जिला अस्पताल की भीतरी सुरक्षा के लिए ‘गार्ड’ नहीं ‘गेटपास’ जरूरी

सतना जिला अस्पताल की सुरक्षा व्यवस्था बदहाल है। गेट पास सुविधा बंद होने और चेक प्वाइंट न होने से वार्डों में भीड़, विवाद और असामाजिक तत्वों की घुसपैठ बढ़ रही है। मरीजों और स्टाफ दोनों की सुरक्षा संकट में है।

By: Star News

Jul 07, 2025just now

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जिला अस्पताल की भीतरी सुरक्षा के लिए ‘गार्ड’ नहीं  ‘गेटपास’ जरूरी

अस्पताल प्रबंधन की नादानी से बिगड़ रहे विभिन्न ‘वार्डों’ के हालात 

सतना, स्टार समाचार वेब

क्या जिला अस्पताल में आने वाले मरीजों की सुरक्षा को लेकर अस्पताल प्रबंधन गंभीर नहीं है? सचाल इसलिए क्योंकि जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में आए दिन सुरक्षा में चूक हो रही है। कभी हाथापाई हो रही है तो कभी आवारा मवेशी घुसकर उत्पात मचा रहे हैं।  जिला अस्पताल की सुरक्षा में न तो अस्पताल रिसर की पुलिस चौकी कारगर साबित हो रही है और न ही ठेके पर खड़े किए गए गार्ड। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि प्रसूता व सर्जिकल जैसे संवेदनशील वार्ड हाट बाजार की तरह भीड़ से भर जाते हैं जिससे मरीजों के बीच संक्रमण फैलने का खतरा भी कई गुना बढ़ जाता है।
 
क्यों बंद की गेट पास सुविधा, प्रवेश मार्गों पर चेक प्वाइंट जरूरी 

वार्डों में ऐसी ही मचने वाली धमचौकड़ी के कारण अस्पताल प्रबंधन ने अर्सा पूर्व गेट पास सुविधा प्रारंभ की थी जिसके तहत मरीज के एक अटेंडर के अलावा हाल-चाल जानने पहुंचने वाले लोगों को एक निर्धारित समय पर ही वार्डों में गेटपास के जरिए प्रवेश दिया जाता था। उस दौरान न केवल वार्डों में लगने वाली भीड़ पर अंकुश लगने लगा था बल्कि घटनाओं का ग्राफ भी तेजी से गिरा था। लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने गेट पास योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया। अब हालात यह है कि हर वार्ड में मरीजों से अधिक उनकी मिजाजपुर्सी करने वालों की भीड़ लगी रहती है।कई बार इन्ही की आड़ में असमाजिक तत्व भी घुसकर घटनाओं को अंजाम दे देते हैं। जिला अस्पताल के ही एक चिकित्सक बताते हैं कि गेटपास सुविधा प्रारंभ करने से वार्डोँ की सुरक्षा को नियंत्रित किया जा सकता है उल्लेखनीय है कि  जिला अस्पताल में वार्डों में जाने के लिए चार इंट्री पॉइंट हैं जिससे मरीज के पास तक पहुंचा जा सकता है, लेकिन इन एंट्री पॉइंट में सुरक्षा व्यवस्था के कोई भी इंतजाम नहीं किए गए हैं।  एंट्री पॉइंट की बात करें तो पहला जिला अस्पताल का मेन गेट जहां से सभी मरीज को इलाज के लिए लाया जाता है, अकेले यहां ही गार्ड तीनो शिफ्ट में उपलब्ध रहता है। इसके अलावा दूसरा जिला अस्पताल के पीछे वाला इंट्री पॉइंट जो दिन भर खुला रहता है। तीसरा और चौथा दोनों पुलिस चौकी के बगल से खुले हैं, इन इंट्री पॉइंट पर कोई रोक टोक नहीं होती। इन इंट्री पॉइंट से अनाधिकृत लोग आराम से बिना किसी हिचक के किसी भी वार्ड में घुसकर बड़ी वारदात को अंजाम दे  सकते हैं। यदि इन प्रवेश मार्गों में एक एक कर्मचारी की तैनाती कर गेटपास अनिवार्य कर  चेक प्वाइंट बना दिया जाय तो  जिला अस्पताल की सुरक्षा को काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। 

मरीज ही नहीं अस्पताल कर्मी भी रहते हैं सशंकित 

जिला अस्पताल में मरीज ही नहीं अस्पताल कर्मी भी सशंकित रहते हैं क्योंकि अस्पताल में मरीज के साथ आए परिजनों और पैरामेडिकल स्टाफ के बीच प्रतिदिन विवाद की स्थिति निर्मित होती है। यह विवाद अटेंडरों द्वारा किया जाता है जब पैरामेडिकल स्टाफ और वार्ड बॉय द्वारा उन्हें बाहर जाने के लिए कहा जाता है। जिला अस्पताल प्रबंधन बेशक  सिक्युरिटी गॉर्ड की कमी को इसका कारण मानता हो लेकिन अस्पताल की सुरक्षा से जुड़े जानकारों का कहना है कि 14 सिक्यूरिटी गार्ड व अस्पताल चौकी पुलिस सुरक्षा देने के लिए पर्याप्त हैं लेकिन जब तक वार्डो में जाने वाली भीड़ के लिए चेक प्वाइंट नहीं बनाया जाएगा तब तक पूरी फोर्स भी अस्पताल के भीतर सुरक्षा मुहैया नहीं करा सकती। सिक्योरिटी गार्ड्स की कमी का  भ्रम केवल एजेंसी को फायद पहुचाने ने के लिए फैलाया जा रहा है। अस्पताल प्रबंधन के मुताबिक जिला अस्पताल परिसर में  स्काई बुल सर्विस द्वारा  तीन शिफ्ट में 14 सिक्युरिटी गार्ड की तैनाती की गई  है, जिसमे से 6 महिलाएं हैं। जिला अस्पताल के मुख्य गेट की सुरक्षा सिर्फ एक गार्ड ही भरोसे होती है। इसके अलावा ट्रामा आईसीयू, एसएनसीयू, पीकू, लेबर रूम, नैदानिक केंद्र में भी एक-एक गार्ड की डियूटी तीन शिफ्ट में लगाई जाती है। 

एमएलसी और पीएम तक सीमित चौकी 

जिला अस्पताल में मरीजों और परिजनों की सुरक्षा व्यवस्था के लिए एक चौकी की स्थापना की गई थी, वो भी अब एमएलसी और पीएम रिपोर्ट तक ही सीमित रह गई है। आए दिन जिला अस्पताल में विवाद की स्थिति निर्मित होती है लेकिन चौकी के स्टाफ द्वारा कोई एक्शन नहीं लिया जाता। मामला बढ़ जाने पर पास के थाने से मदद ली जाती है। जिला अस्पताल परिसर में संचालित चौकी में स्टाफ के नाम पर एक प्रधान आरक्षक, एक आरक्षक और एक होम गॉर्ड की तैनाती की गई है। रात में केवल होमगॉर्ड के भरोसे पूरे अस्पताल की सुरक्षा व्यवस्था सौंप दी जाती है। 

सिक्योरिटी गार्ड की संख्या बढ़ाने जिला प्रशासन और डायरेक्ट्रेट को कई बार पत्राचार किया जा चुका है। जैसे ही आदेश मिलेगा सुरक्षा गार्डों की संख्या बढाकर अन्य जगहों में तैनाती की जाएगी। 

डॉ. धीरेन्द्र वर्मा, सहायक प्रबंधक

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