण के दौरान कोटर और अबेर गांव के ग्रामीणों ने लगातार घटिया सामग्री के उपयोग की शिकायत की थी। लोगों ने निर्माण स्थल पर पहुंचकर विरोध भी जताया, लेकिन लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों ने शिकायतों को अनसुना कर दिया। यदि उस समय परफॉरमेंस गारंटी के तहत निर्माण या मरम्मत कराई जाती, तो आज यह हालात न होते। मगर अधिकारियों ने ठेकेदार की करतूतों पर चुप्पी साधे रखी और परिणामस्वरूप यह मार्ग आज जर्जर होकर दुर्घटनाओं को आमंत्रण दे रहा है। । इसे समझने के लिए 29 अक्टूबर 2022 को सीएमहेल्पलाइन में की गई शिकायत क्र. 19631660 , 1 मार्च 2023 को शिकायत क्र. 21225889 व 21 मई 2013 को की गई शिकायतों का अवलोकन करना जरूरी है जिसमें महेंद्र सिंह सोलंकी, दिनेश सिंह समेत अन्य शिकायतकर्ताओं ने बार-बार यह इंगित किया था कि सड़क निर्माण का काम बेहद घटिया स्तर का हुआ है ऐसे में इसे पुन: मरम्मत कराए जाने की जरूरत है। लोक निर्माण विभाग के अधिकारी इन शिकायतों का निराकरण करने के बजाय गांरटी समाप्त होने तक यह साबित करने में जुटे रहे कि सड़क निर्माण की गुणवत्ता सटीक है , शिकायतकर्ता ही ठेकेदार से द्वेष रखने के कारण शिकायतें कर रहे हैं। हालंकि ठेकेदार को मासूम बताने की यह पोल गारंटी समाप्त होते ही तब खुल गई जब सड़क निर्माण के कुछ दिनों बाद ही घटिया निर्माण के चलते सड़क चकनाचूर हो गई। मौजूदा समय पर सड़क में जगह-जगह गड्ढे हैं जो बारिश में जानलेवा बने हुए हैं। ठेकेदार ने सड़क की पटरी भी नहीं बनाई नतीजतन गड्ढों से पटी सड़क के किनारे दलदली हो गए हैं जहां वाहन चालक दुर्घटनाग्रस्त होकर अस्पताल पहुंच रहे हैं।
इसलिए प्रभावित हो रही गुणवत्ता
करोड़ो खर्च करने के बाद भी सड़क की गुणवत्ता क्यों प्रभावित हो रही है। जानकारों की मानें तो करोड़ों के निर्माण ठेकेदारों के भरोसे कराए जा रहे हैं जिन पर अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों का कोई अंकुश नहीं है। सतना-बड़ी सेमरिया मार्ग के उपयंत्री को नागौद का भी प्रभार मिला हुआ था नतीजतन उसने इस मार्ग के निर्माण से आंखे फेरे रखी । तकनीकी अमले की गैरमौजूदगी में बनने वाली ऐसी सड़कें चंद दिनों में ही टूटकर भ्रष्टाचार की पोल खोल रही हैं।
करोड़ों की घोषणा, नतीजा सिफर
सतना -बड़ी सेमरिया मार्ग में 35 किमी लंबी सड़क सतना जिले में आती है । परफार्मेंस गारंटी की सड़क नेस्तनाबूद होने के बाद सरकार ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के बजट में सतना-कोटर-अबेर सड़क के लिए 87.50 करोड़ स्वीकृत किए थे लेकिन बजट की घोषित राशि केवल घोषणा ही बनकर रह गई है। इतना ही नहीं सतना वाया बड़ी सेमरिया मार्ग को प्रयागराज तक सर्व सुविधायुक्त बनाने का दावा भी धूल खा रहा है। जाहिर है कि करोड़ों की सड़क निर्माण से जुड़े अफसर गुणवत्ता को लेकर नजरे फेरे हुए हैं तो वहीं स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने इस सड़क के निर्माण के लिए किए जा रहे प्रयासों से कन्नी काट रखी है जिसका दंश एक बड़ी आबादी भोगने को मजबूर है।
‘भरोसे पर दरार’, ध्यान दे सरकार
प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी सीएम हेल्पलाइन योजना जनता और सीएम के बीच ‘भरोसे के सेतु ’ की तरह है, लेकिन समस्याओं के निराकरण में की जा रही मनमानी भरोसे पर दरार डाल रही है। यह मानमानी केवल एक विभाग तक सीमित नहीं है बल्कि कई विभागों में ऐसी ही मनमानी है। किसी भी विभाग की शिकायतों का अध्ययन किया जाय तो 30 से 40 फीसदी शिकायतों के निराकरण में कमोबेश ऐसा ही निराकरण किया जा रहा है। दरअसल विभागीय अधिकारी समस्याओं की मानीटरिंग एसी दड़बों में बैठकर करते हैं नतीजतन जमीनी अमला मनमानी करते हुए शिकायतों को फोर्स क्लोज करा देता है और निराकरण फाइलों में ही कैद होकर रह जाता है। इसका सबसे गहरा असर ‘सीएम हेल्पलाइन’योजना की ब्रांडिंग पर पड़ रहा है। यदि संजीदगी से जन समस्याओं का निराकरण किया जाय तो जनमानस के बीच सरकार की सकारात्मक छवि बनती है, लेकिन अपनी अकर्मण्यता व समस्या निदान के प्रति उदासीनता को छुपाने संबंधित विभागों के अधिकारी-कर्मचारी मुख्यमंत्री और जनता के बीच बने भरोसे के सेतु को ढहा रहे हैं। यह मामला सिर्फ सड़क का नहीं, जनता के आत्मसम्मान और भरोसे की हत्या का है। जब अधिकारी ठेकेदारों की जेब में बैठ जाएं और जनप्रतिनिधि आंख मूंद लें, तो फिर जनसरोकार से जुड़ी ऐसी महत्वाकांक्षी योजनाओं का यही हश्र होता है? अब जरूरत है कि जिला स्तर पर एक स्वतंत्र निगरानी कमेटी बने जो सीएम हेल्पलाइन की शिकायतों की आॅन-साइट जांच करे और केवल तब समाधान माने जब काम जमीन पर दिखे, तभी सही मायनों में सीएम हेल्पलाइन में दर्ज होने वाली शिकायतों का जनाकांक्षाओं के अनुरूप निराकरण होगा और यह योजना जनमानस और सरकार के बीच भरोसे के सेतु का निर्माण करेगी।