सतना जिले के सोहावल ब्लॉक के सेमरा गांव की हालत आज भी आजादी के पहले जैसे है। 78 साल बाद भी इस गांव में न सड़क बनी और न ही नदी पर पुल। बरसात में स्कूल, अस्पताल और बाजार का रास्ता पूरी तरह बंद हो जाता है। मरीजों को आज भी चारपाई पर अस्पताल तक ले जाया जाता है। ग्रामीणों ने SDM से लेकर विधायक-सांसद तक गुहार लगाई, लेकिन समाधान नहीं मिला। क्या अब भी इंतजार है किसी हादसे का?
By: Yogesh Patel
हाइलाइट्स:
सतना, स्टार समाचार वेब
देश को आजाद हुए 78 वर्ष हो चुके हैं, जिले के ग्राम सेमरा के हालात अब भी किसी बदहाल पिछड़े गांव की तरह हैं। सतना विधानसभा अंतर्गत सोहावल ब्लाक के ग्राम पंचायत सोहास अंतर्गत आने वाले इस गांव में आज तक न तो पक्की सड़क बनी और न ही गांव को पंचायत मुख्यालय से जोड़ने वाली सेमरावल नदी पर कोई पुल बन पाया है। स्थिति इतनी चिंताजनक है कि गांव के बच्चों को बरसात के समय स्कूल जाने के लिए बहते पानी में जान जोखिम में डालकर रपटा पार करना पड़ता है। बीमार व्यक्तियों को अस्पताल पहुंचाने के लिए आज भी चारपाई पर उठाकर कीचड़ और पानी से भरे रास्तों से गुजरना पड़ता है। गांववासियों का कहना है कि प्रशासन की अनदेखी के कारण आज भी सेमरा मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है , जबकि हर चुनाव में नेतागण पहुंचकर दो-तीन महीने में ही पुल बना देने का दावा सालों से करते रहे हैं।
ग्रामीणों की प्रशासन को जगाने की कोशिश नाकाम
ग्रामीणों ने कई मर्तबा एसडीएम, कलेक्टर के अलावा सांसद व विधायक को ज्ञापन देकर सेमरा गांव का दर्द बताया लेकिन प्रशासनिक व राजनीतिक गलियारों में ग्रामीणों की गुहार नक्कारखाने में तूती की आवाज ही साबित हुई है। सरपंच प्रियंका-विपिन साहू, उप-सरपंच-बीरेंद सिंह, जगजाहिर सिंह, शिवबहादुर सिंह, रोसम सिंह, दिनेश पाण्डेय, , शेषमणी पाण्डेय, कामता पाण्डेय, राजमणी पाण्डेय, बिनायक सिंह, बिक्रम सिंह, गुलाब सिंह, संतोष केवट, सहसराम पाण्डेय, दयाराम प्रजापति, सतेंद्र चौधरी, असंक पाण्डेय, छंगू सिंह, उजागर सिंह, संता गुप्ता आदि ग्रामीणों की माने तो वे एसडीएम से लेकार सांसद -विधायक तक अपनी फरियाद सुना चुके हैं लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है।
न सड़क, न पुल
गांव सेमरा के एक ओर सेमरावल नदी बहती है, जो बारिश के दिनों में उफान पर आ जाती है और पूरी तरह से गांव का संपर्क पंचायत मुख्यालय से कट जाता है। दूसरी ओर गांव से कोटर तक जाने वाला कच्चा रास्ता है, जो बरसात में कीचड़ और दलदल में बदल जाता है। ऐसे में न कोई वाहन गांव में आ पाता है और न ही कोई वहां से निकल पाता है। बच्चों को स्कूल जाने में परेशानी होती है, वहीं बड़ी संख्या में किसान और दिहाड़ी मजदूर बाजार तक नहीं पहुंच पाते। सरकारी योजनाओं का लाभ गांव तक नहीं पहुंच पाता क्योंकि न तो अधिकारी समय पर दौरा कर पाते हैं और न ही स्वास्थ्य सेवाएं या राशन जैसी बुनियादी सुविधाएं ठीक से वितरित हो पाती हैं।
नदी पर पुल निर्माण जरूरी
बरसात के दौरान सेमरावल नदी में बाढ़ जैसी स्थिति बन जाती है और पानी के तेज बहाव के कारण ग्रामीणों का जीवन खतरे में पड़ जाता है। एक स्थायी पुल से न केवल सेमरा पंचायत से जुड़ पाएगा, बल्कि आसपास के गांवों के लिए भी आवागमन सुगम होगा। साथ ही, सड़क के माध्यम से गांव शिक्षा, स्वास्थ्य, और बाजार से बेहतर रूप में जुड़ सकेगा।
सरकारी कागजों में तो विकास की बातें होती हैं, मगर हकीकत ये है कि जब भी कोई बीमार होता है, तो यहां के वाशिंदों को उसे चारपाई पर उठा कर नदी पार करके ले जाते हैं। कई बार मरीज की हालत रास्ते में ही बिगड़ जाती है।
बीरेंद्र सिंह, उप सरपंच ग्राम पंचायत सोहास
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि कई शिकायतों के बाद भी कोई हल जिम्मेदार नहीं निकाल सके हैं जिससे हम ग्रामीणों का जीवन बारिश में नारकीय हो गया है। संभवत: प्रशासन को इस रपटे पर किसी गंभीर हादसे का इंतजार है।
विपिन साहू, सरपंच पति
ज्ञापन सौंपकर सेमरावल नदी पर पुल निर्माण और सेमरा से कोटर तक पक्की सड़क बनाने की मांग की गई मगर किसी अधिकारी या नेता के कान में जूं तक नहीं रेंगी। बग तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकला है।
अभिषेक पांडेय, ग्रामीण
गांव में वर्षों से सड़क और पुल की मांग की जा रही है। चुनाव के दौरान वोट के बहिष्कार की धमकी देने पर अधिकारीऔर नेतागण पहुंचे और आश्वासन दिया कि जल्द पुल बनवाएंगे। कई चुनाव हो गए लेकिन ग्हमें पानी भरे रपटे से ही निकलना पड़ रहा है।
संजय शुक्ला , ग्रामीण
हर साल बरसात में हमारा गांव जैसे कैद हो जाता है। न स्कूल जा सकते हैं, न अस्पताल। जरूरी सामान तक लेने बाहर नहीं जा सकते। आजादी के इतने साल बाद भी अगर हम मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं तो यह बहुत दुखद है। इसका निराकरण किया जाय अन्यथा अब ग्रामीण सड़क पर उतरेंगे।
पीयूष त्रिपाठी, ग्रामीण