मध्यप्रदेश में जिस तरह से नगरीय विकास एवं आवास विभाग के कॉलोनाइजर नियम हैं, वैसे ही शहरों से लगी पंचायतों में लागू किए जाएंगे। जिस तरह नक्शा पास कराने से लेकर अन्य अनुमतियां नगरीय क्षेत्रों में लेनी होती हैं, वे सभी लेनी होंगी। आवश्यक अधोसरंचना विकास के काम भी करने होंगे और इसका उल्लंघन करने पर कार्रवाई भी होगी।
By: Arvind Mishra
Dec 15, 202511:34 AM
भोपाल। स्टार समाचार वेब
मध्यप्रदेश में जिस तरह से नगरीय विकास एवं आवास विभाग के कॉलोनाइजर नियम हैं, वैसे ही शहरों से लगी पंचायतों में लागू किए जाएंगे। जिस तरह नक्शा पास कराने से लेकर अन्य अनुमतियां नगरीय क्षेत्रों में लेनी होती हैं, वे सभी लेनी होंगी। आवश्यक अधोसरंचना विकास के काम भी करने होंगे और इसका उल्लंघन करने पर कार्रवाई भी होगी। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि अभी ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के नियम लागू होते हैं, इसलिए विभाग से सहमति लेकर दोनों विभाग अपने-अपने नियमों में संशोधन करेंगे। मामला नीतिगत निर्णय का है इसलिए इस प्रस्ताव को कैबिनेट की अगली बैठक में रखा जाएगा। मंजूरी मिलते ही व्यवस्था लागू कर दी जाएगी। दरअसल, प्रदेश में तेजी के साथ शहरीकरण हो रहा है। शहरों में भूखंड का मूल्य अधिक होने से पास की पंचायतों में तेजी के साथ नई-नई कॉलोनियां विकसित हो रही हैं। पंचायत क्षेत्र में कॉलोनाइजर को आसानी से अनुमतियां मिल जाती हैं। वे कॉलोनी बनाकर निकल जाते हैं, लेकिन आवश्यक सुविधाओं का विकास नहीं करते हैं।
नियमों में किया जाएगा संशोधन
पंचायतें भी ध्यान नहीं देती हैं और जब यह कालोनियां नगरीय निकायों में शामिल होती हैं तो फिर विकास से जुड़े मुद्दे खड़े हो जाते हैं। इसे देखते हुए सरकार ने तय किया है कि नगरीय क्षेत्र से लगी हुई पंचायतों में भी नगरीय विकास एवं आवास विभाग के कालोनाइजर एक्ट के प्रावधान लागू किए जाएंगे। इसके लिए पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक करने के बाद नियमों में संशोधन किया जाएगा।
गावों में बन रहीं कॉलोनियां
प्रदेश में भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, उज्जैन सहित अन्य शहरी क्षेत्रों के बाहर कॉलोनियां तेजी से विकसित हो रही हैं। ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण यहां अनुमतियां आसानी से मिल जाती हैं। ज्यादा निगरानी भी नहीं होती है। कॉलोनाइजर कॉलोनी तो बना देते हैं, लेकिन आवश्यक अधोसंरचना का विकास नहीं होता है। नियमानुसार खाली भूमि भी नहीं छोड़ी जाती है।
नगरीय निकायों पर बढ़ता दबाव
आश्रय शुल्क जिला पंचायत में जमा कर दिया जाता है, लेकिन इसका उपयोग भी संबंधित क्षेत्र के विकास में नहीं होता है। जब ये क्षेत्र नगरीय निकायों में शामिल होते हैं तो अन्य क्षेत्रों के समान विकास की मांग उठती है। निकायों के ऊपर दबाव बनता है। लेकिन माली स्थिति ठीक नहीं होने के कारण काम नहीं हो पाते हैं। इसे देखते हुए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने निर्देश दिए हैं कि नियम इस तरह बनाए जाएं जिससे एक तो अवैध कॉलोनियां बन ही न पाएं और दूसरा जो कॉलोनियां बन गई हैं, वहां विकास कार्यों की चिंता की जाए।