मध्यप्रदेश के एजुकेशन सिस्टम को वर्ल्ड क्लास बनाने के दावे किए जा रहे हैं। साउथ कोरिया और दिल्ली जैसे एजुकेशन मॉडल को लागू करने के लिए स्कूल शिक्षा विभाग के अफसर कई बार देश के अन्य राज्यों ही नहीं, विदेश की यात्राएं कर चुके हैं। यह नहीं, प्रदेश के शिक्षा सत्र शुरू होने से पहले तरह-तरह के अभियान भी चलाए जाते हैं।
By: Arvind Mishra
Aug 09, 2025just now
भोपाल। स्टार समाचार वेब
मध्यप्रदेश के एजुकेशन सिस्टम को वर्ल्ड क्लास बनाने के दावे किए जा रहे हैं। साउथ कोरिया और दिल्ली जैसे एजुकेशन मॉडल को लागू करने के लिए स्कूल शिक्षा विभाग के अफसर कई बार देश के अन्य राज्यों ही नहीं, विदेश की यात्राएं कर चुके हैं। यह नहीं, प्रदेश के शिक्षा सत्र शुरू होने से पहले तरह-तरह के अभियान भी चलाए जाते हैं। जिस पर पानी की तरह धन भी खर्च किया जाता है। लेकिन परिणाम शून्य ही नजर आता है। इससे राज्य की जमकर किरकिरी हो रही है। स्कूलों में बच्चों की संख्या में लगातर गिरावट दर्ज की जा रही है। मप्र के महानगरों की बात की जाए तो भोपाल, जबलपुर, इंदौर और ग्वालियर के सरकारी स्कूलों की हालत सबसे ज्यादा खराब है। दरअसल, सरकारी और प्रायवेट स्कूलों के इस साल सात लाख के करीब बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी है, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 5.70 लाख था। वहीं सरकारी स्कूलों में इस साल करीब 4.67 लाख बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी है। पिछले साल 3.99 लाख बच्चों ने पढ़ाई छोड़ी थी। इसमें निजी स्कूलों के दो लाख विद्यार्थी शामिल हैं।
उक्त आंकड़ा केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के तहत यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफार्मेशन सिस्टम फार एजुकेशन (यूडाईस) रिपोर्ट में सामने आई है। रिपार्ट के अनुसार, 2024-25 में प्रदेश के सरकारी और निजी स्कूलों में पहली से 12वीं तक में करीब 1.50 करोड़ बच्चों का पंजीयन हुआ था। वहीं 2025-26 में एक करोड़ 41 हजार बच्चों का 13 जुलाई तक प्रोग्रेसिंग पेंडिंग है।
इधर, 6.70 लाख बच्चे ऐसे हैं, जिन्होंने किसी भी स्कूल में प्रवेश नहीं लिया है। स्कूल शिक्षा विभाग ने जिला शिक्षा अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि विद्यार्थियों के प्रोग्रेशन को पूर्ण करें और ड्रापबाक्स के बच्चों को खोजकर स्कूल में नामांकन कराएं तथा नामांकित विद्यार्थियों का मैपिंग कराएं। लेकिन हालात यही बयां कर रहे हैं कि डीईओ ने सरकार के आदेश को गंभीरता से लिया ही नहीं।
प्रदेश के कुछ जिलों में अधिक संख्या में बच्चों ने स्कूल में प्रवेश नहीं लिया है। इसमें इंदौर में सर्वाधिक 38 हजार, शिवपुरी में 25 हजार, धार व बड़वानी में 21 हजार, छिंदवाड़ा में 20 हजार, छतरपुर में 19 हजार, खरगोन में 18 हजार, बालाघाट में 17 हजार और खंडवा में 16 हजार बच्चों ने स्कूल में प्रवेश नहीं लिया।
सरकारी स्कूलों में पिछले सत्र में 79.75 लाख बच्चों का नामांकन दर्ज हुआ था। इस सत्र में अब तक 53.81 लाख का प्रोग्रेशन पेडिंग है। वहीं 4.67 लाख बच्चों ने किसी भी स्कूल में प्रवेश नहीं लिया है। इसमें सबसे अधिक बड़वानी में 17 हजार, छिंदवाड़ा व छतरपुर में 16 हजार, बालाघाट में 13 हजार, भिंड में 10 हजार, शहरी क्षेत्र ग्वालियर व भोपाल में चार-चार हजार, जबलपुर में छह हजार और इंदौर में 11 हजार छात्रों ने पढ़ाई छोड़ी है।
इधर, प्रदेश की स्कूलों में गिरती बच्चों की संख्या पर शिक्षा विभाग भी पर्दा डालने में जुट गया है। विभाग के जिम्मेदार तर्क दे रहे हैं कि बच्चों का अपने माता-पिता के साथ दूसरी जगह जाना भी एक कारण है। समग्र आईडी से मैपिंग नहीं होने के कारण ऐसे हालात बने। जगह बदलने के कारण बच्चे का ठीक से मैपिंग नहीं होना भी है।
इधर, दिसंबर-2024 के आंकड़ों पर नरज डालें तो मध्य प्रदेश में सरकारी स्कूलों से साढ़े 12 लाख बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी है। इतना ही नहीं, प्राइवेट स्कूलों में भी सवा 9 लाख बच्चे घट गए हैं। यह कमी एक साल में नहीं, बल्कि पिछले सात साल में हुई है। यह खुलासा मध्य प्रदेश विधानसभा में हुआ था। धार की सरदारपुर सीट से कांग्रेस विधायक प्रताप ग्रेवाल के एक सवाल के जवाब में स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह ने यह जवाब दिया था। मंत्री ने खुद स्वीकार किया था कि राज्य में पिछले 7 साल में सरकारी और निजी स्कूलों को मिलाकर 22 लाख बच्चे कम हो गए हैं। उन्होंने जवाब दिया था कि 2016-17 से लेकर 2023-24 तक प्रदेश के सरकारी स्कूलों में कक्षा एक से 12वीं तक के 12 लाख 23 हजार 384 बच्चे घटे हैं। कक्षा पहली से 5वीं में 635434, कक्षा 6 से 8 में 483171 और कक्षा 9 से 12 में 104479 बच्चे कम हुए हैं। वहीं, इसी अवधि के दौरान ही निजी स्कूलों में बच्चों की संख्या घटी है। निजी स्कूलों में कक्षा 1 से 5वीं में 625409, कक्षा 6 से 8वीं में 15656 और कक्षा 9 से 12वीं में 284986 बच्चे कम हुए हैं। इस पूरी अवधि में निजी स्कूलों में कक्षा 1 से 12 तक के कुल 926051 बच्चे कम हुए हैं।