सतना जिला अस्पताल में बदलते मौसम के साथ मरीजों की भीड़ बेकाबू हो गई है। वार्डों में क्षमता से अधिक मरीज भर्ती किए जा रहे हैं, जिससे व्यवस्थाएं ध्वस्त हो चुकी हैं। कई मरीजों को गद्दे और साफ चादर तक नहीं मिल पा रही। ओपीडी में रोजाना 1800–1900 मरीज पहुंच रहे हैं, जिनमें से सैकड़ों को भर्ती करना पड़ रहा है।
By: Yogesh Patel
हाइलाइट्स
सतना, स्टार समाचार वेब
बदलते मौसम में जिले के सबसे बड़े अस्पताल में मरीजों की बाढ़ सी आ गई है। वार्डों में क्षमता से अधिक मरीज भर्ती हो रहे हैं, जिससे व्यवस्थाएं ध्वस्त हो गई हैं। लाख प्रयासों के बाद भी जिला अस्पताल की साफ-सफाई और चादर-गद्दे की व्यवस्था में कोई सुधार नहीं हो रहा है। जिला अस्पताल के महिला मेडिकल और पुरुष मेडिकल वार्ड में ऐसे ही कई मरीज देखने को मिले जिन्हें चादर तक नसीब नहीं था। बेचारे दर्द के मारे भर्ती मरीज घर से लाए चादर और कम्बल पर ही इलाज करने को मजबूर दिखे। अस्पताल प्रबंधन आंकड़ों के मुताबिक एक बार फिर से ओपीडी मरीजों का आंकड़ा बढ़ने लगा है। सोमवार को 1900 मरीजों ने अपना पंजीयन कराकर चिकित्सकीय परामर्श लिया, जिसमे से करीब 300 के पार मरीजों को भर्ती करना पड़ा। इसी तरह मंगलवार को 1800 से अधिक मरीजों ने इलाज के लिए ओपीडी में अपना पंजीयन कराया।
मौके पर ऐसे मिले हाल
जिला अस्पताल के वार्ड नंबर 6 महिला वार्ड एवं वार्ड नंबर 7 पुरुष मेडिकल वार्ड मरीजों से पटा दिखा। वार्ड के अंदर और बाहर फर्श में भी कई मरीजों का इलाज किया जा रहा था। वार्ड में बेड भरे होने के चलते मरीजों को नीचे गद्दों में लिटाकर इलाज किया जा रहा था। वार्ड में गद्दों की दुर्दशा ऐसी देखने को मिली कि नीचे लगाए गए गद्दे फटे व सड़े हुए थे। इसके अलावा वार्ड के बाहर भर्ती मरीज घर से लाए कम्बल व चादर में ही लेटे नजर आए। वार्ड के बाहर लेटे मरीजों का उमस और गर्मी से हाल बेहाल था परिजनों द्वारा हाथ पंखे से मरीज को हवा दी जा रही थी। इन मरीजों से पूंछने पर पता चला कि ये मरीज बीते दो दिन से ऐसे ही फर्श पर अपनी चादर में ही लेटे हुए हैं और जिम्मेदारों द्वारा बाकायदा इलाज भी किया जा रहा है लेकिन प्रबंधन की इस व्यवस्था की तरफ किसी का ध्यान आकृष्ट नहीं हो रहा है। वार्ड में रखे बॉटल स्टैंड में एक साथ चार से पांच मरीजों के बॉटल चढ़ाये जा रहे थे जबकि दूसरी ओर वार्ड के बाहर कई बॉटल स्टैंड जंग खाते पड़े थे। जिला अस्पताल में चिकित्सकीय सुविधाएँ तो समय से उपलब्ध कराई जा रही है लेकिन साफ-सफाई एवं चादर, गद्दे की व्यवस्था को कोई अधिकारी संभल नहीं पा रहा है।
क्या है नियम
जानकारी के मुताबिक जिला अस्पताल में हर माह चादरों की धुलाई में 65 से 70 हजार रुपए तक खर्च किया जाता है, बावजूद इसके मरीजों को चादर उपलब्ध नहीं हो पाता। जिला अस्पताल में यह स्थिति एमर्जेन्सी से लेकर सभी वार्डों में है। नियमन प्रत्येक वार्ड में रोज चादर बदलने का नियम है। मरीज के लेटने में चादर अगर गंदी हो जाती है तो एक दिन में कई मर्तबा बदलने का नियम है। नया मरीज भर्ती होने पर चादर गन्दा हो या न हो बेड पर धुला चादर बिछाने का नियम है, जो कि अस्पताल में लागू नहीं होता है।
मैं नागौद से आया हूं। गंधयुक्त एवं सड़े हुए गद्दे दिए गए हैं। चादर नहीं मिला है। स्टाफ से चादर मांगने पर स्टाफ लड़ाई पर उतारू हो जाता है। ऐसा लगता है जैसे प्रबंधन ने चादर देने से मना किया हो।
कैलाश गुप्ता
बीती रात से मरीज अस्पताल में भर्ती है। वार्ड के अंदर जगह नहीं है, बेड न होने पर वार्ड के बाहर ही मरीज को भर्ती करने के लिए कह दिया गया लेकिन किसी भी स्टाफ द्वारा गद्दे या चादर की व्यवस्था नहीं की गई। घर से लाए कम्बल पर ही मरीज दो दिन से लेता है।
मौरध्वज गुप्ता, नई बस्ती
अमरपाटन सिविल अस्पताल से मरीज को रेफर कर जिला अस्पताल भेज दिया गया लेकिन यहां भी भरेर्शाही का माहौल बना है। मरीज को फर्श पर लिटाने न तो गद्दा मिला और न ही चादर। स्टाफ से कुछ भी कहो तो वे लड़ने को तैयार हो जाती हैं।
संगीता यादव, अमरपाटन