उर्जाधानी से लेकर हीरानगरी तक, मनचाही पोस्टिंग पाने की जद्दोजहद, कथा-पाठ से लेकर खाकी और सत्ता की गठजोड़ तक की कहानी। सावन की हरियाली में सूखा अनुभव करते वो चेहरे जो कल तक सिस्टम पर राज कर रहे थे, आज किनारे हो गए हैं। ईमानदार अफसरों की तैनाती से क्यों टूट रही है खाकी की ललक, जानिए अमित सिंह सेंगर के तीखे विश्लेषण में।
By: Yogesh Patel
Jul 14, 2025just now
आखिर मिला गया प्रसाद
मनचाही मुराद के लिए हर व्यक्ति कुछ न कुछ जतन करता है। उर्जाधानी जिले से ताल्लुक रखने वाले एक प्रभारी के दिन लम्बे अर्से बाद फिरे हैं, प्रदेश में बहुचर्चित या कहें कुख्यात थाना के प्रभारी भी रह चुके हैं वे, यहां रहने के लिए साम-दाम-र्दंड की नीति अपनाई। हर विरोधी को पटकनी दी, कुर्सी हथयाई लेकिन, दौर लम्बा नहीं चल पाया, जो निवेश किया उसका प्रतिफल भी नहीं मिला। झटका लगा, जाना पड़ा दूसरे थाने। यहां रहते हुए कथा कराई, ताकि मनोकामना पूरी हो जाए। कथा समापन के महीनों गुजर गए, कृपा न बरसी, सो प्रभारीजी लग गए पुरानी जोर-जुगाड़ में। शाखा-सत्ता, खाकी को साधा, आखिरकार वो तो नहीं मिला, फिर भी एक और पुराना ठिकाना मिल ही गया। इस जोर-जुगाड़ में सत्ता ही नहीं खाकी के भी लाभान्वित होने की चर्चा राजधानी तक है।
लागी छूटे न...!
आदत पुरानी है सो छूटने से रही। अब वक्त भी, दौर भी ऐसा चला कि चाह कर भी बदलाव मुश्किल है, क्रमवार पद बढ़ते गए अब आगे बढ़ने की संभावना भी नहीं है। सो अब जो है काम काज उसी तरीके से होगा, इनकी आदत से अगर कोई परेशान है तो मातहत, इन साहब को हर काम स्वयं करना है, भले ही उनके स्तर का काम न हो, अब जब वे स्वयं पूर्ण रूप से कार्य को मूर्त रूप दे रहे सो ऐसे में मातहतों के हित पर करारी चोट पड़ना स्वाभाविक है, ऐसे में मातहत काम तो कर रहे हैं, लेकिन बेमन से। आखिर उनकी जेब पर सीधा प्रहार जो पड़ा है, बता दें ये साहब हीरानगरी से ताल्लुक रखते हैं।
सावन में सूखा
सावन में बदरा झूम के बरस रहे हैं, लेकिन यह बारिश उनके लिए हरियाली नहीं ला सकती जो 45 डिग्री तापमान में लहलहाते दिखाई पड़ते थे। दरअसल, इनके पूरे सिस्टम को साहिबान ने एक झटके में ध्वस्त कर दिया। मुख्यालय के फरमान के दायरे में आने की भनक लगने पर इन खिलाड़ियों ने अपनी-अपनी बिसात बिछाई ताकि सेफ जोन में रहें पर सूची आते ही इनके सारे अरमानों पर पानी फिर गया, जहां की सोचे नहीं थे वहां भेज दिए गए। ऐसी जगह जाने के बाद इन खिलाड़ियों को सिस्टम सेट करने का कोई तरीका ही नहीं मिल रहा। लोकल खिलाड़ी पहले से ही पूरे मैदान को कवर किए हैं, सो कोई मौका मिलने के आसार जल्द नजर भी नहीं आ रहे। इनमें ऐसे खिलाड़ी भी हैं जो कल तक यह कहकर कॉलर ऊंची करते रहे कि बॉस की नजरें इनायत सिर्फ हम पर ही हैं।
आखिर क्यों हुआ मोहभंग
विंध्य के एक जिले से खाकी की दूरी बढ़ती जा रही है। बाहर से कोई इस जिले में आने के लिए प्रयासरत नहीं है, यहां वही आ रहे हैं जिन्हें विभागीय कारणों से पदस्थ किया जा रहा। दो और तीन सितारा वाले अन्य जिलों में ज्यादा संभावना देख रहे, जिसे मौका मिला वो इधर से निकल गया। आखिर ऐसा क्या हुआ कि यहां से अब दूरी बनाए जाने लगी, जबकि पूर्व के वर्षों में यहां आने के लिए बड़े दिग्गज भी एड़ी चोटी का जोर लगाते थे ताकि पदस्थापना हो सके। गलियारे में चर्चा है यह स्थिति लगातार बेहद ईमानदार असफरों के हाथ में जिले की कमान रहना है। जब कमान कड़क ईमानदार अफसर के हाथ होगी, सो स्वाभाविक है उसका असर नीचे तक जाएगा। ऐसे अफसरों के कारण कर्मचारियों की ऊपरी कमाई पर ब्रेक लगना लाजमी है, जब ऊपर से कुछ मिलना नहीं, सो इस गली भला कौन आना चाहेगा!