एक नए अध्ययन में पाया गया है कि मानसिक तनाव से जूझते पिताओं का असर उनके बच्चों के सामाजिक, भावनात्मक और संज्ञानात्मक विकास पर पड़ता है, जो किशोरावस्था तक बना रह सकता है।
By: Yogesh Patel
Jun 17, 20253 hours ago
मेलबर्न, स्टार समाचार वेब
एक ताज़ा अध्ययन में खुलासा हुआ है कि नए-नए पिताओं का मानसिक तनाव – विशेषकर गर्भावस्था के दौरान और बच्चे के जन्म के बाद – न केवल उनके अपने स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, बल्कि उनके बच्चों के सामाजिक, भावनात्मक और संज्ञानात्मक विकास पर भी दीर्घकालिक असर डाल सकता है।
ऑस्ट्रेलिया में डीकिन विश्वविद्यालय और जेम्स कुक विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों द्वारा किए गए इस अध्ययन में बताया गया है कि प्रत्येक 10 में से एक पुरुष पिता बनने की प्रक्रिया में चिंता और अवसाद जैसी मानसिक समस्याओं से गुजरता है। अध्ययन में कुल 84 अंतरराष्ट्रीय शोधों की समीक्षा की गई, जिनमें यूरोप, एशिया, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के पिताओं और उनके बच्चों पर दीर्घकालिक निगरानी रखी गई थी।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह मानसिक तनाव नए पिताओं के लिए भावनात्मक चुनौतियों के साथ-साथ व्यावहारिक जिम्मेदारियों, जैसे नवजात की देखभाल, वित्तीय बोझ और जीवनसाथी को सहयोग देने जैसी जिम्मेदारियों के कारण और बढ़ जाता है।
तीन प्रमुख निष्कर्ष
मदद लेने में आ रही रुकावटें
रिसर्च में यह भी पाया गया कि पिताओं के मानसिक स्वास्थ्य पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता, जितना माताओं पर। माताओं से जुड़े मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर शोध कार्य पिताओं की तुलना में 17 गुना ज्यादा है। जबकि मातृत्व में अवसाद और चिंता की दर अधिक होने के कारण माताओं को आम तौर पर अधिक हेल्थकेयर सपोर्ट मिलता है।
दूसरी ओर, पुरुषों को अक्सर यह लगता है कि उन्हें परिवार के लिए ‘मजबूत’ बने रहना चाहिए, जिससे वे अपनी मानसिक परेशानियों को नज़रअंदाज़ करते हैं। यह सोच उन्हें सहायता लेने से भी रोकती है। कुछ पुरुष शराब या अधिक काम करने जैसे विकल्पों में तनाव से मुक्ति ढूंढ़ते हैं, जो कि समस्या को और बढ़ा देते हैं।
क्या है समाधान?
विशेषज्ञों का मानना है कि हेल्थकेयर सिस्टम को पिता बनने जा रहे पुरुषों की मानसिक स्थिति को भी प्राथमिकता देनी चाहिए। परिवार नियोजन से लेकर नवजात देखभाल तक की सुविधाओं में पिताओं की मानसिक सेहत की जांच और काउंसलिंग को भी शामिल किया जाना चाहिए।
बच्चों के स्वस्थ और संपूर्ण विकास के लिए माताओं के साथ-साथ पिताओं के मानसिक स्वास्थ्य को भी बराबरी की प्राथमिकता दी जानी चाहिए। यदि समाज और स्वास्थ्य नीति पिताओं को सही समय पर मदद प्रदान करे, तो न केवल पिता स्वस्थ रहेंगे बल्कि उनके बच्चे भी एक संतुलित और सुरक्षित बचपन का अनुभव कर सकेंगे।