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शिवराज से दो कदम आगे निकले मोहन

मध्य प्रदेश की राजनीति इस समय जिस दिलचस्प मोड़ पर खड़ी है, उसने बीते दो वर्षों में एक अनपेक्षित नायक को राष्ट्रीय चर्चाओं के केंद्र में ला दिया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ऐसे ही नायकों में हैं। अक्सर कहा जाता है कि किसी भी मुख्यमंत्री की वास्तविक पहचान बनने में वर्षों लग जाते हैं, लेकिन प्रदेश की राजनीति ने इस सामान्य धारणा को तोड़ते हुए राष्ट्रीय पटल पर एक नई, तेज, आत्मविश्वासी और निर्णायक नेतृत्वशैली को उभार दिया है।

By: Star News

Dec 12, 20259:43 PM

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शिवराज से दो कदम आगे निकले मोहन

- सुशील शर्मा
मध्य प्रदेश की राजनीति इस समय जिस दिलचस्प मोड़ पर खड़ी है, उसने बीते दो वर्षों में एक अनपेक्षित नायक को राष्ट्रीय चर्चाओं के केंद्र में ला दिया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ऐसे ही नायकों में हैं। अक्सर कहा जाता है कि किसी भी मुख्यमंत्री की वास्तविक पहचान बनने में वर्षों लग जाते हैं, लेकिन प्रदेश की राजनीति ने इस सामान्य धारणा को तोड़ते हुए राष्ट्रीय पटल पर एक नई, तेज, आत्मविश्वासी और निर्णायक नेतृत्वशैली को उभार दिया है। देश में गिने-चुने मुख्यमंत्री ही ऐसे हैं जिनकी कार्यशैली, राजनीतिक प्रतिबद्धता और निर्णयों की गूंज राष्ट्रीय मंच तक सुनाई देती है, उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ, बिहार के नीतीश कुमार, पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी, आंध्र प्रदेश के चंद्रबाबू नायडू और महाराष्ट्र के देवेंद्र फडणवीस इसी श्रेणी में आते हैं। यही वह अग्रिम कतार है जिसके बारे में कहा जाता है कि उनकी आवाज़ दिल्ली की सत्ता गलियारों में भी वजन रखती है।  इनकी पंक्ति में खड़ा होना आसान नहीं। यह उस श्रेणी का स्थान है जहाँ प्रभाव, नेतृत्व और निर्णय तीनों का गहन संतुलन आवश्यक होता है, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, इस प्रतिष्ठित श्रेणी में अब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का नाम भी उसी आत्मविश्वास के साथ गूँजने लगा है। यह उपलब्धि न केवल अप्रत्याशित है बल्कि राजनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण भी। उनके पहले समकालीन या बाद में अन्य राज्यों में बने मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़ के विष्णुदेव साय, राजस्थान के भजनलाल शर्मा, दिल्ली की रेखा गुप्ता, गुजरात के भूपेंद्र पटेल सहित कई विपक्षी शासित राज्यों के नेता अपने-अपने प्रदेशों से बाहर कोई विशेष छाप छोड़ने में असफल रहे हैं। इसके उलट, मध्य प्रदेश ने डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में न केवल विकास की नई लकीर खींची है, बल्कि अपनी राजनीतिक पहचान का नया आयाम भी निर्मित किया है।
राज्यों में सरकारें अपने-अपने तरीके काम करती हैं, योजनाएँ बनाती हैं, विकास के दावे करती हैं, लेकिन किसी भी सरकार के वास्तविक मूल्यांकन का आधार केवल योजनाओं की संख्या नहीं होता। असली कसौटी यह भी है कि सरकार को दिशा कौन दे रहा है, नेतृत्व कितना लक्ष्य-आधारित है और वह नेतृत्व राष्ट्रीय पटल पर कितना प्रभाव छोड़ पा रहा है। मध्य प्रदेश में बीते दो वर्षों में यही प्रश्न सबसे अधिक प्रासंगिक रहा कि क्या मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने वह नेतृत्व क्षमता दिखाई है, जिसकी अपेक्षा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय नेतृत्व ने उनसे की थी? यह सवाल इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भाजपा आज नई पीढ़ी के नेताओं को आगे लाने की रणनीति पर काम कर रही है, और इस रणनीति में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सबसे सफल, सबसे स्थिर और सबसे भरोसेमंद चेहरे के रूप में उभरे हैं।
निस्संदेह, किसी भी मुख्यमंत्री का मूल्यांकन दो वर्षों में पूर्णतः नहीं किया जा सकता, किंतु इन दो वर्षों में यह अवश्य आंका जा सकता है कि नेतृत्व किस दिशा में प्रदेश को ले जा रहा है। इस कसौटी पर डॉ. मोहन यादव का प्रदर्शन उल्लेखनीय है। उन्होंने जनता-केंद्रित प्रशासन को वरीयता दी, विकास को गति दी और भाजपा की मूल लोककल्याणकारी धारा को और अधिक विस्तृत किया। किसी भी संकोच के बिना कहा जा सकता है कि डॉ. मोहन यादव ने अपने शुरुआती दो वर्षों में शिवराज सिंह चौहान की तुलना में अधिक आक्रामक, अधिक निर्णायक और अधिक व्यापक शैली में नेतृत्व का प्रदर्शन किया है।
डॉ. मोहन यादव का व्यक्तित्व केवल एक प्रशासक का नहीं, बल्कि एक ऐसे नेतृत्व का है, जो अपने सांस्कृतिक मूल, आध्यात्मिक पहचान और राजनीतिक प्रतिबद्धता को एक साथ साधता है। वे उज्जैन से आते हैं। महाकाल की नगरी, कालगणना का प्राकृतिक केंद्र और मंगलनाथ, कालभैरव, हरसिद्धि जैसे शक्तिपीठों का आध्यात्मिक विस्तार। वे स्वयं को महाकाल का अनन्य भक्त कहते हैं और इसका प्रभाव उनके निर्णयों में दिखाई देता है। सदियों पुरानी वह परंपरा कि उज्जैन में कोई राजा रातभर नहीं ठहरता। डॉ. यादव ने उसे दंभ से नहीं, बल्कि भक्तिभाव और सहज तर्क से बदलने का साहस दिखाया। उन्होंने कहा कि “मैं महाकाल का भक्त और उज्जैन का पुत्र हूँ, पुत्र के रूप में अपने ही घर में ठहरना कैसे अनुचित हो सकता है?” नेतृत्व में निर्णय लेने की क्षमता और परंपरा को आधुनिक संदर्भ में बदलने का यही आत्मविश्वास उन्हें अलग पहचान देता है।
व्यक्तिगत जीवन में भी वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्य-निष्ठा और कर्तव्य-परायणता का उसी ईमानदारी से पालन करते हैं। जब उनके पिता का निधन हुआ, तब अधिकांश लोग स्वाभाविक रूप से लंबे समय तक शोकावकाश लेते, पर उन्होंने कुछ ही दिनों में राज्य के कार्यों को फिर से प्राथमिकता देकर उस परंपरा को आगे बढ़ाया, जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी माता के निधन के बाद स्थापित किया था कि देश या राज्य का कर्तव्य सर्वोपरि। 
यही अनुशासन, यही नैतिक प्रतिबद्धता एक राजनेता को “प्रशासक” से “नेता” बनाती है।
डॉ. यादव की सरलता और सामाजिक दृष्टि का एक सबसे अनूठा उदाहरण तब देखने को मिला, जब उन्होंने अपने पुत्र का विवाह सामूहिक सम्मेलन में सम्पन्न कराया। इस निर्णय की आलोचनाएँ हुईं, लेकिन यह आलोचना उन परिवारों को मिली खुशियों पर भी प्रहार जैसा था, जो उसी सम्मेलन में अपने बेटे-बेटियों का विवाह करवा रहे थे। उन 21 जोड़ों और उनके परिवारों के लिए यह आयोजन संभवतः जीवन की सबसे बड़ी खुशी का क्षण था, जहाँ मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल और अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रवींद्र पुरी, बाबा रामदेव और बागेश्वर धाम सहित अन्य बड़े धार्मिक-सामाजिक नेता स्वयं उपस्थित होकर आशीर्वाद दे रहे थे। यह आयोजन एक संदेश था कि नेतृत्व का अर्थ केवल ऊँची कुर्सी नहीं, बल्कि समाज के सबसे सामान्य व्यक्ति के साथ खड़े होने की क्षमता है।
इन दो वर्षों में जो सबसे महत्वपूर्ण रहा, वह यह कि डॉ. मोहन यादव ने राष्ट्रीय नेतृत्व की दृष्टि, राज्य की सांस्कृतिक पहचान और राजनीतिक लक्ष्य तीनों को एक सूत्र में पिरो दिया। इसलिए जब यह सवाल पूछा जाता है कि दो साल में सफलता की परख क्या है, तो जवाब सीधा है।  यह देखना कि मुख्यमंत्री राष्ट्रीय राजनीति के परिप्रेक्ष्य में कितनी जगह बना पाए, कितने विश्वसनीय बने, और केंद्र की विकास-नीति का कितना प्रभावी विस्तार कर सके। योजनाएँ तो हर सरकार में बनती हैं, पर नेतृत्व का दृष्टिकोण, राष्ट्रीय सोच के साथ तालमेल, लक्ष्य की स्पष्टता और निर्णय लेने का साहस, यही भविष्य तय करता है।
डॉ. मोहन यादव ने इन दो वर्षों में यह स्थापित किया है कि वे सिर्फ एक मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि भाजपा की नई पीढ़ी के उन चुनिंदा नेताओं में शामिल हैं, जिन्होंने केंद्रीय नेतृत्व के विश्वास को न सिर्फ कायम रखा बल्कि उसे परिणामों में भी बदलकर दिखाया। आने वाले विधानसभा चुनाव इस नेतृत्व परीक्षा की अंतिम कसौटी होंगे, पर अब तक की यात्रा यह दिखाती है कि नेतृत्व की दिशा स्पष्ट है, संकल्प मजबूत है और मध्यप्रदेश का राजनीतिक भविष्य एक स्थिर और राष्ट्रीय संरेखण वाली राह पर अग्रसर है।
2 साल का मूल्यांकन किसी भी नेतृत्व के लिए छोटा कालखंड होता है, लेकिन यह अवधि इतना ज़रूर बता देती है कि नेता कहाँ खड़ा है और आगे कितनी दूर जा सकता है और आज यह स्पष्ट है कि डॉ. मोहन यादव अब भाजपा के भविष्य का वह चिह्नित चेहरा हैं जो विरासत से विकास की राह पर मध्यप्रदेश को एक नए राजनीतिक आयाम में ले जाने की क्षमता रखते हैं। विधानसभा चुनाव अंतिम परीक्षा जरूर होंगे, लेकिन इतिहास यह बताता है कि परीक्षा से पहले तस्वीर अक्सर स्पष्ट हो जाती है और इस तस्वीर में डॉ. मोहन यादव का चेहरा अब पहले से कहीं अधिक तेज, अधिक दृढ़ और अधिक निर्णायक दिखाई देता है।

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