सुप्रीम कोर्ट ने देश की सभी, खासकर हिंदू महिलाओं से अपील की है कि वे अपनी संपत्ति के लिए तुरंत वसीयत बनाएं। जानिए क्यों जस्टिस नागरत्ना और महादेवन की पीठ ने यह टिप्पणी की, और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15(1)(b) से जुड़े विवाद पर कोर्ट का क्या रुख रहा।
By: Ajay Tiwari
Nov 19, 20254:56 PM
नई दिल्ली:स्टार समाचार वेब
संपत्ति से जुड़े विवादों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए देश की सभी महिलाओं, विशेष रूप से हिंदू महिलाओं, से यह अपील की है कि वे अपनी संपत्ति की वसीयत (Will) अवश्य बनाएं। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि महिला के निधन के बाद उसकी स्वयं-अर्जित संपत्ति को लेकर उसके माता-पिता और ससुराल पक्ष के बीच किसी तरह का अनावश्यक कानूनी विवाद न हो।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए इस बात पर जोर दिया कि ऐसे कई मामले सामने आते हैं जहाँ महिला की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पर उसके मायके और ससुराल पक्ष के बीच विवाद खड़ा हो जाता है।
पीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा, "हम सभी महिलाओं और विशेषकर उन हिंदू महिलाओं से अपील करते हैं जिन पर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15(1) लागू हो सकती है, कि वे तुरंत वसीयत बनाएं।" इस कदम से यह सुनिश्चित होगा कि उनकी स्वयं अर्जित संपत्ति का बँटवारा उनकी इच्छा के अनुसार हो और भविष्य में कोई कानूनी झंझट उत्पन्न न हो।
कोर्ट ने इस दौरान हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15(1)(b) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर कोई अंतिम फैसला देने से इनकार कर दिया। पीठ ने इसकी वैधानिकता के प्रश्न को "खुले प्रश्न" के रूप में छोड़ दिया है।
क्या कहती है धारा 15(1)(b)? इस धारा के अनुसार, यदि कोई हिंदू महिला बिना वसीयत बनाए (intestate) मर जाती है और उसके पति, बेटे या बेटी में से कोई वारिस नहीं है, तो उसकी संपत्ति पति के वारिसों को हस्तांतरित होती है। महिला के माता-पिता या उनके वारिसों को संपत्ति का हक़ केवल तभी मिलता है जब पति के भी कोई वारिस मौजूद न हों।
शीर्ष अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि यदि किसी हिंदू महिला की मृत्यु के बाद उसके माता-पिता या उनके कानूनी वारिस उसकी संपत्ति पर दावा करते हैं और धारा 15(2) लागू नहीं होती है, तो पहले अनिवार्य प्री-लिटिगेशन मध्यस्थता (Pre-Litigation Mediation) होगी।
अदालत में मुकदमा तभी दायर किया जा सकेगा जब मध्यस्थता सफल न हो।
मध्यस्थता में हुआ कोई भी समझौता अदालती डिक्री के रूप में कानूनी रूप से मान्य होगा।