4 हजार लोग 35 किमी दूर से पहुंचे; 1 लाख चंदा जुटा, पांच क्विंटल पूड़ी, एक क्विंटल नुक्ती बनी
By: Gulab rohit
Nov 18, 202511:18 PM
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राजगढ़। राजगढ़ जिले के खिलचीपुर स्थित दरावरी गांव में एक बंदर की मौत के बाद ग्रामीणों ने मृत्यु भोज का आयोजन किया। मंगलवार को हुए इस भोज में लगभग 35 किलोमीटर दूर के गांवों से करीब 4 हजार लोग शामिल हुए और भोजन ग्रहण किया। ग्रामीणों ने चंदा इकट्ठा कर यह आयोजन करवाया।
बंदर की बारहवीं पर यह मृत्यु भोज गांव के मंदिर के पास आयोजित किया गया। इसके लिए बाहर से हलवाई बुलाए गए, जिन्होंने खुले परिसर में पूड़ी, कढ़ी, सेव और नुक्ती जैसे व्यंजन तैयार किए। आयोजन में बैंड-बाजे भी बुलाए गए थे, जिन पर पूरे समय हनुमान भजन बजते रहे। ग्रामीणों का कहना था कि यह बंदर नहीं, बल्कि हनुमानजी का रूप था, इसलिए पूरे मान-सम्मान के साथ मृत्यु भोज किया गया।
इस मृत्यु भोज के लिए ग्रामीणों ने लगभग 1 लाख रुपए का चंदा जुटाया। इस राशि से 5 क्विंटल आटा, 40 किलो सेव, 100 लीटर छाछ की कढ़ी की सामग्री, 180 लीटर तेल और 1 क्विंटल शक्कर का उपयोग कर नुक्ती, सेव, पुड़ी और कढ़ी बनी। 4 हजार से ज्यादा लोगों ने खाना खाया। आसपास के गांवों और रिश्तेदारों को फोन पर निमंत्रण भेजा गया था, जिसके बाद कई लोग 30-35 किलोमीटर दूर से पहुंचकर भोजन में शामिल हुए।
उल्लेखनीय है कि गांव में 7 नवंबर को इस बंदर की मौत हुई थी। बंदर सुबह जंगल से गांव में आया था और उछल-कूद कर रहा था। इसी दौरान वह गांव के बाहर से गुजर रही हाईटेंशन लाइन की चपेट में आ गया और घायल होकर नीचे गिर गया। ग्रामीणों ने उसे भोजन-पानी दिया, लेकिन देर शाम उसने दम तोड़ दिया था।
डीजे के साथ निकाली थी अंतिम यात्रा
8 नवंबर को पूरा गांव मन्दिर के पास इकट्ठा हुआ यहां बंदर के लिए डोल बनाकर अर्थी सजाई गई। इसके बाद अंतिम यात्रा मुक्तिधाम के लिए रवाना हुई। आगे डीजे चला, पीछे गांव के लोग अंतिम यात्रा के साथ पूरे गांव से होते हुए मुक्तिधाम तक पंहुचे। जहां इंसानों की तरह ही शान्ति धाम में विधि-विधान से बंदर का अंतिम संस्कार किया गया था।
ग्यारहवें दिन सोमवार को गांव के पटेल बिरम सिंह सौंधिया खुद पांच पंचों के साथ अस्थियां लेकर उज्जैन गए और पंडित के द्वारा विधि विधान से बंदर की अस्थियों को शिप्रा में विसर्जित की गई थीं। पटेल ने बंदर के लिए अपनी दाढ़ी भी बनवाई (कटवाई), और एक परिवार के सदस्य की तरह ग्यारहवीं का कार्यक्रम किया। ग्रामीणों का मानना है कि बंदर हनुमानजी का ही रूप हैं।