आईआईटी कानपुर में बीटेक फाइनल ईयर के छात्र की आत्महत्या ने सबको झकझोर दिया। तीन दिन तक उसका शव हॉस्टल के कमरे में पड़ा रहा। किसी को भनक तक नहीं लगी। जब बदबू आने लगी तक अगल-बगल के कमरे में रहने वाले छात्रों को वारदात के बारे में पता चला। इससे प्रबंधन में हड़कंप मच गया।
By: Arvind Mishra
Oct 03, 2025just now
कानपुर। स्टार समाचार वेब
आईआईटी कानपुर में बीटेक फाइनल ईयर के छात्र की आत्महत्या ने सबको झकझोर दिया। तीन दिन तक उसका शव हॉस्टल के कमरे में पड़ा रहा। किसी को भनक तक नहीं लगी। जब बदबू आने लगी तक अगल-बगल के कमरे में रहने वाले छात्रों को वारदात के बारे में पता चला। इससे प्रबंधन में हड़कंप मच गया। धीरज की मौत पिछले दो साल में आईआईटी कानपुर में सातवीं छात्र आत्महत्या है। इन घटनाओं के बावजूद संस्थान का दावा है कि हर छात्र की काउंसलिंग की जाती है। उनकी निगरानी की जाती है। लेकिन लगातार हो रही आत्महत्याएं दिखाती हैं कि काउंसलिंग और प्रशासनिक निगरानी केवल दावे तक ही सीमित रह गई हैं। हरियाणा के रहने वाले सतीश सैनी के बेटे धीरज सैनी, 22 वर्षीय बीटेक फाइनल ईयर का छात्र, केमिकल इंजीनियरिंग में पढ़ाई कर रहा था। वह आईआईटी कानपुर के हॉस्टल नंबर-1 में अकेले कमरे में रहता था।
धीरज सैनी के कमरे से तेज बदबू आने लगी। पहले पास के कमरे में रहने वाले छात्रों ने कुछ सोचा, फिर जब बदबू और अधिक बढ़ गई तो उन्हें अंदेशा हुआ कि कुछ गंभीर है। हॉस्टल प्रशासन और पुलिस को सूचना दी गई। जब कमरे का दरवाजा खोला गया, तो सामने का नजारा देखकर सबके होश उड़ गए। कमरे में धीरज का शव पड़ा था। दावा किया जा रहा है कि यह घटना कम से कम तीन दिन पहले हुई थी।
धीरज के कमरे में कोई भी सुसाइड नोट नहीं मिला। एसीपी रंजीत कुमार का कहना है कि प्रारंभिक अनुमान के अनुसार छात्र ने तीन दिन पहले अपनी जान ली होगी। पोस्टमार्टम के बाद ही मौत के कारण स्पष्ट होंगे। इस रहस्यमय अंत ने परिवार और सहपाठियों को हिला कर रख दिया। कोई नहीं जानता कि तीन दिन तक क्यों कोई हॉस्टल स्टाफ या साथी छात्र उसकी ओर ध्यान नहीं दे पाए।
सतीश सैनी और उनके परिवार के लिए यह सदमे से कम नहीं। पिता सतीश ने बताया कि हमारे बेटे के साथ ऐसा हुआ और हमें इसका पता तीन दिन तक नहीं चला। धीरज ने छठवीं से हाईस्कूल तक उसने हरियाणा के हैप्पी स्कूल से पढ़ाई की। वहां उसकी तीन लाख फीस जमा न होने पर स्कूल प्रबंधन ने उसकी हाईस्कूल की सर्टिफिकेट रोक ली थी। किसी तरह चाचा संदीप ने लोगों से उधार लेकर 1.50 लाख रुपए स्कूल में जमा किए थे। तब उसकी सर्टिफिकेट स्कूल प्रबंधन ने दी थी।
वीडियोग्राफी के बीच उसका पोस्टमार्टम किया गया। पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे धीरज सैनी के ताऊ सत्येंद्र का कहना था कि मेरा बच्चा बहुत आरक्षित प्रकृति का था। ताऊ का कहना था कि आखिरी बार वह मई में घर आया था। वह बहुत ही अच्छा एथलीट था, पढ़ाई के अलावा उसे क्रिकेट का शौक था। वह आईआईटी क्रिकेट टीम का वाइस कैप्टन भी था।
रिश्तेदार एसएन सैनी ने बताया कि आईआईटी में धीरज की रहस्यमयी ढंग से मौत हुई है। इंस्टीट्यूट अपनी छवि धूमिल होने से बचाने के लिए आत्महत्या पर ज्यादा ध्यान नहीं देंगे। जैसे बाकी बच्चों की मौत की फाइलें धूल खा रही हैं, उसी तरह से धीरज के आत्महत्या की फाइल भी धूल खाती रहेगी। इसकी विधिवत जांच होनी चाहिए।