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जस्टिस नागरत्ना बोलीं- कोर्ट के फैसले स्याही से लिखे जाते हैं, रेत से नहीं

कोर्ट में जज के बदलते ही केस के फैसले भी बदल जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना ने इस पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि बेंच के जज बदलने के बाद फैसलों में बदलाव करना सही नहीं है। न्यायिक स्वतंत्रता की विकसित समझ हमें इस बात की गारंटी देती है कि न्यायाधीश द्वारा दिया गया निर्णय बदलते समय के साथ भी बरकरार रहेगा।

By: Arvind Mishra

Dec 01, 202512:59 PM

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जस्टिस नागरत्ना बोलीं- कोर्ट के फैसले स्याही से लिखे जाते हैं, रेत से नहीं

जस्टिस नागरत्ना हरियाणा के सोनीपत में स्थित ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में पहुंची थी।

  • अदालत में जज बदलते ही फैसला खारिज नहीं होना चाहिए
  • निष्पक्ष न्यायिक प्रणाली के लिए राजनीति से अलगाव जरूरी

नई दिल्ली। स्टार समाचार वेब

कोर्ट में जज के बदलते ही केस के फैसले भी बदल जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना ने इस पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि बेंच के जज बदलने के बाद फैसलों में बदलाव करना सही नहीं है। न्यायिक स्वतंत्रता की विकसित समझ हमें इस बात की गारंटी देती है कि न्यायाधीश द्वारा दिया गया निर्णय बदलते समय के साथ भी बरकरार रहेगा। यह फैसले स्याही से लिखे जाते हैं, रेत से नहीं। जस्टिस नागरत्ना ने कहा- कानून, शासन और प्रशासन में मौजूद सभी का दायित्व है कि वो फैसलों का सम्मान करें। फैसलों से जुड़ी जरूरी चीजों पर ही आपत्तियां उठाएं। जज बदलने के कारण इन फैसलों को खारिज न किया जाए।

लिखने वाले जज बदल गए

दरअसल, जस्टिस नागरत्ना हरियाणा के सोनीपत में स्थित ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में पहुंची थी। इस दौरान न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में उन्होंने कहा कि फैसलों को सिर्फ इसलिए खारिज नहीं करना चाहिए, क्योंकि उन्हें लिखने वाले जज बदल गए हैं।

न्यायपालिका की स्वतंत्रता जरूरी

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस नागरत्ना कहती है कि न्यायपालिका का कर्तव्य है कि वो कानून का शासन सुनिश्चित करे। न्यायपालिका की स्वतंत्रता फैसलों के अलावा न्यायाधीशों के आचरण से भी सुरक्षित रहती है। वहीं, निष्पक्ष न्यायिक प्रणाली के लिए न्यायपालिका को राजनीति से अलग रखना आवश्यक है।

कई बार पलटे ‘सुप्रीम’ फैसले

सुप्रीम कोर्ट कई बार अपने ही फैसलों को पलट चुका है। इसी साल मई में सर्वोच्च न्यायालय ने विकास कार्यों के लिए पर्यावरण मंजूरी को अनिवार्य बताया था। 28 नवंबर को उखक बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने फैसला पलटते हुए इस प्रतिबंध को हटा दिया था।

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