राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधेयक को मंजूरी देने की समय सीमा तय करने के मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि न्यायिक सक्रियता, न्यायिक आतंकवाद नहीं बनना चाहिए। पीठ में सीजेआई जस्टिस गवई के अलावा जस्टिस सूर्य कांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिएस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदूरकर भी शामिल हैं।
By: Arvind Mishra
Aug 21, 2025just now
राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधेयक को मंजूरी देने की समय सीमा तय करने के मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि न्यायिक सक्रियता, न्यायिक आतंकवाद नहीं बनना चाहिए। गुरुवार को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि निर्वाचित लोगों को काफी अनुभव होता है और उसे कमतर नहीं आंका जाना चाहिए। इस पर सीजेआई जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि हमने कभी भी निर्वाचित लोगों के बारे में कुछ नहीं कहा है। मैंने हमेशा कहा है कि न्यायिक सक्रियता, कभी भी न्यायिक आतंकवाद या न्यायिक रोमांच नहीं बनना चाहिए। पीठ में सीजेआई जस्टिस गवई के अलावा जस्टिस सूर्य कांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिएस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदूरकर भी शामिल हैं। तुषार मेहता ने अपने सबमिशन में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया, जिसमें राज्यपालों की शक्तियों पर बात की गई।
इस मामले पर सुनवाई लगातार तीसरे दिन भी जारी रही। मेहता ने कहा कि निर्वाचित लोग सीधे तौर पर जनता का सामना करते हैं। अब लोग जनप्रतिनिधियों से सवाल करते हैं। 20-25 साल पहले हालात अलग थे। अब मतदाता जागरूक हैं और उन्हें हल्के में नहीं लिया जा सकता। मेहता ने कहा कि राज्यपाल के पास मंजूरी रोकने का पूरा अधिकार है, जो उन्हें संविधान के अनुच्छेद 200 से मिला हुआ है। सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर कोई विधेयक दूसरी बार राज्यपाल की मंजूरी के लिए उनके पास भेजा जाए तो राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के पास विचार करने के लिए नहीं भेज सकते।
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में एक आदेश दिया था, जिसमें राज्यपालों और राष्ट्रपति को एक तय समय में उनके समक्ष पेश विधेयकों पर फैसला लेने को कहा गया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर काफी हंगामा हुआ। राष्ट्रपति ने भी इस पर आपत्ति जताई और कहा कि देश के संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, तो सुप्रीम कोर्ट किस आधार पर यह फैसला दे सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में दिए अपने फैसले में कहा था कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल की ओर से भेजे गए विधेयक पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा। अगर तय समय सीमा में फैसला नहीं लिया जाता तो राष्ट्रपति को राज्य को इसकी वाजिब वजह बतानी होगी।