पीएम नरेंद्र मोदी नई दिल्ली में संघ के शताब्दी समारोह में शामिल हुए। पीएम ने कहा कि आरएसएस ने कई लोगों के जीवन को आकार दिया है। यह कार्यक्रम आरएसएस के इतिहास और समाज में इसके योगदान को दर्शाता है। प्रधानमंत्री ने कहा-विजयादशमी भारतीय संस्कृति के इस विचार और विश्वास का कालजयी उद्घोष है।
By: Arvind Mishra
Oct 01, 202512:33 PM
नई दिल्ली। स्टार समाचार वेब
पीएम नरेंद्र मोदी नई दिल्ली में संघ के शताब्दी समारोह में शामिल हुए। पीएम ने कहा कि आरएसएस ने कई लोगों के जीवन को आकार दिया है। यह कार्यक्रम आरएसएस के इतिहास और समाज में इसके योगदान को दर्शाता है। प्रधानमंत्री ने कहा-विजयादशमी भारतीय संस्कृति के इस विचार और विश्वास का कालजयी उद्घोष है। ऐसे महान पर्व पर 100 वर्ष पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना ये कोई संयोग नहीं था। ये हजारों वर्षों से चली आ रही उस परंपरा का पुनरुत्थान था। जिसमें राष्ट्र चेतना, समय समय पर उस युग की चुनौतियों का सामना करने के लिए नए-नए अवतारों में प्रकट होती है। इस युग में संघ उसी अनादि राष्ट्र चेतना का पुण्य अवतार है। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को आरएसएस की स्थापना दिवस के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए। नई दिल्ली के डॉ. आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में हुए संघ के शताब्दी समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए। मोदी ने अपने संबोधन में संघ के स्वयंसेवक रहे विजय कुमार मल्होत्रा के निधन का उल्लेख करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की और देशवासियों को नवरात्रि की बधाई दी। पीएम मोदी ने संघ के शताब्दी वर्ष का गवाह बनने को गौरव का पल बताया और कहा कि आज जो सिक्का जारी हुआ है, उस पर पहली बार भारत माता की तस्वीर अंकित हुई है। इस पर संघ का बोधवाक्य भी लिखा हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि संघ के स्वयंसेवक 26 जनवरी की परेड में भी शामिल हुए थे और आन-बान-शान के साथ कदमताल किया था। इसकी झलक भी डाक टिकट में है। स्वयंसेवक जिस तरह राष्ट्र निर्माण के काम में जुटे हुए हैं, उसकी झलक भी टिकट में है। उन्होंने स्मारक सिक्कों और डाक टिकट के लिए देशवासियों को बधाई भी दी।
पीएम मोदी ने कहा कि संघ ने समाज के हर आयाम को छुआ है। संघ के स्वयंसेवक समाज को समृद्ध करने में जुटे हैं। यह अविरल तप का फल है, यह राष्ट्र प्रवाह प्रबल है। आदिवासी कल्याण से लेकर विविध क्षेत्रों में संघ के स्वयंसेवक काम कर रहे हैं। धाराएं बढ़ीं, लेकिन विचार एक ही है- राष्ट्र निर्माण। संघ ने राष्ट्र निर्माण के लिए व्यक्ति निर्माण की राह चुनी। इसके लिए शाखाएं शुरू हुईं। संघ की शाखाएं व्यक्ति निर्माण की वेदी हैं। इन शाखाओं में त्याग पनपता रहता है। अहं से वयम तक की यात्रा शाखाओं में पूरी होती है। शाखा जैसी सरल जीवन पद्धति ही संघ के सौ वर्षों के सफर का आधार बने। समर्पण, सेवा और राष्ट्र निर्माण की साधना से। संघ ने जिस कालखंड में जो चुनौती आई, उसमें संघ ने खुद को झोंक दिया।
मोदी ने कहा-आजादी के आंदोलन में डॉक्टर हेडगेवार की सक्रिय भागीदारी से लेकर हैदराबाद के निजाम और दादरा नगर हवेली तक, संघ का बहुत योगदान रहा। इसके बाद भी संघ को कुचलने का प्रयास हुआ। संघ को मुख्य धारा में नहीं आने देने के लिए अनगिनत साजिशें हुईं। गुरु जी जब जेल से बाहर आए, तब उन्होंने बहुत सहजता से कहा था कि कभी कभी जीभ दांतों के बीच में आ जाती है, लेकिन हम दांत नहीं तोड़ दिया करते। जीभ भी हमारी है, दांत भी। जेल में तरह-तरह की यातनाएं दी गईं, अत्याचार हुए लेकिन गुरु जी के मन में कोई भेद नहीं था। उनका व्यक्तित्व ऋषितुल्य था। संघ पर चाहे प्रतिबंध लगे, लेकिन स्वयंसेवकों ने मन में कटुता को कभी स्थान नहीं दिया। हर स्वयंसेवक के लोकतंत्र पर अडिग विश्वास ने मन में कटुता को जन्म नहीं लेने दिया।
पीएम ने कहा कि समाज के अनेक थपेड़े सहते हुए भी संघ विराट वृक्ष की तरह अडिग खड़ा है। अभी एक स्वयंसेवक ने कितनी सुंदर प्रस्तुति दी- हमने देश को ही देव माना है और देह को ही दीप बनाकर जलना सीखा है। शुरू से ही संघ राष्ट्रभक्ति का पर्याय रहा है। जब विभाजन की पीड़ा ने लाखों लोगों को बेघर कर दिया, तब संघ के स्वयंसेवक शरणार्थियों की सेवा में अपने सीमित संसाधनों के साथ सबसे आगे खड़े थे। 1956 में जब गुजरात में भुज में भूकंप आया था, तब भी स्वयंसेवक आगे थे। खुद कष्ट उठाकर दूसरों का दुख दूर करना, ये संघ के स्वयंसेवकों का परिचायक है। स्वयंसेवक कठिन घड़ी में सेना के साथ खड़े रहे। मोदी ने 1984 के सिख दंगों का उल्लेख करते हुए कहा कि तब अनेक सिख परिवार स्वयंसेवकों के घर आश्रय लिया था। एपीजे अब्दुल कलाम चित्रकूट गए, नानाजी देशमुख से मिले और संघ के स्वयंसेवकों के कार्य देख हैरान रह गए थे। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी जब नागपुर गए, हैरान रह गए।