गुनौर उद्वहन सिंचाई परियोजना की घोषणा किसानों के लिए उम्मीद जरूर जगाती है, लेकिन बरगी नहर की तकनीकी खामियां, पानी की कमी और अधूरी टनल निर्माण ने इस योजना को संदेहों से घेर दिया है। सतना, रीवा और मैहर के किसानों को अब भी भरोसा नहीं कि गुनौर तक पानी पहुंचेगा। पढ़िए पूरी रिपोर्ट जिसमें नर्मदा के पानी, बरगी परियोजना के आंकड़े, ठेकेदार की मनमानी और किसानों की चिंता शामिल है।
By: Yogesh Patel
Sep 08, 202510 hours ago
हाइलाइट्स
सतना, स्टार समाचार वेब
नर्मदा के जल से सिंचित होने का सपना मैहर, सतना और रीवा अंचल के किसानों ने बरसों पहले देखा था। बरगी नहर परियोजना और अब घोषित गुनौर उद्वहन सिंचाई योजना ने इस उम्मीद को और मजबूत जरूर किया है, लेकिन जमीनी हकीकत किसानों की निराशा और असमंजस को गहरा कर रही है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बीते शुक्रवार अमानगंज में महिला सम्मेलन के मंच से गुनौर उद्वहन सिंचाई परियोजना की घोषणा कर खजुराहो सांसद वीडी शर्मा की मांग को पूरा किया। इस योजना से पन्ना जिले के गुनौर क्षेत्र के 114 गांवों को पानी मिलने की उम्मीद है। परंतु बड़ा सवाल यही है कि जब बरगी नहर खुद तकनीकी खामियों और जल आवंटन की कमी से जूझ रही है, तो आखिर गुनौर तक पानी पहुंचेगा कहां से?
किसानों की चिंता, कमांड एरिया से बाहर हुए गांव
बरगी नहर के निर्माण में हुई गड़बड़ियों ने पहले ही ग्रामीणों को पानी से वंचित कर दिया है। जसो के पास जहां नहर ऊंचाई पर बननी थी, उसे ठेका कंपनी ने 20 फुट गहराई में बना दिया। अब सवाल है कि पानी नीचे जाकर आगे कैसे बढ़ेगा? जिम्मेदारों के पास इस समस्या का कोई स्पष्ट समाधान नहीं है। अककुई, डुड़हा, दतुनहा और कलावल जैसे गांव, जो पहले कमांड एरिया में थे, अब पानी से महरूम हो जाएंगे। बरगी नहर संघर्ष समिति के संयोजक और पूर्व विधायक रामप्रताप सिंह का कहना है- 'डुड़हा में बड़ा टैंक बनाकर पानी को लिफ्ट करना ही एकमात्र विकल्प है। अन्यथा इन गांवों को पानी मिलने की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए।' विशेषज्ञों का कहना है कि बरगी राइट बैंक कैनाल की ऊंचाई 409 मीटर और लेफ्ट बैंक कैनाल का लेवल 400 मीटर है। इस संरचना के कारण जल प्रवाह में लगातार बाधाएं आ रही हैं। जहां पानी गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत पर खुद-ब-खुद बहना था, वहीं गहराई पर नहर बनाने की वजह से लिफ्टिंग के बिना पानी आगे नहीं बढ़ पाएगा। यह अतिरिक्त तकनीकी और आर्थिक बोझ किसानों की पीठ पर ही आकर टिकेगा। सवाल है कि जब मूल परियोजना ही अधूरी और खामियों से भरी है, तो गुनौर उद्वहन योजना किस आधार पर सफल होगी? क्या इसे केन-बेतवा लिंक परियोजना से कनेक्ट किया जाएगा?
आंकड़ों का खेलः जरूरत ज्यादा, पानी कम
बरगी परियोजना के तहत कुल 2100-2200 एमसीएम पानी उपलब्ध है। जबकि राइट बैंक कैनाल के लिए ही लगभग 1900 एमसीएम और लेफ्ट बैंक कैनाल के लिए 1500 एमसीएम पानी की आवश्यकता बताई गई है। यानी उपलब्धता से कहीं ज्यादा मांग है। विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर राइट बैंक कैनाल बंद भी कर दी जाए तो लेफ्ट बैंक कैनाल के हिस्से में केवल 9 मीटर पानी ही बचेगा, जो पर्याप्त नहीं है। ऐसे में गुनौर जैसी नई लिफ्ट परियोजनाओं को पानी देना लगभग असंभव नजर आता है।
किसानों ने कहा- 'हम गाल बजाते रहे, वे पानी ले उड़े'
बरगी परियोजना शुरूआती दौर में केवल सतना और रीवा के लिए थी। लेकिन जबलपुर, कटनी और पन्ना के जनप्रतिनिधि सजग रहे। उन्होंने लगातार दबाव बनाकर अपने अपने क्षेत्रों को भी इस परियोजना से जोड़ लिया। नतीजा यह हुआ कि आज जबलपुर जिले का 60 हजार हेक्टेयर और कटनी जिले का 21,823 हेक्टेयर क्षेत्र सिंचाई के दायरे में आ गया। इसके विपरीत सतना और रीवा के जनप्रतिनिधि सक्रिय तो रहे, लेकिन उनकी सक्रियता परिणाम मूलक नहीं रही। नतीजतन, न तो अपने हिस्से का पानी सुरक्षित रख पाए और न ही परियोजना को तय समय पर पूरा करा सके। किसानों में यह नाराजगी साफ झलकती है कि हम गाल बजाते रहे और दूसरे पानी ले उड़े। मैहर और सतना क्षेत्र के करीब 1.60 लाख हेक्टेयर तथा रीवा के साढ़े तीन हजार हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई का लाभ मिलने की योजना थी। लेकिन अब जब कटनी, जबलपुर और पन्ना के हिस्से बढ़ते जा रहे हैं, तो सतना रीवा के किसानों के सामने बड़ी अनिश्चितता खड़ी गई है। खेतों में सूखा और आसमान पर निर्भरता ने किसानों को कर्ज और पलायन की स्थिति तक हो ला खड़ा किया है। बुंदेलखंड की तपती धरती पर जहां हर बूंद पानी अनमोल है, वहां नेता घोषणाओं की राजनीति कर रहे हैं और अधिकारी ठेकेदारों की मनमानी पर आंख मूंदे हुए हैं।
अधूरी टनल और ठेकेदार की मनमानी
बरगी नहर की सबसे बड़ी बाधा टनल निर्माण है। साल 2008 में शुरू हुई यह परियोजना 2013 में पूरी होनी थी। लेकिन 12 साल बाद भी अधूरी है। प्रोजेक्ट मैनेजर के अनुसार, मौजूदा समय में केवल एक मशीन काम कर रही है, वह भी कछुआ गति से। अगर मशीन में खराबी आ गई तो काम 2027 तक लटक सकता है। समझौते के अनुसार ठेकेदार को दो मशीनें लगानी थीं, मगर उसने एक हटा दी। जिम्मेदार अधिकारी जानते हुए भी चुप्पी साधे बैठे हैं। किसानों का कहना है कि यह सीधे-सीधे भ्रष्टाचार और मिलीभगत का मामला है।
नर्मदा की लहरों पर टिकीं जन उम्मीदें
बरगी नहर व्यपवर्तन योजना की धीमी रफ्तार, ठेकेदारों का मनमाना रवैया, अधिकारियों की उदासीनता और नेताओं की राजनीति ने किसानों को पानी के लिए तरसने पर मजबूर कर दिया है। गुनौर उद्वहन सिंचाई परियोजना की घोषणा कागजों और मंचों पर भले ऐतिहासिक लगे, लेकिन जमीनी स्तर पर यह तभी कारगर होगी जब पानी की उपलब्धता और तकनीकी खामियों का समाधान किया जाए। वरना यह योजना भी किसानों के लिए सिर्फ एक सपना बनकर रह जाएगी। किसानों की उम्मीदें आज भी नर्मदा की लहरों पर टिकी हैं, लेकिन हकीकत यही है कि पानी अभी भी बहुत दूर है।