मध्यप्रदेश के पिछड़े जिले पन्ना में 800 ग्राम वजन और 26 सप्ताह की गर्भावस्था में जन्मे शिशु को जिला अस्पताल की एसएनसीयू टीम ने डेढ़ महीने की गहन देखभाल और आधुनिक उपकरणों की मदद से पूरी तरह स्वस्थ किया। नि:शुल्क उपचार से पन्ना की स्वास्थ्य सेवाओं की क्षमता और मानव-समर्पण का उदाहरण सामने आया।
By: Yogesh Patel
Sep 22, 2025just now
हाइलाइट्स
पन्ना, स्टार समाचार वेब
मध्यप्रदेश के अत्यधिक पिछड़े जिले पन्ना में स्वास्थ्य सेवाओं की चुनौतियों के बीच जिला अस्पताल की स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। यहां मात्र 800 ग्राम वजन और 26 सप्ताह की गर्भावस्था में जन्मे एक अति-नवजात शिशु को पूर्ण स्वस्थ किया गया।
यह सफलता न केवल चिकित्सकीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि जिले की स्वास्थ्य सेवाओं की क्षमता का प्रमाण भी है। 1 अगस्त 2025 को शिशु को एसएनसीयू पन्ना में भर्ती कराया गया था। सामान्यत: एक शिशु का वजन 2500 ग्राम या अधिक और गर्भावस्था की अवधि 37 सप्ताह होनी चाहिए। इतनी कम अवधि और वजन में जन्म लेने वाले शिशुओं में गंभीर बीमारियों का खतरा रहता है और मृत्यु दर भी बहुत अधिक होती है। भर्ती के समय शिशु को संक्रमण, पीलिया, खून की कमी सहित कई जटिलताएं थीं। हर गुजरते दिन के साथ यह केस टीम के लिए चुनौतीपूर्ण बनता जा रहा था। एसएनसीयू प्रभारी डॉ. योगेंद्र चतुवेर्दी, शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. जितेंद्र खरे, डॉ. रमेश चंद्र केसरी तथा इंचार्ज स्टाफ नर्स नीता पटले सहित पूरी टीम ने शिशु का इलाज एसएनसीयू प्रोटोकॉल के अनुसार किया। गहन निगरानी, आधुनिक उपकरणों और लगातार प्रयासों से शिशु की जान बचाई जा सकी। इलाज के दौरान शिशु की आंखों की जांच चित्रकूट की विशेषज्ञ टीम से कराई गई। संपूर्ण उपचार हेतु उसे चार बार चित्रकूट रेफर भी किया गया। लगभग डेढ़ महीने तक लगातार देखभाल के बाद जब शिशु कटोरी-चम्मच से दूध पीने की स्थिति में आया और उसका वजन बढ़कर 1128 ग्राम हुआ, तब परिजनों की इच्छा अनुसार उसे डिस्चार्ज कर दिया गया।
डॉ. योगेंद्र चतुर्वेदी ने बताया कि सामाजिक और आर्थिक कारणों से पन्ना जिले में शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर देश में सर्वाधिक है। मध्यप्रदेश के आंकड़ों के अनुसार, जहां पूरे प्रदेश में भर्ती शिशुओं में 1000 ग्राम से कम वजन वाले बच्चों का प्रतिशत 2 प्रतिशत है, वहीं पन्ना में यह 3.7 प्रतिशत है। यानी पन्ना जिले में ऐसे गंभीर मामलों की संख्या प्रदेश औसत से लगभग दुगनी है। इसके बावजूद यहां की टीम लगातार उल्लेखनीय सफलताएं अर्जित कर रही है। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि इस तरह के अति-नवजात शिशु को किसी निजी अस्पताल में भर्ती कराया जाता तो प्रतिदिन का खर्च करीब 35 हजार रुपये आता। इस हिसाब से शिशु के इलाज पर लगभग 16 लाख रुपये का खर्च होता। लेकिन पन्ना एसएनसीयू में यह संपूर्ण उपचार पूरी तरह नि:शुल्क किया गया। उल्लेखनीय है कि यहां परिजनों से न तो चाय स्वीकार की जाती है और न ही किसी भी तरह की मिठाई या उपहार। यह उपलब्धि पन्ना जैसे पिछड़े जिले के लिए आशा और प्रेरणा की मिसाल है। चिकित्सा जगत में इसे एक बड़ी सफलता माना जा रहा है। इससे साबित होता है कि यदि संसाधन और मानव-समर्पण एक साथ हों तो किसी भी चुनौती को मात दी जा सकती है।