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राज्यपालों की विवेकाधिकार शक्ति पर सुप्रीम कोर्ट में बहस

सुप्रीम कोर्ट में राज्यपालों द्वारा विधानसभा से पारित विधेयकों को अनिश्चितकाल तक रोके रखने के खिलाफ राज्यों की याचिकाओं पर सुनवाई जारी है। पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश जैसी सरकारों ने तर्क दिया है कि कानून बनाना विधानसभा का काम है और राज्यपालों को मनमाने ढंग से जनता की इच्छा को रोकने का अधिकार नहीं है।

By: Ajay Tiwari

Sep 03, 20257:26 PM

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राज्यपालों की विवेकाधिकार शक्ति पर सुप्रीम कोर्ट में बहस

हाइलाइट्स

  • राज्यपालों द्वारा बिल रोके जाने पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी
  • राज्यों ने कहा- कानून बनाने में उनका कोई रोल नहीं

नई दिल्ली. स्टार समाचार वेब.

सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को लगातार सातवें दिन राज्यपालों द्वारा विधानसभा से पारित बिलों पर फैसला करने के लिए समय-सीमा तय करने वाली राज्यों की याचिकाओं पर सुनवाई हुई। पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश की सरकारों ने राज्यपालों की विवेकाधिकार शक्ति का पुरजोर विरोध किया। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है।

राज्यों ने तर्क दिया कि कानून बनाना विधानसभा का काम है और राज्यपाल केवल औपचारिक प्रमुख होते हैं, जिनकी कानून बनाने में कोई भूमिका नहीं होती। उन्होंने केंद्र सरकार के इस तर्क का विरोध किया कि राज्य इस मामले में सुप्रीम कोर्ट नहीं जा सकते। राज्यों ने कहा कि केंद्र, कोर्ट के फैसले को चुनौती देकर संविधान की मूल भावना को कमजोर करना चाहता है।

राज्यों के प्रमुख तर्क 

  • पश्चिम बंगाल (कपिल सिब्बल): वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि अगर विधानसभा से पास बिल राज्यपाल को भेजा जाता है, तो उन्हें उस पर हस्ताक्षर करना ही होगा। संविधान की धारा-200 में राज्यपाल के लिए 'संतोष' जैसी कोई शर्त नहीं है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल या तो बिल पर हस्ताक्षर करें, या उसे राष्ट्रपति को भेज दें। अनिश्चितकाल तक बिल को रोके रखना लोकतंत्र के खिलाफ है।

  • हिमाचल प्रदेश (आनंद शर्मा): हिमाचल सरकार के वकील आनंद शर्मा ने कहा कि संघीय ढांचा (फेडरलिज्म) भारत की ताकत है और राज्यपालों का कानून बनाने में कोई रोल नहीं है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर राज्यपाल बिल रोकेंगे, तो इससे केंद्र-राज्य संबंधों में टकराव बढ़ेगा, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।

  • कर्नाटक (गोपाल सुब्रमण्यम): कर्नाटक सरकार के वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि राज्य में दोहरी सरकार (डायार्की) नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि राज्यपाल को हमेशा मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही काम करना चाहिए, सिवाय उन दो स्थितियों के जब संविधान उन्हें विवेकाधिकार देता है।

सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कहा था कि राज्यपाल बिलों को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते। इस मामले की अगली सुनवाई 9 सितंबर को होगी।

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