सीजेआई बी.आर. गवई ने आक्सफोर्ड यूनियन में कहा कि भारत का संविधान समानता का दिखावा नहीं करता, बल्कि सत्ता को संतुलित कर गरिमा बहाल करता है। उन्होंने डॉ. भीमराव आंबेडकर की भूमिका पर चर्चा की और अपने जीवन के अनुभव भी साझा किए।
By: Sandeep malviya
लंदन। भारत का संविधान एक सामाजिक दस्तावेज है, जो यह दिखावा नहीं करता कि सभी लोग बराबर हैं, बल्कि यह साहस करता है कि वह सत्ता को फिर से संतुलित करे और गरिमा को बहाल करे। यह बात मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई ने आक्सफोर्ड यूनियन में अपने संबोधन के दौरान कही। सीजेआई गवई 'प्रतिनिधित्व से लकर क्रियान्वयन तक: संविधान के वादे को मूर्त रूप देना' विषय पर बोल रहे थे। इस दौरान उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन के अनुभव भी साझा किए। उन्होंने बताया कि किस तरह से उन्होंने एक नगरपालिका स्कूल से देश के सर्वोच्च न्यायिक पद तक का सफर तय किया और कैसे इसमें संविधान ने उनका मार्गदर्शन किया, जिसको अब 75 साल पूरे हो गए हैं।
उन्होंने संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर की भूमिका पर भी चर्चा की और बताया कि कैसे आंबेडकर ने दूरदर्शिता के साथ संविधान में पर्याप्त सुरक्षा और सकारात्मक प्रावधानों, खासकर प्रतिनिधित्व के सिद्धांत को शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सीजेआई गवई ने कहा, कई दशक पहले भारत में लाखों लोगों को 'अछूत' कहा जाता था। उन्हें यह बताया जाता था कि वे अशुद्ध हैं, वे इस समाज का हिस्सा नहीं हैं और वे खुद के लिए बोल भी नहीं सकते। लेकिन आज हम यहां हैं। आज उन्हीं लोगों में से एक व्यक्ति (खुद गवई) देश के सर्वोच्च न्यायिक पद पर बैठकर खुलकर बोल रहा है। यही भारत के संविधान ने किया। उसने भारत के लोगों से कहा कि वे इस देश के हैं, वे खुद के लिए बोल सकते हैं औ समाज व सरकार के हर क्षेत्र में उनकी बराबरी की जगह है। उन्होंने कहा, संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज या सियासी ढांचा नहीं है। यह एक भावना है। जीवनरेखा है और स्याही से लिखी हुई एक शांत क्रांति है।
मेरी अपनी यात्रा में (नगरपालिका के स्कूल से सीजेआई बनने तक) यह मेरे लिए मार्गदर्शन की एक ताकत रही है। जस्टिस गवई ने कहा, संविधान एक सामाजिक दस्तावेज है, जो जाति, गरीबी, बहिष्कार और अन्याय की कठोर सच्चाई से आंखें नहीं चुराता। यह दिखावा नहीं करता कि सभी बराबर हैं, बल्कि यह साहस करतरा है कि वह सत्ता को फिर से देखे, संतुलित करे और गरिमा को बहाल करे। उन्होंने आगे कहा, आंबेडकर की सोच में प्रतिनिधित्व का विचार सबसे शक्तिशाली और और स्थायी रूप से दिखाई देता है। वह एक राजनेता, विद्वान, न्यायविद और सामाजिक क्रांतिकारी थे, जो भारतीय समाज के सबसे शोषित वर्ग से आए थे। सीजेआई ने कहा, डॉ. आंबेडकरक के लिए प्रतिनिधित्व केवल सीटों का बंटवारा भर नहीं था, बल्कि यह एक नैतिक और लोकतांत्रिक जरूरत थी। उन्होंने आगे कहा, भारतीय लोकतंत्र की असली खूबसूरती इसमें है कि जब हम संविधान के 75 वर्षों का जश्न मना रहे हैं, हम लगातार इस बात पर विचार करते हैं, इसे नया रूप देते हैं, और फिर से कल्पना करते हैं कि प्रतिनिधित्व का अर्थ कैसे और गहराई व विस्तार पा सकता है। पिछले ही साल संसद ने एक संविधान संशोधन पारित किया, जिससे संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए राजनीतिक आरक्षण की व्यवस्था की गई।