उमरिया जिले के पाली सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में एक माह से टिटनेस का इंजेक्शन उपलब्ध नहीं है। गंभीर चोट या घाव के बाद मरीजों को इलाज से वंचित कर बाहर मेडिकल दुकानों से दवा खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है। बीएमओ का लापरवाह बयान स्वास्थ्य तंत्र की संवेदनहीनता को उजागर करता है। ग्रामीणों ने सरकार और अस्पताल प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाया और तुरंत दवा उपलब्ध कराने की मांग की।
By: Yogesh Patel
Sep 08, 20256:12 PM
हाइलाइट्स
उमरिया, स्टार समाचार वेब
जिले के पाली सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में स्वास्थ्य सेवाओं की लापरवाही एक बार फिर उजागर हुई है। केंद्र में बीते एक माह से टिटनेस का इंजेक्शन उपलब्ध नहीं है। हालात यह हैं कि गंभीर परिस्थिति में इलाज कराने पहुंचे मरीजों को अस्पताल से वापस लौटा दिया जाता है और उन्हें बाहर मेडिकल दुकानों से इंजेक्शन खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है। सवाल यह है कि आखिर सरकार और अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही का खामियाजा कब तक आम लोग अपनी जान जोखिम में डालकर भुगतते रहेंगे। टिटनेस का इंजेक्शन किसी भी छोटे-बड़े कट या चोट लगने की स्थिति में बेहद जरूरी माना जाता है। ग्रामीण इलाकों में यह इंजेक्शन जीवनरक्षक साबित होता है, क्योंकि समय पर इसकी डोज नहीं मिलने पर मरीज को गंभीर संक्रमण या मृत्यु तक का खतरा रहता है। इसके बावजूद पाली सीएचसी में बीते 30 दिनों से इसकी अनुपलब्धता मरीजों और परिजनों को परेशान कर रही है। अस्पताल से इलाज कराने आए मरीजों को साफ शब्दों में कह दिया जाता है कि इंजेक्शन बाहर से खरीदना पड़ेगा। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के लिए यह अतिरिक्त बोझ बन चुका है। जब इस संबंध में पाली बीएमओ पुट्टू लाल सागर से बात की गई तो उनका जवाब और भी हैरान करने वाला रहा।
उन्होंने कहा की टिटनेस का इंजेक्शन जिला से जितना मिलता है उतना चल जाता है, फिर स्वतः खत्म हो जाता है। यह कोई बड़ी बात नहीं है। सरकार जितना देती है उतना मिल जाता है, उसमें ना हम खरीद सकते हैं और ना ज्यादा मांग सकते हैं।
बीएमओ का यह बयान स्पष्ट करता है कि अस्पताल प्रबंधन मरीजों की जरूरतों को लेकर गंभीर नहीं है। एक जीवनरक्षक दवा की कमी को कोई बड़ी बात नहीं कहकर टाल देना, सरकारी स्वास्थ्य तंत्र की संवेदनहीनता की बानगी है। स्वास्थ्य विभाग हर साल करोड़ों रुपए के बजट का दावा करता है। कागजों में योजनाओं और घोषणाओं की लंबी सूची होती है, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग है। यदि जिला स्तर पर पर्याप्त मात्रा में टिटनेस का इंजेक्शन नहीं भेजा जा रहा, तो यह सरकार की सीधी नाकामी है। वहीं, अस्पताल प्रबंधन भी सिर्फ हाथ पर हाथ धरे बैठा है। यदि मरीजों को इलाज के लिए जरूरी दवा उपलब्ध नहीं हो रही, तो क्या अस्पताल का दायित्व सिर्फ हृजितना मिलता है उतना बांट दो" तक ही सीमित रह गया है ? नगरवासियों का कहना है कि जब भी कोई हादसा होता है और घाव पर टिटनेस लगवाने की जरूरत पड़ती है, तो अस्पताल की कमी के कारण उन्हें निजी दुकानों पर भागना पड़ता है। कई बार रात के समय दवा दुकानों के बंद होने से और भी खतरनाक स्थिति बन जाती है। ग्रामीणों का आरोप है कि यह सब सरकार की लापरवाही और स्वास्थ्य विभाग की ढीली कार्यप्रणाली का नतीजा है। पाली सीएचसी में टिटनेस का इंजेक्शन न मिलना केवल एक दवा की कमी नहीं, बल्कि सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की असलियत का आईना है। यह मामला सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ है। सरकार और अस्पताल प्रबंधन को तुरंत संज्ञान लेकर दवा की सप्लाई सुनिश्चित करनी चाहिए, वरना इस तरह की अनदेखी कभी भी किसी की जान ले सकती है।