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नदियों के आरोग्य में समृद्धि का योग: श्रीराम तिवारी

संस्कृति सलाहकार मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश व वीर भारत न्यास के न्यासी सचिव श्रीराम तिवारी का साक्षात्कार

By: Star News

Jun 20, 202523 hours ago

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नदियों के आरोग्य में समृद्धि का योग: श्रीराम तिवारी

सुशील शर्मा, संपादक, स्टार समाचार

मध्यप्रदेश की पहचान उसकी कलकल बहती नदियों और समृद्ध जल-संस्कृति से जुड़ी रही है। गाँव-गाँव में बहने वाली नदियाँ, खेतों को जीवन देती बावड़ियां और  कुआँ यहाँ की असली संपन्नता थी। समय ने इस सुनहरे अध्याय को मद्धम कर दिया। नदियाँ सिकुड़ीं, जलस्रोत सूखते चले गए। पर अब मध्यप्रदेश फिर से अपनी जड़ों की ओर लौट रहा है। ‘सदानीरा’ यह सिर्फ एक सरकारी आयोजन नहीं, बल्कि जनआस्था और सामूहिक चेतना का पुनर्जागरण है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में प्रदेश ने ‘विरासत से विकास’ का मंत्र देते हुए जल संरक्षण को अपनी प्राथमिकता में रखा है। इस परिकल्पना को धरातल पर उतारने में जुटे हैं मुख्यमंत्री के संस्कृति सलाहकार और वीर भारत न्यास के न्यासी सचिव श्रीराम तिवारी। प्रस्तुत है उनसे हुई विस्तृत बातचीत —

प्रश्न : ‘सदानीरा’ को आप किस व्यापक अर्थ में देखते हैं?
उत्तर : ‘सदानीरा’ केवल एक आयोजन नहीं है। यह नदियों के आरोग्य का विषय है। आरोग्य यानी स्वास्थ्य और जब नदी स्वस्थ होगी तो धरती, खेत, गाँव और समाज भी स्वस्थ होगा। अनायास ही हमने जाने-अनजाने में प्रकृति से विपुल मात्रा में प्रदत्त जल के सौभाग्य की उपेक्षा की, जिस कारण हम समृद्ध संसार से विपन्नता की ओर चले गए। अब यह भूल सुधारना ही होगी। ‘सदानीरा’ वही सुधारने का प्रयास है। नदी के बहाव को, गाँव के जलस्रोतों को और समाज की सोच को पुनर्जीवित करना।

प्रश्न : सभ्यताओं का जल से नाता आज कैसे समझाना चाहिए?
उत्तर : जल का महत्व अनादिकाल से है। इसकी कमी ने कई सभ्यताओं को संकट में डाला और नष्ट कर दिया। इसलिए भारतीय जनमानस को स्मरण रखना होगा कि जल केवल एक संसाधन नहीं, जीवन का आधार है। अगर हम फिर उपेक्षा करेंगे तो वही दुर्गति होगी जो इतिहास में हुई।

प्रश्न : संस्कृति को आप जल संरक्षण से क्यों जोड़ते हैं?
उत्तर : हमारी संस्कृति समृद्ध रही है। संस्कृति से मनोभाव बनता है और समझ भी। यही मनोभाव संरक्षण का कारण बनता है। पृथ्वी को माता मानना, नदी को देवी कहना, यह केवल आस्था नहीं, पर्यावरण संरक्षण का व्यवहारिक रास्ता भी है। हम जल को देवता मान पूजते हैं, तो जल से अपनत्व स्थापित करते हैं। आज यह मनोभाव जनमानस में  पुनर्स्थापित करना जरूरी है।

प्रश्न : सरकार और जनता में किसका बड़ा रोल है?
उत्तर : एक लोकतांत्रिक समाज में सरकार कोई अलग बात नहीं है। सरकार ही जनता है और जनता ही सरकार है। नेता सिर्फ दिशा देने का काम करते हैं। असली भागीदारी समाज की होती है। गाँव-गाँव में लोग जब तक अपनी नदियों और तालाबों को अपनी जिम्मेदारी नहीं मानेंगे, तब तक कोई योजना टिक नहीं सकती। ‘सदानीरा’ में हम यही सुनिश्चित कर रहे हैं कि योजना कागज पर नहीं, जमीन पर दिखे और वह तभी होगा जब जनता इसके केंद्र में हो।

प्रश्न : सदानीरा में अन्य प्राकृतिक जल स्रोत भी हैं?
उत्तर : देखिए, जल, जंगल, जमीन, अग्नि और वायुमण्डल ये सब जीवन के मूल तत्व हैं। जब तक ये संतुलित नहीं होंगे, तब तक कोई समाज स्वस्थ नहीं रह सकता। ‘सदानीरा’ केवल नदियों को नहीं, जल के अन्य स्रोतों को भी पवित्र और आरोग्य बनाने का संकल्प है। साथ ही हम लोगों में यह भाव विकसित कर रहे हैं कि वे अपनी संस्कृति को समझें, संरक्षण को व्यवहार में उतारें और अगली पीढ़ी को भी यही संस्कार दें। यही असली विकास है।

प्रश्न : सिर्फ संगोष्ठी, काव्य गोष्ठी या जल चित्र प्रदर्शनी से क्या वास्तव में जल संरक्षण होगा?
उत्तर : देखिए, जल संस्कृति हमारी परंपरा रही है। नदी को हमने ‘माँ’ माना, जल को देवता माना। दुर्भाग्य से लोगों की स्मृति से यह विलुप्त हो गये। संगोष्ठी, गोष्ठी या प्रदर्शनी जागरूकता के साधन हैं। जब तक जनमानस की चेतना नहीं जगेगी, तब तक कोई भी तकनीकी योजना टिकाऊ नहीं होगी।

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