मैहर मां शारदा मंदिर में नवरात्रि पर 1100 रुपए वीआईपी दर्शन शुल्क से भक्त नाराज। गरीब कतारों में त्रस्त, श्रद्धा पर धंधे का आरोप।
By: Yogesh Patel
हाइलाइट्स:
सतना, स्टार समाचार वेब
नवरात्रि का शुभ पर्व शुरू हो चुका है और मां शारदा के दरबार में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा है, लेकिन इस बार श्रद्धालुओं की आस्था पर प्रशासन की नई व्यवस्था ने बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। मां शारदा प्रबंधक समिति और जिला प्रशासन ने मिलकर वीआईपी दर्शन शुल्क 1100 रुपए प्रति व्यक्ति तय कर दिया है। इस व्यवस्था ने भक्तों को दो हिस्सों में बांट दिया है। एक ओर वे लोग जो 1100 रुपए देकर आराम से मां के चरणों में पहुंच जाएंगे और दूसरी ओर वे गरीब श्रद्धालु, जो घंटों लंबी कतारों में धक्के खाते रहेंगे। मेला तैयारियों के लिए बीते कई दिनों से बैठकें चल रही हैं, जिसमें अधिकारी, विधायक, सांसद व अन्य जनप्रतिनिधियों ने बैठकों में मेला तैयारियों को पुख्ता बनाने की मंशा से अधिकारियों से चर्चा की। लोगों ने सवाल उठाया कि क्या यह निर्णय जनप्रतिनिधियों की सहमति से हुआ या प्रशासन ने अकेले ही भक्तों की भावनाओं को ताक पर रख दिया ?
भक्तों में नाराजगी, कहा- यहां भी धंधा प्रधान
भक्तों का कहना है कि गरीब परिवार, जो सालभर पैसे जोड़कर नवरात्रि में मां के दरबार आते हैं, उनके लिए यह फैसला बेहद अपमानजनक है। अब मां के दर्शन उनके लिए धैर्य और कष्ट का दूसरा नाम बन जाएंगे। वहीं जिनके पास पैसे सांसद व अन्य जनप्रतिनिधियों ने बैठकों में मेला तैयारियों को पुख्ता बनाने की मंशा से अधिकारियों से चर्चा की। लोगों ने सवाल उठाया कि हैं, वे आराम से वीआईपी रास्ते से सीधे गर्भगृह तक पहुंच जाएंगे। यह आस्था और भक्ति के मंदिर में अमीरी-गरीबी की खाई पैदा करने जैसा है। मेला के पहले दिन मैहर पहुंचे भक्त 11 सौ में वीआईपी दर्शन की होर्डिंग देखकर हैरान हो उठे।
चित्रकूट में समान भाव से होता है दर्शन
राजापुर चित्रकूट से आए श्रद्धालुओं ने कहा कि मैहर व चित्रकूट में दर्शन हमेशा समान भाव से होते थे, चाहे अमीर हो या गरीब, लेकिन अब मां शारदा धाम का नाम उन मंदिरों में जुड़ता दिख रहा है, जहां भक्ति से ज्यादा रुपए का महत्व हो गया है। स्थानीय लोगों ने भी इस मामले में सवाल उठाते हुए कहा कि पहले श्रद्धालुओं को मुसीबत में झोकने वाली कैंटीन खोलने का प्रयास ओर अब शीघ्र दर्शन के लिए 11 सौ रुपए निर्धारण बता रहा है कि जिम्मेदारों की नजर में श्रद्धालु व्यवस्थाएं अहम नहीं बल्कि धंधा ही प्रधान है।