महिलाओं की सुरक्षा के लिए आफिस में पॉश एक्ट लागू होता है। यह कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा देने वाला एक कानून है। सुप्रीम कोर्ट में राजनीतिक दलों में भी पॉश एक्ट लागू करने की मांग की गई थी। हालांकि, कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करने से इंकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दलों को कार्यस्थल नहीं माना जा सकता और उनके सदस्य कर्मचारी नहीं माने जा सकते।
By: Arvind Mishra
Sep 15, 20252:02 PM
महिलाओं की सुरक्षा के लिए आफिस में पॉश एक्ट लागू होता है। यह कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा देने वाला एक कानून है। सुप्रीम कोर्ट में राजनीतिक दलों में भी पॉश एक्ट लागू करने की मांग की गई थी। हालांकि, कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करने से इंकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दलों को कार्यस्थल नहीं माना जा सकता और उनके सदस्य कर्मचारी नहीं माने जा सकते। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच, जिसमें जस्टिस के विनोद चंद्रन और एनवी अंजारिया भी शामिल थे। उन्होंने कहा कि अगर राजनीतिक दलों को कार्यस्थल मान लिया गया तो यह पैंडोरा का बक्सा (अप्रत्याशित बुराइयां) खोलने जैसा होगा। कोर्ट ने कहा कि आप किसी राजनीतिक पार्टी को कार्यस्थल कैसे घोषित कर सकते हैं। वहां नौकरी है क्या? जब आप किसी पार्टी से जुड़ते हैं तो आपको नौकरी नहीं मिलती और न ही आपके काम के लिए भुगतान होता है।
कोर्ट उस विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रहा था जो अधिवक्ता योगमाया एमजी ने दायर की थी। यह याचिका 2022 में केरल हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती देती है, जिसमें कहा गया था कि राजनीतिक दलों पर पॉश अधिनियम के तहत आंतरिक शिकायत समिति बनाने की बाध्यता नहीं है, क्योंकि पार्टी सदस्य पारंपरिक मायने में कर्मचारी नहीं माने जाते।
याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने दलील दी कि पॉश अधिनियम में किसी संस्था-सार्वजनिक या निजी—के लिए कोई अपवाद नहीं है। राजनीतिक दलों को इससे बाहर रखना महिलाओं को असुरक्षित छोड़ देता है। इसके बावजूद कोर्ट ने साफ कहा कि राजनीतिक दलों को कार्यस्थल के समान नहीं माना जा सकता। सीजेआई के नेतृत्व वाली बेंच ने हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया, केरल हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।
याचिका में कहा गया कि ऐसा अपवाद मनमाना, भेदभावपूर्ण और संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 का उल्लंघन है। इसमें यह भी कहा गया कि महिलाएं-चाहे स्वयंसेवक, प्रचारक, इंटर्न या जमीनी कार्यकर्ता हों, असुरक्षित माहौल में काम करती हैं और उनके पास कोई औपचारिक शिकायत निवारण तंत्र नहीं है। ऐसी सुरक्षा से मनमाना इंकार कानून के मकसद को ही नष्ट कर देता है। याचिका में मांग की गई थी किराजनीतिक दलों को पॉश अधिनियम की धारा 2(जी) के तहत नियोक्ता घोषित किया जाए। सभी राजनीतिक दलों के लिए आईसीसी बनाना अनिवार्य हो।
भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, नेशनल पीपुल्स पार्टी और आॅल इंडिया प्रोफेशनल्स कांग्रेस साथ ही यूनियन आफ इंडिया और चुनाव आयोग भी शामिल थे।