“थर्ड डिग्री” नामक यह विशेष रिपोर्ट विंध्य क्षेत्र के प्रशासनिक अफसरों की महत्वाकांक्षाओं, छवि निर्माण की कोशिशों, और नेताओं के आगे झुकने की विवशता को उजागर करती है। अमित सेंगर की यह लेखनी सत्ता और सिस्टम की परतें उघाड़ती है।
By: Yogesh Patel
हाइलाइट्स
कोशिश जरूरी है
कोई भी व्यक्ति हो, उसे निरंतर प्रयास करना चाहिए, तभी वह सफल हो सकता है। कहा भी जाता है, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। इन दिनों विंध्य के एक जिले के एक बड़े अधिकारी अच्छी जगह जाने के लिए खूब कसरत कर रहे हैं। वह हर रिश्ते को साध रहे हैं। गृह जिले के प्रवास में हुई मुलाकातों ने उनकी चाहत को तेजी से हवा दे दी है। प्रवास के दौरान गृह जिले से ताल्लुक रखने वाले प्रदेश के दिग्गज सत्ताधारियों से मुलाकात से अधिकारी को उम्मीद जगी है कि उनकी बदौलत चाहत पूरी हो सकती है। इनमें से एक की बातों को प्रदेश के मुखिया तवज्जो देते हैं, इनके इशारे से पुलिस विभाग के कई अधिकारी उपकृत हो चुके हैं। अब देखने वाली बात यह रहेगी कि पहली बार कमान संभालने वाले अधिकारी की चाह कब तक पूरी हो पाती है।
इमेज बनाने की कोशिश
यूं तो हर कोई अपनी इमेज बनाने का काम करता है। इन दिनों अचानक अपनी इमेज बनाने में धर्मनगरी के एक अधिकारी तेजी से सक्रिय हुए हैं। उन्होंने ऐसा विषय चुना है जो रेंज के बड़े अधिकारियों के प्रमुख अभियानों में से एक है। मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर यह अधिकारी प्रचारित करवा रहे हैं कि अब उस धंधे से जुड़े लोगों की खैर नहीं, कोई भी उसे बख्शा नहीं जाएगा। अधिकारी की 'सिंघम' इमेज बनाने में वे लोग भी शामिल नजर आए, जो कल तक उनकी कमियां बताने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे। इसे लेकर गलियारे में चर्चा शुरू हो गई, कहा जा रहा है कि अब कुछ नहीं होने वाला, मौका हाथ से निकल चुका है। दरअसल, यह अधिकारी बड़े स्थान का प्रभारी बनने की दावेदारी काफी वक्त से कर रहे थे, लेकिन बड़े स्थानों में इनके वरिष्ठ अधिकारी ने नए लोगों की ताजपोशी कर दी, जिससे इनके अरमान धरे रह गए। खैर, इनकी कोशिश जारी है ताकि बड़े अधिकारियों से लेकर प्रमुख अधिकारी तक की नजरों में आ सकें, शायद कभी इनकी नजर-ए-इनायत हो जाए।
तस्वीर नहीं दिखी
यह प्रमोशन का दौर है, साहिब, कुछ अच्छा काम कर लो, लेकिन जब उसे कोई देख-सुन न पाए, तो भला कौन मानेगा कोई काम हुआ? कुछ ऐसा ही हुआ पिछले दिनों जिले में भारी बारिश से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई। जनता को परेशानी से बचाने के लिए अधिकारियों की टीम निकली, जहां जो हो सकता था वहां काम किया गया। इसकी तस्वीरें भी सामने आईं। पर प्रदेश के मुखिया को यह तस्वीरें जरा रास न आईं। उन्होंने कह डाला, ‘जब काम कर रहे थे, तो जनता की मदद करते। उन्हें मुश्किलों से बाहर निकालते वक्त की तस्वीर सबके सामने आनी चाहिए थी, तभी न जनता जानेगी कि उनके हित के लिए आप कितने संजीदा हो।’ इस टिप्पणी के बाद गलियारे में चर्चा हुई कि काम छोटा हो या बड़ा, उसका प्रमोशन जबरदस्त हो, ताकि बेहतर ब्रांडिंग हो। वैसे भी इन दिनों पुलिस विभाग को अपने हर कार्य को तय वक्त पर तस्वीर के जरिए बताने के लिए अधिकारी आदेश जारी कर ही चुके हैं।
मजबूरी है हाथ जोड़ना
एक समय था जब पुलिस का दबदबा ऐसा था कि नेता भी उनके आगे झुकते थे, लेकिन अब स्थिति बदल गई है। व्यवस्था में आए बदलावों और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं ने पुलिस के रुआब को कम कर दिया है। अब पुलिस अधिकारियों को नेताओं के सामने झुकना पड़ता है और उनसे मधुर संबंध बनाने पड़ते हैं ताकि मनचाही पोस्टिंग मिल सके। नेताओं की पसंद-नापसंद ही पुलिस अधिकारियों की कुर्सी तय करती है, इसलिए पुलिस अब वही करती है जो नेता चाहते हैं। संभागीय मुख्यालय में एक ऐसी ही घटना देखने को मिली, जहां सिद्धांतों की बात करने वाले एक दल के नेताजी ने खुलेआम किसी की बेइज्जती करने में कोई संकोच नहीं किया। उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि जिसे वे अपशब्द कह रहे थे, वह उनके ही दल में देवी समान मानी जाती हैं और महिला सशक्तिकरण के लिए उनके दल ने काफी प्रयास किए हैं। इस घटना के बाद, ऐसा कहा जा रहा है कि शायद यही कारण था कि नेताजी को अपना पद गंवाना पड़ा। हालांकि, वह पूर्व हो चुके नेता अभी भी आलाकमान के आशीर्वाद से काफी प्रभावशाली माने जाते हैं और इसका प्रमाण तब मिला जब पुलिस अधिकारी हाथ जोड़कर उनसे ‘दादा-दादा’ कहकर मान-मनोव्वल करते दिखे।